IDA अहिल्या पथ स्कीम में सीईओ अहिरवार और प्लानर जगवानी ने इस तरह से किया पूरा खेल

इंदौर विकास प्राधिकरण की अहिल्या पथ स्कीम को लेकर हुए करोड़ों के खेल के आरोप लगे हैं। इस मामले में द सूत्र की पड़ताल में गंभीर खुलासे हुए, स्कीम अभी भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है।

Advertisment
author-image
Sanjay gupta
एडिट
New Update
Indore Development Authority Ahilya Path Scheme
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) अपनी कार्यशैली के चलते लगातार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरा हुआ है। टीपीएस 9 में मास्टर प्लान की रोड मोड़कर खास बिल्डर को फायदा पहुंचाने का मामला रहा हो या स्टेडियम की जमीन खास लोगों को देने का खेल या फिर सुपर कॉरिडोर पर एक खास बिल्डर के होटल प्रोजेक्ट में जमीन की रजिस्ट्री कराने की तेजी का मामला। अब आईडीए की आ रही अहिल्या पथ स्कीम को लेकर हुए करोड़ों के खेल के आरोप लगे हैं। द सूत्र ने इस मामले की पूरी पड़ताल की तो इसमें गंभीर खुलासे हुए, स्कीम अभी भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है।

दोनों सिंह ने कोशिश की स्कीम शुद्ध हो जाए

हालांकि संभागायुक्त दीपक सिंह और कलेक्टर आशीष सिंह ने इस स्कीम को शुद्ध करने के लिए स्कीम के पहले हुई टीएंडसीपी की विकास मंजूरी रोकने और काम नहीं होने पर स्कीम से मुक्त नहीं करने का फैसला लिया है। कलेक्टोरेट विकास मंजूरी, निगम भवन अनुज्ञा नहीं देगा और जहां विकास नहीं वह स्कीम से मुक्त नहीं होगी। लेकिन एक बड़ा खेला तो पहले ही हो चुका है।

आईडीए में कोई भी स्कीम लाने की यह होती है शुद्ध प्रक्रिया

  • आईडीए की कोई भी स्कीम गोपनीयता वाली होती है, ताकि पहले से किसी को सर्वे नंबर की जानकारी नहीं मिले। इसके लिए किसी भी स्कीम के लिए फाइल सीईओ और आईडीए की भूमि अर्जन शाखा से चलती है। इनके साथ आईडीए के प्लानर बैठते हैं और फिर गोपनीय बैठकें कर स्कीम की बाउंड्रीवाल तय होती है।
  • इस बाउंड्रीवाल में तय होता कि रोड के दोनों ओर कितने मीटर तक जमीन लेना है, जैसे सुपर कॉरिडोर में तय हुआ 500-500 मीटर, पीथमपुर इकॉनामिक कॉरिडोर में 300-300 मीटर तय हुआ।
  • इस बाउंड्रीवाल के पूरे सर्वे नंबर चेक करते हैं और सभी को स्कीम में लिया जाता है।
  • कोई भी स्कीम सीधी होती है, दोनों ओर समान मीटर तक जाने के चलते इसका एक फिक्स पैटर्न अलग दिखता है।
  • बोर्ड बैठक में स्कीम के साथ सर्वे नंबर आते हैं और फिर यह प्रस्ताव स्कीम घोषित करने का शासन को जाता है। वहां से स्कीम घोषित होने के साथ ही सर्वे नंबर जारी किए जाते हैं।

IDA Ahilya Path Scheme corruption 2

                                                                  अहिल्या पथ

इस तरह अहिल्या पथ बन गया भ्रष्टाचार का पथ

  • आईडीए के चेयरमैन जयपाल सिंह चावड़ा के समय नवंबर 2023 में ही इस स्कीम को लाने की बात बाजार में छोड़ दी गई। इसकी खबरें तक छप गई और गांव की जानकारी भी सामने आ गई। यानी गोपनीयता पूरी तरह तभी खत्म हो चुकी थी।
  • सबसे अहम बात स्कीम लाने की कोई भी फाइल कभी भी भू अर्जन विभाग से चली ही नहीं है, जो सबसे पहला कदम होता है।
  • यह काम केवल चावड़ा, आईडीए सीईओ अहिरवार, कांट्रेक्ट पर प्लानर बने मयंक जगवानी और उनकी टीम के सदस्य प्रदीप चौरसिया, सुरभि और आईडीए प्लानर रचना बोचरे के बीच रहा।
  • स्कीम का लब्बोलुआब इन लोगों ने ही तय किया और फिर दो दलालों के जरिए बाजार में जमीन मुक्त करने और लेने के लिए खेल शुरू हुआ। एक दलाल तो लगातार आईडीए सीईओ के चेंबर के बाहर ही बैठक करते रहे।
  • स्कीम की कोई तय बाउंड्रीवाल नहीं बनाई गई। ना तय हुआ कि रोड के दोनों ओर कितने मीटर तक जमीन लेना है।
  • सभी सौदे तय होने के बाद फिर रोड के दोनों और बाउंड्रीवाल बनाने का काम शुरू किया गया। इसमें जिसके सर्वे नंबर लेने या छोड़ने का मामला तय हुआ उस हिसाब से जमीन की बाउंड्रीवाल बनी।
  • इसके चलते पूरी स्कीम में कहीं पर जमीन रोड के 300 मीटर तक ली तो कहीं पर 700 मीटर तो कहीं पर 200 मीटर, यानी कोई फिक्स नियम नहीं रखा। इसके चलते स्कीम का पैटर्न फिक्स नहीं, बल्कि एक आड़ा-तिरछा अलग ही हो गया।
  • जनवरी से लेकर जून तक इस स्कीम को लेकर सौदे और खेल होते रहे, इस दौरान 30 बडे लोगों ने टीएंडसीपी भी करा ली और आईडीए से जुड़े एक कांट्रेक्टर ने तो वहां 30 एकड़ जमीन खरीद ली और भी किसानों को बयान देकर कई सौदे इस स्कीम के दायरे में हो गए।
  • जून में हुई आईडीए की बोर्ड बैठक में स्कीम लांच की गई, इसके साथ ही टीएंडसीपी पर रोक लग गई। लेकिन इसके पहले नवंबर से जून तक पूरा खेल हो चुका था।

