जिलों के प्रभारी मंत्री की घोषणा हो चुकी है और प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर का जिम्मा खुद सीएम डॉ. मोहन यादव के हाथ में रहेगा। यह राजनीतिक के साथ ही शहर के विकास, लॉ एंड आर्डर के हिसाब से काफी अहम साबित होने जा रहा है। इस फैसले से कई लोगों के होश उड़ चुके हैं और अब उन्हें अपनी लाइजनिंग और खेल करने की दुकानदारी खतरे में दिख रही है। टीआई की पोस्टिंग हो या अन्य अधिकारी व कर्मचारी की पोस्टिंग का खेल, यह सब बंद होगा।
सबसे पहले राजनीतिक असर
अब किसी और नेता का नहीं यह मोहन का इंदौर होगा। नई सरकार के गठन के बाद बने राजनीतिक समीकरण में हाशिए पर चले गए विधायक मालिनी गौड़, मनोज पटेल और ऊषा ठाकुर को बड़ी राहत मिली है। इसके साथ ही पूर्व विधायाक हो या पार्टी के अन्य नेता, उनके सामने साफ है कि उन्हें अब कोई ना गुट बनाना है और ना ही जाना है, केवल एक गुट है मोहन गुट।
सीएम ने बीच में इंदौर दौरे के दौरान ताई सुमित्रा महाजन के घर जाने के साथ ही यह संदेश पहले ही दे दिया था कि वह एक नहीं बल्कि सभी के साथ है। नगर और जिला बीजेपी के अब फैसलों पर सीएम की नजर और करीब से रहेगी।
सरकारी विभागों में असर
नगर निगम
अभी निगम के कामों को मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और महापौर पुष्यमित्र भार्गव की जोड़ी ने ही संभाला हुआ था। अब निगम और शहर के विकास काम को सीएम का वरदहस्त मिलेगा। सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वह नंबर वन का तमगा हासिल करें, नहीं तो अब आंच सीधे सीएम पर आएगी। निगम को लाभ यह होगा कि सीएम अब सीधे विकास कामों और मुद्दों पर नजर रखेंगे और इसमें तेजी लाएंगे।
आईडीए, टीएंडसीपी
शहर के विकास के लिए आईडीए और टीएंसडीपी निगम के बाद अहम एजेंसी है। अब आईडीए बोर्ड बनने में भले ही देरी हो, लेकिन प्रभारी मंत्री के तौर पर मोहन यादव ही इसके बड़े कामों को देखेंगे। हाल-फिलहाल की सबसे बड़ी नजर आईडीए सीईओ बदलेगा या नहीं बदला तो कौन आएगा? इसका जवाब अब सिर्फ और सिर्फ सीएम के पास रहेगा।
वहीं इंदौर के लिए सबसे अहम मास्टर प्लान जो टीएंडसीपी को बनाना है, इसका पूरा खांका सीएम के जरिए ही खींचा जाएगा। इस काम में लगे कई लाइजनर, बिल्डर से लेकर भोपाल तक की दखल अब खत्म होगी और सीएम ही फाइनल तय करेंगे कि मास्टर प्लान कैसा होगा।
पुलिस में टीआई पोस्टिंग का खेल ठप
पुलिस की पकड़ जिस तरह से ढीली हुई है और टीआई सैटिंग करके जिस तरह से पोस्टिंग पा रहे हैं, वह खेल बंद होगा। पुलिस महकमे में सबसे ज्यादा आरोप टीआई की पोस्टिंग को लेकर ही लग रहा है और बाद में यह टीआई डीसीपी और अन्य अधिकारियों पर भारी पड़ते हैं। अब खेल बंद होगा। जिले के अंदर सभी ट्रांसफर पोस्टिंग क्योंकि प्रभारी मंत्री की मंजूरी से होती है तो पुलिस विभाग के साथ ही अन्य सभी विभागों में यह खेल बंद होगा।
नेता नहीं बना पाएंगे अब दबाव
वहीं बात जिला प्रशासन की तो सीएम वैसे भी इंदौर कलेक्टर से सीधे संपर्क में रहते हैं। वहीं अब उनके प्रभारी मंत्री बनने के बाद तो हर छोटे-बड़े काम के लिए कमिशनर, कलेक्टर की जिम्मेदारी बढ़ गई है। कुल मिलाकर जिले के विभागीय मुखिया अब सीएम के सिवा अन्य किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त होंगे। खुद अन्य नेता भी दबाव डालने की स्थिति में नहीं होंगे।
हर काम की एप्रूवल सीएम से होगी, यानी सीएम ने अधिकारी से पूछ लिया कि यह क्यों हो रहा है तो वह सीधे नेता का नाम सीएम को बता देगा कि इन्होंने कहा है, यानी उस नेता ने यदि सीएम को यह संज्ञान में नहीं दिया तो शामत आना तय है।
शहर के विकास के लिए अहम
सीएम का प्रभारी मंत्री बनना इंदौर के विकास के लिए सबसे अहम साबित होगा। सीएम की एप्रूवल से होने वाले कामो को भोपाल तक कोई अडंगा नहीं अडाएगा। ऐसे में अब सभी अधिकारियों के पास मौका है कि वह विकास के बेहतर प्लान बनाकर सीएम से मंजूर करवाएं।
प्रभारी मंत्री के नाते उनके दौरे भी इंदौर में बढेंगे और बैठकें भी। मास्टर प्लान हो, निगम के रूके काम, ट्रैफिक को लेकर काम, सिंहस्थ को देखते हुए इंदौर-उज्जैन के बीच के काम यह सभी सीएम के चलते तेजी से हो सकेंगे।
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