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इंदौर के सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में 306 स्टाफ नर्स और नर्सिंग सिस्टर की भर्ती प्रक्रिया दोबारा करनी होगी। इसको लेकर पांच महीने पूर्व दिए गए हाईकोर्ट के निर्णय को लेकर दूसरे पक्ष ने री–अपील की थी। इस पर हाल ही में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार को आदेश जारी कर पूछा है कि अगर अस्पताल से नर्सिंग स्टाफ को हटा लिया जाए तो क्या वह अस्पताल चला सकते हैं। अगली सुनवाई में सरकार को अपना जवाब पेश करना है।
यह दिया था कोर्ट ने आदेश
हाईकोर्ट जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की खंडपीठ ने वर्ष 2021 में हॉस्पिटल में भर्ती के लिए जारी किए गए विज्ञापन व उसकी पूरी प्रक्रिया को खारिज कर दिया था। साथ ही नए सिरे से भर्ती के लिए आदेश फरवरी 2025 में जारी किया था। इसको लेकर 5 महीने से चल रही कोर्ट की सुनवाई में अब सरकार से यह भी पूछा है कि नए सिरे से भर्ती प्रक्रिया किस तरह से की जाएगी वह भी कोर्ट को बताएं।
यह जारी किया था विज्ञापन
एडवोकेट निमेश पाठक ने बताया कि महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के अधीन संचालित सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में वर्ष 2021 में 306 नर्सेस की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। इसमें महिलाओं से ही आवेदन को कहा गया था, इस कारण कई पुरुष दावेदार इसमें शामिल नहीं हो पाए थे।
याचिकाकर्ताओं ने इस आधार पर दी थी चुनौती
इस भर्ती प्रक्रिया को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से यह कहा गया कि सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल संचालन के लिए आए आवेदनों में से 30 फीसदी नर्सेस के हिसाब से 103 नर्स भर्ती के लिए ही विज्ञापन जारी किया जाना था। हालांकि ऐसा हुआ नहीं। यहां पर नर्स के पदों पर 100 फीसदी भर्ती कर डाली।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का दिया था हवाला
मामले में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व में जारी आदेशों का हवाला देते हुए आदेश दिया कि वैधानिक प्रावधानों के खिलाफ जाकर महिला उम्मीदवारों के पक्ष में 100 फीसदी आरक्षण नहीं हो सकता, इसलिए पूर्व में भर्ती के लिए जारी विज्ञापन और प्रक्रिया को निरस्त किया जाता है। हालांकि कोर्ट ने नया भर्ती विज्ञापन जारी करने की छूट दी है। साथ ही ये शर्त रखी है कि जो विज्ञापन जारी होगा, उत्तमें महिलाओं की नियुक्ति के विशेष प्रावधानों के तहत 30 फीसदी पद ही महिलाओं के लिए आरक्षित किए जा सकेंगे।
कोर्ट ने पूरी प्रक्रिया को ही गलत माना
एडवोकेट पाठक के मुताबिक चूंकि पूर्व में जो अंतरिम आदेश दिया गया था, वो अंतिम आदेश के अधीन था। कोर्ट ने इस मामले में पूरी प्रक्रिया को ही गलत माना है। ऐसे में पूर्व में जो नियुक्ति की गई थी, वो भी समाप्त हो गई है। अब नए सिरे से मर्ती करनी होगी।
स्वीकृत पद 415, काम कर रहीं 150
237 करोड़ की भारी भरकम लागत से वर्ष 2020 में सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल बनकर तैयार हुआ। 2021 से यहां मरीजों का उपचार शुरू हुआ। शुरुआत से लेकर अब तक कभी भी यहां सौ फीसदी स्टाफ नहीं रहा। डॉक्टरों, नर्स के पद हमेशा खाली रहे। अभी भी डॉक्टरों के आधे से ज्यादा पद खाली हैं। वहीं नसों के भी 415 से ज्यादा पद मंजूर हैं, लेकिन 150 नर्सें भी काम नहीं कर रहीं। इनमें भी 135 नर्स वे हैं, जिनकी भर्ती प्रक्रिया पर निरस्ती की तलवार लटकी है। मेल नसों की शिकायत पर कोर्ट ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जवाब मांगा था। उसके बाद महिला नसों ने भी याचिका लगाई थी। उन्हें राहत देते हुए कोर्ट ने स्टे दे दिया।
विशेषज्ञ भी पूरे नहीं
अस्पताल शुरू हुए चार साल हो गए, लेकिन अब तक विशेषज्ञों की कमी से जूझ रहा है। जितने डॉक्टरों की भर्ती की गई थी, उनमें से 10 से ज्यादा ने नौकरी छोड़ दी। कोई यहां जॉइन करने को तैयार नहीं है। स्थिति यह है कि जितने डॉक्टर्स काम कर रहे, वे भी अनुभव के कारण यहां रुके हैं। प्रमोशन पाते ही संभवतः वे भी नौकरी छोड़ दें। सीनियर रेसीडेंट्स की कमी बनी हुई है। 150 डॉक्टरों के पद मंजूर थे, जो अब तक नहीं भर पाए हैं। रोजमर्रा की जरूरत का सामान तक नहीं मिल रहा। सीनियर नसों के 115 पद मंजूर हैं। उनमें से सिर्फ 5-6 ही काम कर रहीं, जबकि 200 से ज्यादा पद खाली हैं। दो साल से सरकार इन्हें भरने में रुचि नहीं ले रही।