संजय गुप्ता@ INDORE.
नगर निगम के फर्जी बिल घोटाले ( Corporation bill scam ) की आंच में अब सीनियर IAS भी आ रहे हैं। गिरफ्तार इंजीनियर अभय राठौर की पत्नी के कोर्ट में दिए शपथ पत्र ने इंदौर से लेकर भोपाल तक हलचल मचा दी है। राठौर के अधिवक्ता मनोहर दलाल ने इस खेल में सबसे अहम भूमिका मनीष सिंह और प्रतिभा पाल ( Pratibha Pal ) के होने के आरोप लगाए हैं। वहीं इन आरोपों पर नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ( Kailash Vijayvargiya ) ने साफ कर दिया है कि कोई भी प्रभावशाली अधिकारी हो, यदि उसने भ्रष्टाचार किया है तो वह सलाखों के पीछे जाएगा, यह सीएम मोहन यादव की सरकार है।
विजयवर्गीय बोले- पवन शर्मा का नाम नहीं
शपथ पत्र में मनीष सिंह ( IAS Manish Singh ), प्रतिभा पाल के साथ ही तत्कालीन इंदौर संभागायुक्त पवन शर्मा का नाम आने के सवाल पर मंत्री विजयवर्गीय ने साफ कहा कि इसमें पवन शर्मा का नाम नहीं है, लेकिन अन्य दो-तीन अधिकारियों के नाम जरूर है। अधिकारी कितना भी प्रभावशाली हो, यदि उसने भ्रष्टाचार किया है, यह पैसा इंदौर की जनता का है। उसके टैक्स से निगम का खजाना भरा है, तो कोई भी भ्रष्टाचार के जरिए उड़ा कर नहीं ले जाएगा। उन्होंने कहा कि हम शपथपत्र की भी जांच करेंगे वह एकदम प्रूफफुल हो यह भी जरूरी नहीं, लेकिन मुझे जो जानकारी आई है, अधिवक्ता का बयान भी सुना है। यदि किसी की भी गलती होगी तो सख्त एक्शन लेंगे।
अधिवक्ता दलाल ने लगाए गंभीर आरोप
उधर, राठौर के अधिवक्ता मनोहर दलाल ने खुलकर आरोप लगाए और कोर्ट में भी यह बात कही कि राठौर ने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया। यह पूरा खेल तत्कालीन निगमायुक्त मनीष सिंह द्वारा शुरु किया गया, उन्होंने खुद को बचाने के लिए दो करोड़ तक के वित्तीय अधिकारी अपर आयुक्तों को दे दिए, ताकि उनकी कलम नहीं फंसें। बाद में जब मेयर इन काउंसिल नहीं थी, तब संभागायुक्त पवन शर्मा निगम प्रशासक थे, उस समय पूरी गैंग ने जमकर भ्रष्टाचार का खेल किया और इसमें प्रतिभा पाल ने अधिकारों का दुरूपयोग किया। इसमें यह सभी अधिकारी, इंजीनियर सुनील गुप्ता व अन्य शामिल थे।
शपथपत्र में हर साल 12 करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप
राठौर की ओर से अधिवक्ता ने शनिवार ( 1 जून ) को कोर्ट में बताया था कि नगर निगम ने 300 कर्मचारियों को आउटसोर्स से लिया हुआ है और इन्हें घरेलू नौकर के तौर पर राजनीतिक दलों के प्रभावशाली नेताओं, सेवानिवृत्त अधिकारियों, पूर्व पार्षदों, अधिकारियों के यहां लगाया गया है। इनकी उपस्थिति निगम में फर्जी तरीके से दिखाई जाती है और राशि का खर्चा नगर निगम द्वारा हर साल 12 करोड़ रुपए उठाया जाता है। यह व्यय महापौर मालिनी गौड़ के समय भी आयुक्त द्वारा किया जाता था। इसके बाद प्रतिभा पाल ने निगमायुक्त रहते हुए किया, ताकि कोई उनकी शिकायत नहीं करें। उन्होंने संभागायुक्त और तत्कालीन निगम प्रशासक पवन शर्मा के अधिकारियों का दुरूपयोग किया। निगम के 50 करोड़ रुपए के जनधन का दुरूपयोग किया और अपने अधीनस्थों के जरिए बंटवारा किया। आयुक्त खुद भ्रष्टाचार में लिप्त है। उल्लेखनीय है कि राठौर की और उनके साथी उदय सिंह भदौरिया की जमानत याचिका शानिवार को कोर्ट ने खारिज कर दी है।
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