संजय गुप्ता@INDORE.
शहर के जाने- माने बिल्डर शरद डोसी ( Builder Sharad Dosi ) के 2020 में विवादों में आए प्रोजेक्ट मालवा वनस्पति प्रोजेक्ट ( malwa vanaspati project ) पानी में चला गया है, इससे निवेशकों के करोड़ों रुपए डूब सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि डोसी बिल्डर ने दलालों के माध्यम से डायरी पर कच्चे में पैसा लेकर प्रोजेक्ट की बुकिंग की थी, लेकिन प्रोजेक्ट की मंजूरी इंडस्ट्रियल थी। रेरा ने इसे लेकर कार्रवाई की, मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा तो अब यहां साफ हो गया कि इस प्रोजेक्ट में आवासीय, कमर्शियल उपयोग नहीं होगा और ऐसा हुआ तो रेरा कार्रवाई करेगा। खुद मालवा कंपनी ने लिखकर हाईकोर्ट में दे दिया कि वह आवासीय, व्यावसायिक उपयोग नहीं करते हुए केवल फ्लैटेड इंडस्ट्रियल ही उपयोग करेगा।
इस प्रोजेक्ट में पूर्व विधायक भी शामिल
इस प्रोजेक्ट में शरद डोसी के साथ इंदौर से कांग्रेस के एक पूर्व विधायक भी पार्टनर हैं, हालांकि कागजों में कहीं भी उनके नाम का उल्लेख नहीं है। ये विधायक कांग्रेस छोड़कर हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए हैं। इसके अलावा डोसी बिल्डर की इस कंपनी में वीरेंद्र कुमार मोहता, रमेश श्रीनारायण साबू, पी. राव, रमेशचंद्र पूनमचंद जैन, विजय सोलंकी, रेखा वीरेंद्रकुमार मोहता व अन्य शामिल हैं।
हाईकोर्ट में मालवा वनस्पति कंपनी ने दिया एफीडेविट
हाईकोर्ट इंदौर में मालवा वनस्पति एंड केमिकल कंपनी लिमिटेड की और से गोविंदलाल सडानी ने एफीडेविट दिया है। इसमें कंपनी ने गलती मानते हुए कहा कि हमने असावधानी के चलते इस प्रोजेक्ट में दो प्लॉट खुले में बेच दिए थे। लेकिन जानकारी में आने के बाद इन्हें निरस्त कर दिया है और हम आगे किसी को भी प्ल़ॉट नहीं बेचेंगे और केवल फ्लैटेड इंडस्ट्री का ही यूज करेंगे। प्रोजेक्ट का किसी तरह का आवासीय और कमर्शियल यूज नहीं किया जाएगा। इस एफीडेविट के बाद हाईकोर्ट डबल बैंच ने कहा कि जब याचिकाकर्ता ने लिखकर दे दिया है तो फिर इसमें दखल की जरूरत नहीं है। लेकिन जो लिखकर दिया है उसका पालन किया जाए और यदि ऐसा नहीं होता है रेरा (RERA) अपने स्तर पर इसमें कार्रवाई कर सकती है।
कलेक्टर रहते मनीष सिंह की यह कार्रवाई हुई थी
मालवा वनस्पति की जमीन भागीरथपुरा में सर्वे नंबर 81. 82, 83, 84/2, 85, 86/1/1, 86/2, 86/3, 87/1/1 की कुल 11.464 हेक्टेयर है। कंपनी ने यहां पर 9.584 हेक्टेयर में फ्लैटेड इंडस्ट्री का नक्शा टीएंडसीपी से पास कराया, क्योंकि इस जमीन का लैंडयूज इंडस्ट्री है। टीएंडसीपी से नक्शा दिसंबर 2018 में पास हुआ और निगम से मंजूरी मई 2029 में हुई। इसके बाद यहां दलालों के जरिए खुले प्लॉटिंग कर बिक्री कर अवैध कमाई शुरू हो गई। कलेक्टर मनीष सिंह के पास शिकायत आने पर उन्होंने तत्कालीन एडीएम अजय देव शर्मा, चीफ प्लानर निगम और टीएडंसीपी अधिकारियों की कमेटी बनाकर जांच कराई और इसमें कई तरह की अनियमितता पाई। इसके बाद प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी गई और इसके लिए कलेक्टर मनीष सिंह ने रेरा एक्ट के तहत कार्रवाई के लिए सितंबर 2020 में रेरा को पत्र लिख दिया।
