Mohan Cabinet : नपाध्यक्ष-नगर परिषद अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को हटाने के लिए अब तीन चौथाई बहुमत की जरूरत

मध्‍य प्रदेश की मोहन कैबिनेट ने कई अहम फैसले हुए प्रस्तावों पर मुहर लगाई है। सीएम मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में कई फैसले लिए गए।

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Vikram Jain
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Important decision of Mohan Cabinet regarding Municipal Council President and Vice President
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BHOPAL. मध्यप्रदेश में अब नगर पालिका एवं नगर परिषद अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को हटाने के लिए तीन चौथाई बहुमत की जरूरत होगी। पहले दो तिहाई बहुमत लाकर पार्षद अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को हटा सकते थे। मंगलवार, 20 अगस्त को मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इस फैसले पर मुहर लगी। तीन साल से पहले अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा। शीतकालीन सत्र में इसे विधेयक के तौर पर विधानसभा में रखा जाएगा।

सरकार ने मध्यप्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा-43 में संशोधन करते हुए यह निर्णय लिया है। सरकार के इस फैसले से अविश्वास प्रस्ताव झेल रहे नगर पालिकाओं और नगर परिषदों के अध्यक्ष व उपाध्यक्षों को बड़ी राहत मिलेगी। उन्हें हटाना अब आसान नहीं होगा। जब तक तीन चौथाई पार्षद पालिका या परिषद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के खिलाफ नहीं होंगे, तब तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा। 

पहले क्या थी व्यवस्था

आपको बता दें कि पहले निर्वाचित अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के खिलाफ दो तिहाई पार्षद अविश्वास प्रस्ताव ला सकते थे। प्रदेश में हाल ही में कुछ नगर पालिकाओं एवं नगर परिषदों में अध्यक्ष व उपाध्यक्षों पर अविश्वास प्रस्ताव का खतरा मंडरा रहा था। लिहाजा, सरकार ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए अब अधिनियम में संशोधन किया है। 

डिप्टी सीएम ने दी जानकारी

डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल ने कैबिनेट फैसलों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि नगरीय निकाय में अब दो साल की जगह तीन साल में अविश्वास प्रस्ताव आएगा। नगर पालिका अध्यक्ष 3 साल के पहले नहीं हटेगा। मध्यप्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43 में संशोधन का प्रस्ताव पास हो गया है। अविश्वास प्रस्ताव के लिए अब दो तिहाई की जगह तीन चौथाई बहुमत जरूरी होगा।

मेयर को अभी दूर रखा

सरकार ने इस नियम से महापौरों को बाहर रखा गया है। इसके पीछे वजह यह है कि मध्यप्रदेश में मेयर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होता है। यानी मेयर को सीधे जनता चुनती है। मेयर को हटाने के लिए प्रक्रिया ऐसी है कि कुल पार्षदों में से छठवें भाग के बराबर यदि पार्षद अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोलते हैं तो कलेक्टर मेयर को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। 

क्यों लिया यह फैसला

दरअसल, मध्यप्रदेश में 22 जुलाई को​ निकायों के चुनाव के दो साल पूरे हुए हैं। ऐसे में हाल ही में कुछ नगरीय निकायों में बगावत के सुर उठ रहे थे। अध्यक्षों के खिलाफ पार्षदों ने मोर्चा खोल दिया था, चूंकि अध्यक्ष बीजेपी समर्थित थे। लिहाजा, सरकार ने अब अधिनियम में संशोधन किया है। 

यहां उठे थे विरोध के सुर

प्रदेश में कुछ स्थानों पर नगर सरकार के अध्यक्षों के खिलाफ उपाध्यक्षों एवं पार्षदों ने मोर्चा खोला था। इसमें भिंड, बीनागंज-चांचौड़ा, गुना और मुरैना जिले का बानमौर निकाय शामिल है। अलग-अलग मुद्दों पर इसे लेकर पार्षद विरोध में उतरे थे, हालांकि समझाइश के बाद ये मान गए थे। अब सरकार के संशोधन से अध्यक्ष एवं उपाध्यक्षों को हटाना और कठिन होगा।

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