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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को इंदौर के पर्यावरण प्रेमियों ने एक पत्र जारी किया है। जिसमें हुकुमचंद मिल परिसर में वर्षों से विकसित हुए प्राकृतिक शहरी वन (Urban Forest) को संरक्षित करने की मांग की है। नागरिकों ने पत्र में आग्रह किया है कि बिना वैज्ञानिक परीक्षण और पर्यावरणीय मूल्यांकन के इस क्षेत्र में कोई भी निर्माण या विकास कार्य न किया जाए।
हुकुमचंद मिल की जमीन बनी प्राकृतिक फेफड़ा
पत्र में नागरिकों ने मुख्यमंत्री द्वारा पूर्व हुकुमचंद मिल की भूमि के अधिग्रहण और उससे मिले फंड से वर्षों से लंबित कर्मचारियों की देनदारियों के भुगतान के फैसले की सराहना की है। उन्होंने लिखा है कि यह निर्णय मानवीय, संवेदनशील और दूरदर्शी रहा। अब जबकि यह भूमि वर्षों से खाली रही, तो यहां स्वतः एक हरित क्षेत्र विकसित हो चुका है, जो अब इंदौर जैसे औद्योगिक शहर का प्राकृतिक फेफड़ा बन चुका है।
पर्यावरणीय महत्व की ओर ध्यान दिलाया
नागरिकों ने कहा कि यह शहरी जंगल इंदौर के तापमान को संतुलित रखने, हवा की गुणवत्ता सुधारने, जैव विविधता को संजोने और नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ऐसे में यदि इसे बिना वैज्ञानिक परीक्षण के हटाया गया, तो इसका सीधा असर इंदौर की पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर होगा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला
पत्र में टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपद बनाम भारत संघ (W.P. (C) No. 202/1995) और एमसी मेहता बनाम भारत संघ (AIR 2004 SC 4016) जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि "वनों और हरित क्षेत्रों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है और यह जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) से जुड़ा हुआ है।" साथ ही नागरिकों ने संविधान के अनुच्छेद 48A और 51A(g), और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 का उल्लेख करते हुए आग्रह किया कि Environmental Impact Assessment (EIA) के बिना किसी भी गतिविधि को आगे न बढ़ाया जाए।
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पर्यावरण प्रमियों की चार प्रमुख मांगें
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सेटेलाइट आधारित वृक्ष गणना एवं जैव विविधता का वैज्ञानिक आकलन कराया जाए।
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पर्यावरणीय रिपोर्ट व डेटा सार्वजनिक किए जाएं।
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विकास से पूर्व प्रतिपूरक वृक्षारोपण और संरक्षण योजना बनाई जाए।
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स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति से समीक्षा कराई जाए और उसके सुझावों के अनुसार ही कार्यवाही हो।
भविष्य में लोगाें को होगा बड़ा फायदा
नागरिकों का कहना है कि यदि इस क्षेत्र को एक संरक्षित शहरी वन के रूप में सुरक्षित रखा जाता है, तो यह न केवल इंदौर के लिए बल्कि पूरे मध्य प्रदेश के लिए हरित नेतृत्व का उदाहरण होगा। इससे भावी पीढ़ियों को न केवल शुद्ध पर्यावरण मिलेगा, बल्कि इंदौर के नागरिक मुख्यमंत्री के इस निर्णय के लिए सदैव आभार प्रकट करते रहेंगे।
पांच हजार से ज्यादा पेड़ काटने का विरोध
असल में मप्र सरकार ने इंदौर के ऑक्सीजन और वाटर रिचार्ज जोन को खत्म करने के लिए सहमति दे दी है। यहां पर बने हुए सैकड़ों साल पुराने जंगल को खत्म कर कमर्शियल और रेसिडेंशियल कॉम्लेक्स बनाने के लिए हाउसिंग बोर्ड को पिछले दिनों हरी झंडी दे गई दी है। इसके बाद से ही शहर की संस्थाओं और समाजसेवियों ने शहर को बचाने के लिए एक बार फिर से कमर कस ली है। सभी ने एक सुर में कहा कि वायु प्रदूषण, सूखे और भीषण गर्मी से जूझते इस इंदौर को अब और बर्बाद नहीं करने दिया जाएगा। यहां पर पांच हजार से अधिक पेड़ों को काटने, तालाब को सुखाने और कुओं को बंद करने की योजना पर काम शुरू हो गया है।
यह है पूरा मामला
इंदौर के मध्य में स्थित हुकुमचंद मिल की जमीन सरकार ने हाउसिंग बोर्ड को दे दी है। हाउसिंग बोर्ड यहां पर कमर्शियल और रेसिडेंशियल कॉम्लेक्स बनाएगा और फ्लैट, दुकानें आदि बनाकर बेचेगा। यहां पर पांच हजार से अधिक प्राचीन पेड़ हैं और सैकड़ों साल से बना प्राकृतिक जंगल है जिसमें लाखों जीव जंतु निवास करते हैं। जनता की नजर से दूर यह जंगल इंदौर के सबसे खूबसूरत प्राकृतिक स्थलों में से एक है।
नया जंगल बनाने के लिए फिर करोड़ों रुपए कर्ज लेंगे
शहर के समाजसेवियों का कहना है कि इसे सिटी फारेस्ट घोषित कर दिया जाए। एक तरफ तो हम प्राचीन जंगल को काट रहे हैं और दूसरी तरफ स्कीम-97 में खाली पड़ी 42 एकड़ जमीन पर सिटी फारेस्ट बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि बने बनाए जंगल को काटकर जमीन बेची जा रही है और नया जंगल बनाने के नाम पर फिर से करोड़ों रुपए निकाल लिए जाएंगे। यह कैसा इंसाफ है।