MP News: आज हर क्षेत्र में महिलाऐं खुद को साबित कर रही हैं। राजनीति, सरकारी सेवाओं सभी जगह महिलाओं की भागीदारी 33% करने की बात की जा रही है। हालांकि, इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2025 की बात करें तो कहीं भी महिलाओं की भागीदारी अपेक्षा के मुताबिक नहीं है। रिपोर्ट से पता चलता है कि अगर प्रदेश में पुलिस और दूसरे न्याय क्षेत्रों में महिलाओं की भर्ती का यही सिलसिला रहा तो उनकी भागीदारी 33% होने में कम से कम 80 साल लगेंगे।
देश में सिर्फ आंध्रप्रदेश और बिहार ही दो ऐसे राज्य हैं, जो इस भागीदारी को जल्दी ही पूरा करने वाले हैं। इन दोनों राज्यों मेें महिलाओं की 33% भागीदारी पूरी करने में मात्र 3.3 साल लगेंगे। जबकि विकसित माने जाने वाले राज्य महाराष्ट्र में यह काम पूरा करने में 12 साल और गुजरात में 13 साल लग जाएंगे। रिपोर्ट में देश के सभी राज्यों की कोर्ट, पुलिस, जेल और कानूनी सहायता से जुड़ी व्यवस्थाओं का विश्लेषण किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, मप्र में सुधार के प्रयासों के बावजूद अभी भी कई गंभीर खामियां हैं।
उच्च पदों पर कम महिलाएं
रिपोर्ट के अनुसार, देश भर के पुलिस बल की बात करें तो इसमेंं 90 प्रतिशत महिलाएं कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं। जिम्मेदारी वाली भूमिका दी जाने वाली महिलाओं की संख्या 1000 से भी कम है। यानी डीजीपी व एसपी जैसे उच्च पदों पर कम महिलाएं कार्यरत हैं। जेलों में भी महिला अधिकारियों की संख्या कम है।
हाई कोर्ट में सिर्फ 3% महिला जज
मध्य प्रदेश की निचली अदालतों में महिला जजों की भागीदारी 40.6% है, लेकिन हाई कोर्ट में यह आंकड़ा सिर्फ 3% है। यह न्यायिक निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी की गंभीर कमी को दर्शाता है।
एससी-एसटी में अब भी रिक्तियां
जातिगत आरक्षण के तहत मप्र में एससी (SC) को 16% और एसटी (ST) को 20% आरक्षण मिला हुआ है। इनमें से एससी के 82% और एसटी के 58% पद भरे गए हैं। जबकि ओबीसी (OBC) वर्ग में 14% आरक्षण के मुकाबले 112% पद भरे गए हैं। इसका मतलब है कि ओबीसी वर्ग में अपेक्षा से अधिक नियुक्तियां हुई हैं।
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हाई कोर्ट में 37.7% पद रिक्त
मध्यप्रदेश में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 50 जज होने चाहिए, लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा सिर्फ 21.8 जज है। इनमें हाई कोर्ट में 2.7 जज और निचली अदालतों में 19.1 जज तैनात हैं।
इसके अलावा, हाई कोर्ट में 37.7% पद रिक्त हैं। यहां 30% मामले ऐसे हैं जो 20 साल से भी पुराने हैं, जबकि 0-5 साल पुराने मामले 42.2% हैं। यह न्याय मिलने में देरी की गंभीर स्थिति दर्शाता है।
ओवरऑल रैंकिंग सुधरी लेकिन यहां पीछे
रिपोर्ट में मध्यप्रदेश की ओवरऑल रैंकिंग 7वीं है जो पहले से बेहतर है। 2022 में 8वीं, 2020 में 16वीं रैंकिंग थी। पुलिस व्यवस्था में पिछली बार 7वीं रैंक थी जो गिरकर अब 11वीं रैंक हो गई है। कानूनी सहायता में प्रदेश 14वीं से 9वीं रैंक पर आ गया है।
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