IDA Ahilya Path Scheme corruption

इस तरह किसी स्कीम का फिक्स ले आउट होता है जो पीथमपुर कॉरिडोर में दिख रहा है, लेकिन अहिल्या पथ में नहीं है क्योंकि मनचाहे तौर पर स्कीम में सर्वे नंबर लिए गए। 

हद तो यह है बोर्ड बैठक के तीन दिन पहले फाइल यहां पहुंची

अब हद तो यह है कि आईडीए के भूअर्जन विभाग को स्कीम के पहले दिन शामिल किया जाता है, उसे सीईओ अहिरवार और जगवानी ने 13-14 अगस्त को बोर्ड बैठक (16 अगस्त) के दो-तीन पहले शामिल किया। उन्हें बाउंड्रीवाल बताकर फिर सर्वे नंबर तय हुए और बोर्ड में प्रस्ताव रख शासन को अब भेजा गया।

IDA Ahilya Path Scheme corruption 4

IDA Ahilya Path Scheme corruption 5

                    अहिल्या पथ स्कीम में आने वाले सर्वे तो कई महीने पहले ही बाजार में इस तरह आ चुके हैं। 

पूरी प्रक्रिया आउटसोर्स वाले जगवानी के हवाले चली

यह पूरी प्रक्रिया में गोपनीयता रखने की जगह आउटसोर्स पर कांट्रेक्ट पर लिए गए मयंक जगवानी और उनकी टीम के हवाले रखी गई। क्या चल रहा है यह आईडीए में सिर्फ और सिर्फ अहिरवार और जगवानी की जानकारी में रहा। प्लानर रचना बोचरे को अभी भी आईडीए के पूरे खेल की जानकारी नहीं है और उनकी इस अनभिज्ञता का पूरा फायदा इस टीम ने उठाया और मनचाहे तौर से स्कीम बनाई।

कौन है मयंक जगवानी, चार साल में पांच गुना हुआ वेतन

मयंक जगवानी को करीब चार साल पहले आईडीए में तब के प्लानर द्वारा मदद के लिए लाया गया था, क्योंकि तब आईडीए में प्लानर की कमी थी। उस समय जगवानी का वेतन मात्र 50 हजार रुपए प्रति माह था। लेकिन यह फिर 75 हजार , फिर सवा लाख रुपए से होते ही चार साल में पांच गुना हो गया और करीब ढाई लाख रुपए प्रति माह का भुगतान आईडीए द्वारा उन्हें किया जाता है। आईडीए ने उन्हें कमरा व अन्य संसाधन भी दिए हैं। हालत यह है कि वह आईडीए में बैठकर उन्हीं के रिसोर्स, कर्मचारी सभी का उपयोग करता है।

IDA Ahilya Path Scheme corruption 3

IDA Ahilya Path Scheme corruption 6

कई पहले ही स्कीम के दायरे में आने वाले सर्वे नंबर बाजार में आ चुके हैं इसके आधार पर ही जमीनों को पूरा खेल हो चुका है।

जगवानी ने शुरू कर दी लाइजनिंग

इंदौर में क्योंकि जमीन का खेल है और पूरे प्रदेश के बड़े लोगों की नजरें और निवेश दोनों यही पर है। इसका फायद जमकर जगवानी उठा रहा है, वह एक तरह से आईडीए अधिकारी के तौर पर ही टीएंडसीपी, अन्य विभाग, भोपाल सभी जगह लाइजनिंग में जुट गया है। आईडीए ने भी गोपनीय कामों में जगवानी को पूरा जिम्मा दे दिया है।

इस तरह बना पूरा नेटवर्क

आईडीए सीईओ अहिरवार ने पूरा जिम्मा मयंक जगवानी को सौंप दिया है, इसके साथ ही दो दलाल तो आईडीए में घूमते ही रहते हैं। इस तरह से पूरा नेक्सस बन चुका है जो बाजार में जमीन को स्कीम में मुक्त करने या शामिल करने के साथ एक और बड़ा खेल खेलते हैं। वह खेल है स्कीम में जिसकी जमीन ली है उसे प्लाट कहां दिया जाए। स्कीम में जिससे डील हो उसे मौके का, कार्नर का फ्रंट में प्लाट दिया जाता है और यह डील करोड़ों की होती है, वहीं जिससे डील नहीं हो और जो पॉवर फुल नहीं हो उसे पीछे प्लाट दे दिया जाता है। अब अहिल्यापथ स्कीम में अगला खेल यही होना है। इसके लिए कोई फिक्स नीति नहीं होती है।

thesootr links

 द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

इंदौर विकास प्राधिकरण Indore Development Authority इंदौर न्यूज इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह इंदौर अहिल्या पथ स्कीम में भ्रष्टाचार आईडीए में भ्रष्टाचार का मामला