170 करोड़ साल पहले एमपी में था महासागर, 18 साल तक की रिसर्च में हुआ खुलासा

रिसर्च में सामने आया कि आज जो भारत का नक्शा हैं उसे बनने में 50 करोड़ साल लगे हैं। भारत का भू-भाग बनने की प्रक्रिया लगभग 150 करोड़ साल पहले शुरू हुई थी।

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Deeksha Nandini Mehra
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पृथ्वी के स्वरूप, महाद्वीप और सागरों के विस्तार की पुरानी स्थिति जानने को लेकर दुनियाभर में रिसर्च हो रहे हैं। ऐसा ही एक शोध राजस्थान यूनिवर्सिटी के भू- वैज्ञानिक प्रो. एमके पंडित की रिसर्च टीम द्वारा किया गया है। 18 साल तक की गई रिसर्च में सामने आया है कि आज से 170 साल पहले मध्यप्रदेश में एक महासागर था। इसके कई प्रमाण रिसर्च में मिले है। आइए जानते हैं इस रिसर्च रिपोर्ट में सामने आई जानकारी।

पहले नहीं जुड़े थे ये पांच भू- भाग  

रिसर्च में सामने आया कि आज जो भारत का नक्शा हैं उसे बनने में 50 करोड़ साल लगे हैं। भारत का भू-भाग बनने की प्रक्रिया लगभग 150 करोड़ साल पहले शुरू हुई थी। देश का मौजूदा भू-भाग दक्षिण में कर्नाटक-आंध्र व तेलंगाना, दक्षिण पूर्व में छत्तीसगढ़-ओडिशा, पूर्व में झारखंड-ओडिशा, मध्य में बुंदेलखण्ड और उत्तर पश्चिम में अरावली क्षेत्र के आपस में जुड़ने से बना। रिसर्च में पता चला कि पहले ये पांचों भू-भाग नहीं जुड़े थे। इन भूखंडों की उम्र 300 करोड़ साल से ज्यादा है।

170 करोड़ साल पहले की स्थिति

नक्शे से पता चलता है कि तीन प्रमुख दक्षिण भूभाग वर्तमान से दक्षिण में थे, इनकी आपस की स्थिति अलग थी। समय के साथ उनकी स्थिति में परिवर्तन आया और यह खिसक कर उत्तरी भूभागों से जुड़ गए। पश्चिमी राजस्थान, थार, पाकिस्तान और ओमान अरावली से आकर जुड़ा और देश के भौगोलिक एकीकरण की प्रक्रिया 100 करोड़ साल पहले पूरी हुई।

एमपी में महासागर के प्रमाण 

रिसर्च में प्रमाण मिले कि 170 करोड़ साल पहले मध्य भारतीय क्षेत्र में एक महासागर था, जिसे टीम ने ‘गोटोसिंधु’ नाम दिया। अभी तक एकीकरण की पुख्ता जानकारी नहीं थी। इससे दुनिया की प्राचीन स्थिति को लेकर सटीक शोध होने का रास्ता प्रशस्त हुआ। 

भारतीय भू-भाग पर शोध केंद्रित

राजस्थान यूनिवर्सिटी के भू-वैज्ञानिक प्रो. एमके पंडित के साथ फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के प्रो. जोसेफ मर्ट भी प्रमुख भूमिका में रहे। दोनों प्रोफेसर ने भारतीय भू-भाग पर अपना शोध केंद्रित किया। रिसर्च का प्रोजेक्ट तैयार कर ‘नेशनल साइंस फाउंडेशन, अमेरिका’ को सौंपा। यहां से मंजूरी मिलने के बाद फंडिग हुई। फिर शोध हुआ।

गोंडवाना रिसर्च ने किया प्रकाशित

फ्लोरिडा विश्वविद्यालय की लैब में चट्‌टानों के पुराचुंबकीय गुणों और रेडियोधर्मी आयु की गणना हुई। इसके लिए पुराने 5 भूखंडों की सैकड़ों चट्‌टानों से 2 हजार नमूने लैब में जांचे गए। इस रिसर्च को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देते हुए प्रतिष्ठित रिसर्च जनरल गोंडवाना रिसर्च ने इसे प्रकाशित किया है। 

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deeksha nandini mehra

Gotosindhu प्रो. एमके पंडित फ्लोरिडा विश्वविद्यालय एमपी में महासागर के प्रमाण