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इंदौर कांग्रेस शहराध्यक्ष के पद पर लगातार पर्दे के पीछे उठापटक जारी है। यह दौर बीते साल जुलाई 2024 से ही जारी है, जब कांग्रेस के दफ्तर गांधी भवन पर बीजेपी के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय पहुंचे थे और उनकी कांग्रेसियों ने जमकर आवभगत की थी। तब चड्ढा को हटाने के लिए निलंबन पत्र तक बना लेकिन इसके बाद मामला ठंडा हुआ और खुद मप्र के प्रभारी जितेंद्र सिंह ही बदल गए। अभी भी लगातार इस पद के लिए कई दावेदारों के नाम उठ रहे हैं।
क्यों बने रहेंगे सुरजीत सिंह चड्ढा
दावेदारों के नाम के पहले बात करते हैं कि क्यों चड्ढा बने रहेंगे। तो इसकी सीधी वजह है कि एक दावेदार आता है तो दूसरे उसके विरोधी खड़े हुए हैं जैसे हमेशा कांग्रेस में परंपरा है। इनके इतने विरोधी हैं कि वह आपस में उलझ गए हैं और इसी लड़ाई के चलते चड्ढा की कुर्सी पर कोई बड़ा खतरा दूर-दूर तक नहीं है। वहीं उनका कार्यकाल भी अभी पूरा नहीं हुआ है। ऐसे में उन्हें हटाने की कोई ठोस वजह संगठन के पास नहीं है और ना ही विकल्प है।
अब बात दावेदारों की करते हैं
विपिन वानखेड़े
यह नाम हाल के समय में तेजी से उभरा। एससी वर्ग का चेहरा होने के नाते नाम आगे आया। लेकिन इसमें एक तो कांग्रेस के पूर्व मंत्री और इसी वर्ग के सीनियर नेता उन्हें किसी भी की पोस्ट पर नहीं चाहते हैं, ताकि उनकी इस वर्ग की नेतागिरी में कोई अड़चन नहीं हो। दूसरा इंदौर शहर में कोई एससी सीट है ही नहीं, फिर यहां यह चेहरा लाने का क्या मतलब है। इसे लेकर इंदौर के कई नेता उच्च स्तर पर अपना विरोध जता चुके हैं। इसके चलते इनके नाम की चली मुहिम ठंडी हो गई है।
अरविंद बागड़ी
मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी इनके नाम को लेकर बहुत संजीदा रहते हैं। लेकिन इनके नाम को लेकर अन्य नेताओं का विरोध है और जिस तरह से पार्टी में अब बीजेपी छाप या फूलछाप नेताओं को लेकर विरोध है, उससे इनका भला होते फिलहाल नहीं दिखता है। यह भी बड़े मंच पर बीजेपी नेताओं के साथ दिखने में कोई कसर नहीं रखते हैं। बीते बार भी अध्यक्ष बनाया था लेकिन एक दिन में ही विरोध हो गया और होल्ड हुए और फिर हटा दिए गए।
अमन बजाज
युवा नेता के तौर पर इनका नाम उठता रहता है। खुद भी लगातार इसके लिए जुटे रहते हैं। लेकिन ना ऐसा कोई पुराना काम है, ना बहुत समर्थकों की भीड़ है कि जिसे दिखाकर उनके नेता उन्हें इस पद पर पहुंचा सके। ऐसे में कमजोर दावेदारी से वह दौड़ में नहीं आते हैं।
अश्विन जोशी
इनका नाम भी था, लेकिन यह ज्यादा रुचि नहीं रख रहे थे और अब तो एआईसीसी डेलीगेट में आ चुके हैं, तो फिर कोई दावेदारी भी नहीं रही है। उन्हीं की तरह जय हार्डिया भी जो जीतू पटवारी के खास हैं, वह डेलीगेट नियुक्त हो चुके हैं।
ग्रामीण में बदलाव तय, बस समय की बात
उधर ग्रामीण जिलाध्यक्ष इंदौर में सदाशिव यादव का दो टर्न पूरा हो चुका है और वह 6 साल से अधिक समय से पद पर बने हुए हैं। उनकी जगह राधेश्याम पटेल का ही नाम सबसे आगे है। यादव के समय कांग्रेस की ग्रामीण में ऐसी कोई खास तरक्की नहीं हुई। ग्रामीण में जो साल 2018 में सांवेर, देपालपुर सीट जीती थी, वह भी 2023 आते-आते गंवा दी और पूरे जिले में कांग्रेस की एक भी सीट नहीं है। ग्रामीण में अधिकांश नेता बीजेपी में जा चुके हैं। सांवेर से तुलसी सिलावट तो सिंधिया के साथ ही मार्च 2020 में बीजेपी में चले गए थे। बाद में 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद देपालपुर से पूर्व विधायक विशाल पटेल, महू से चुनाव लड़े पंडित रामकिशोर शुक्ला, महू से कांग्रेस के पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार यह सभी अब बीजेपी में हैं।
सुरजीत के पक्ष में यह बातें
सुरजीत के कार्यकाल में कांग्रेस संगठन को सभी विधानसभा सीट गंवानी पड़ी, लोकसभा में तो उम्मीदवार भी भाग कर बीजेपी में चला गया। लेकिन उनके ऊपर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का हाथ है, दूसरी बात उन्हें खुद चुनाव लड़ने का कोई शौक नहीं है, ऐसे में वह संगठन में बने रह सकते हैं और दूसरा उनसे समस्या पार्टी स्तर पर फिलहाल किसी को नहीं है। कुल मिलाकर वह सब्जी में आलू की तरह सभी को पसंद है, जिसके चलते उनके पद पर फिलहाल कोई खतरा नहीं है, जब तक कि कोई मजबूत व्यक्ति संगठन को मिल नहीं जाता है।
चिंटू चौकसे, राजू भदौरिया, पिंटू जोशी का क्या
बात कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं की तो फिर इंदौर से चिंटू चौकसे का नाम है, लेकिन वह नेता प्रतिपक्ष निगम में हैं, ऐसे में वह जुलाई 2027 तक दो पद पर नहीं आ सकते हैं। उनके खास राजू भदौरिया की बात उठती है लेकिन वह भी केवल विधानसभा दो में अपने वार्ड तक ही सीमित हैं और फिर एक ही विधानसभा वालों को सभी पद नहीं दिए जा सकते हैं। पिंटू जोशी को जीतू पटवारी बनाएंगे नहीं, उधर विनय बाकलीवाल अब प्रदेश कमेटी में हैं और लंबे समय तक शहराध्यक्ष रह चुके हैं तो अब उनकी दावेदारी भी ठंडी है।
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