रेरा ने यह एक्शन लिया
रेरा ने इस रिपोर्ट के आधार पर कंपनी पर एक्शन लेते हुए इस पर 2.27 करोड़ रुपए की पेनल्टी लगा दी। रेरा ने बताया कि कलेक्टर की रिपोर्ट में साफ लिखा था कि यहां पर जो मंजूरी ली थी वह फ्लैटेड इंडस्ट्री जैसा कुछ नहीं था और प्लॉट बेचे जा रहे थे। जो मौके पर इंफ्रास्ट्रक्चर और सेटअप मिला, वह भी बता रहा था कि इसका व्यावसायिक और आवासीय तरीके से हो रहा है। जबकि रेरा द्वारा इसकी मंजूरी नहीं ली गई है। इन अनियमितताओं के बाद प्रोजेक्ट पर रोक लग गई और रेरा ने भी इसमें पेनल्टी लगा दी।
हाईकोर्ट ने पेनल्टी रोकी, साथ ही लैंडयूज भी
सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट डबल बैंच ने रेरा द्वारा लगाई गई पेनल्टी को रोक दिया है। साथ ही कहा कि याचिकाकर्ता अपने दिए एफीडेविट का पालन करें और इसका आवासीय व व्यावसायिक उपयोग नहीं किया जाए। ऐसा होने पर रेरा कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है
डायरियों पर पहले ही माल बेच चुके शरद डोसी
मालवा वनस्पति के प्रोजेक्ट पूरा होने से पहले ही शरद डोसी व कंपनी के अन्य मिलकर इस प्रोजेक्ट में करीब 100 करोड़ का माल आवासीय व कमर्शियल बताकर पहले ही डायरियों पर बेच चुके हैं। यह सौदे दलाल उमेश डेंबुला और संजय मालानी के जरिए हुए थे। इस मामले में तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने डायरियों पर सौदे करने वाले दलालों पर सख्ती करते हुए बाउंडओवर कराया था। इसमें डेंबुला और मलानी दोनों ही शामिल थे। इन दोनों ने सौदे करना कबूला था और इसके बाद इन पर बाउंडओवर की कार्रवाई भी हुई थी।
300 करोड़ से ज्यादा का है प्रोजेक्ट
यह प्रोजेक्ट करीब 10 हेक्टयर का है। इसकी कीमत 300 करोड़ रुपए से ज्यादा की है। यह प्रोजेक्ट शुरू से ही विवादों में रहा है। इस जमीन को शुरू में तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने सरकारी घोषित कर दिया था, क्योंकि यह जमीन इंडस्ट्री के लिए होलकर रियासत के समय ली गई थी। इसे जिला प्रशासन ने शासकीय माना था, लेकिन बाद में कंपनी के हक में फैसला हो गया। इस जमीन के नामांतरण के समय भी विवाद हुआ था। तहसीलदार ने आपत्ति के लिए 15 दिन के समय देने की बात कही लेकिन इसके लिए सूचना समय समाप्ति के कुछ दिन पहले ही जारी कराई। इसके बाद तत्कालीन कलेक्टर निशांत वरवड़े के समय जमीन का नामांतरण हो गया और फिर यह प्रोजेक्ट आ गया। क्योंकि जमीन का इंडस्ट्रियल लैंडयूज था, ऐसे में टीएंडसीपी ने प्रोजेक्ट यही मान्य किया, जबकि शुरू से कोशिश रही कि आवासीय और कमर्शियल कर दिया जाए। लेकिन यह जब नहीं हुआ तो फिर इस जमीन पर फ्लैटेड इंडस्ट्रियल नक्शा, मंजूरी ली और सौदे कमर्शियल और आवासीय कर डाले।
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