इंदौर विकास प्राधिकरण (IDA) की आनन फानन में हुई बोर्ड बैठक में मंगलवार को 15 किमी लंबा अहिल्यापथ (रिजालय से रेवती गांव तक) का प्रस्ताव पास हो गया।
हालांकि अभी प्रस्ताव को भोपाल जाना और प्रकाशन होना बाकी है, लेकिन इसके पहले ही कलेक्टर आशीष सिंह ने तत्काल प्रभाव से टीएंडसीपी (टाउन एंड कंट्र् प्लानिंग) को इस पथ में आ रहे 8 गांवों में नक्शे पास कराने पर रोक लगा दी है। नक्शे जो प्रक्रियाधीन थे वह भी अब पास नहीं होंगे।
इन गांव में लग गई रोक
- अहिल्या पथ नैनोद, रिजलाय, बुढ़ानिया, बड़ा बांगड़दा, पालाखेड़ी, लिम्बोदागारी, रेवती और बरदरी गांव से गुजर रहा है।
- अहिल्या पथ 1- 227 हेक्टेयर से गुजरेगा- नैनोद और रिजलाय गांव में 4.55 किमी लंबा रूट होगा
- अहिल्या पथ टू- 450 हेक्टेयर से बुढानिया और बड़ा बांगड़दा में 1.80 किमी लंबा होगा
- अहिल्या पथ थ्री- 214 हेक्टेयर में पालाखेडी और बुढ़ानिया से 2.40 किमी लंबा होगा
- अहिल्या पथ 4- 338 हेक्येयर में पालाखेड़ी और लिम्बोदागारी गांव में 1.25 किमी लंबा होगा
- अहिल्या पथ 5- 171 हेक्टेयर में रेवती व बरदरी गांव में 5 किमी लंबा होगा
(इस तरह 8 गांव की कुल 1400 हेक्टेयर जमीन 15 किमी लंबे मार्ग में आएगी)
400 करोड़ की लागत आएगी
आईडीए ने बताया कि इसे बनाने में 400 करोड़ की लागत आएगी। जिन किसानों की जमीन जाएगी, उन्हें यहां उनकी जमीन का 50 फीसदी विकसित प्लॉट दिया जाएगा।
तर्क दिया गया है कि इससे पश्चिमी इंदौर में ट्रैफिक सुगम होगा, मध्य क्षेत्र में दबाव कम होगा। योजना से नई सुव्यवस्थित आवासीय व वाणिज्यिक सुविधाएं सेटेलाइट टाउन से मिलेगी। इसमें सघन वृक्षारोपण, ग्रीन बेल्ट हिस्सा 5 की जगह 7 फीसदी, तीन बड़े सिटी पार्क, सोलर लाइट का प्रावधान होगा। स्कीम बनाने में एक साल और सड़क निर्माण में दो साल का समय लगेगा।
गोल्फ सिटी का भी प्रावधान
स्कीम के पालाखेड़ी व लिम्बोदागारी गांव में जिसमें अधिकांश हिस्सा ग्रीन बेल्ट है, यहां 566 हेक्टेयर में गोल्फ सिटी भी होगी। यहां 18 होल का गोल्फ कोर्स होगा। यह केवल वहीं जहां ग्रीन (कृषि, नगरीय व उद्यान) लैंडयूज वहीं आएगा।
इसमें पहले चरण में 600 करोड़ की लागत आएगी। इसमें इंदौर विकास योजना के 20 किमी मार्ग विकसित होंगे। इसमें भी स्कीम बनाने में एक साल और निर्माण में दो साल लगेंगे।
फिनटेक सिटी भी बनेगी
इसी तरह अहिल्या पथ पर फिनटेक सिटी भी बनेगी। इसमें क्लस्टर बेस्ड डेवलपमेंट होगा। इससे फायनेंशियल टेक्नोल़ॉजी संस्थानों को जमीन दी जा सकेगी। रोजगार पैदा होगा। यह 214 हेक्टेयर में होगी और योजना की कुल लागत 250 करोड़ रुपए होगी।
अभी तो मास्टर प्लान ही नहीं बना, अटक गए गांव
आईडीए ने जो तय समयसीमा बताई है इसमें यह सभी काम होना मुश्किल है। यानी इन नौ गांवों में भूस्वामियों को लंबा समय तक परेशान होना, क्योंकि कोई भी नया प्रोजेक्ट अब नहीं आ सकेगा, क्योंकि स्कीम आएगी।
इसके लिए मास्टर प्लान 2021 में प्रावधान किया जाएगा जो अभी कब आएगा यह तय ही नहीं है। इसके साथ ही आईडीए ने यह तय कर लिया है कि टीएंडसीपी में इन गांव में लैंडयूज क्या रखवाया जाएगा।
अभी 79 गांव भी अटके हुए हैं
इस तरह करीब दो साल से मास्टर प्लान में शामिल किए जा रहे 79 गांव भी अटके हुए हैं। इनके टीएंडसीपी धारा 16 में ही पास हो रहे हैं, जिसमें चार हेक्टेयर से अधिक जमीन हो, बाकी यह भी कभी शुरू होते हैं और कभी रूक जाते हैं।
इन 79 गांव में 700 से ज्यादा टाउनशिप को लेकर हजारों करोड़ की जमीन के सौदे दो साल से अटके हुए हैं और अभी तक मास्टर प्लान तय ही नहीं हुआ है और पहले से इन्हें रोक दिया गया है।
कई पैरेलेल पहले से रोड मौजूद
वहीं जिस क्षेत्र में यह प्रोजेक्ट लाया जा रहा है, वहां पहले से ही कई पैरेलल रोड मौजूद है। इसके अलावा आईडीए ने कई मास्टर प्लान की रोड हाथ में ली हुई जो आज तक नहीं बनी। इसमें एमआर 3, 11 से लेकर आरईटी 2 सहित कई प्रोजेक्ट है, जो सालों से अटके हुए हैं। इन्हें ही आईडीए पूरा नहीं कर पा रहा है। साथ ही आईडीए ने टीपीएस वन से लेकर 10 तक घोषित की है, जिसमें कई काम अधूरे है।
स्कीम लाने का तो एक साल से चल रहा, जमीन जुड़वाने, हटवाने का खेल भी
यह स्कीम लाने का प्लान अभी से नहीं है, तत्कालीन चेयरमैन जयपाल सिंह चावड़ा के समय बना था। इसके बाद से ही इसमें कई खेल अदंरूनी स्तर पर चलते रहे। इसमें जमीन जुड़वाने, हटाने से लेकर रूट बनाने तक के खेल जारी है।
स्कीम लाते समय यही बड़ा खेल होता है, फिर शुरू होता है एनओसी लेने के लिए सांठगांठ का खेल, वहीं स्कीम लाने के बाद जिस भूस्वामी की जमीन ली जाती है, उसके बदले उसे कार्नर का प्लाट देंगे, पीछे देंगे, कहां देंगे, यह आईडीए में सबसे बड़ा खेल होता है, जिसे रोक पाना आज तक किसी के बस की बात नहीं है।
कई विवाद आईडीए में इसे लेकर चल रहे हैं। इस पर अब किस तरह से शासन रोक लगाएगी यह देखने वाली बात होगी। लेकिन अभी तो तय है कि आठ गांव वाले अब सालों तक अटक गए हैं, कब मास्टर प्लान आएगा, कब सड़क बनेगी और फिर कब किसान को विकसित प्लाट मिलेगा, यह लंबी कहानी है।