संजय गुप्ता@ INDORE.
इंदौर नगर निगम के 150 करोड़ के फर्जी बिल घोटाले ने सभी की पोलखोलकर रख दी है। महापौर, निगमायुक्त, अपर आयुक्तों की नाक के नीचे करोड़ों के फर्जी बिल पास होते रहे और कोई देखने वाला ही नहीं रहा। इसकी जांच तो चल रही है और अब इसमें निगम कर्मचारियों के रिश्तेदारों के नाम पर भी एक के बाद एक फर्म निकल रही है, जबकि नियमानुसार नगर निगम के कर्मचारी ठेके नहीं ले सकते हैं। ( Indore Municipal Corporation )
इस तरह निगम कर्मचारियों के नाम पर चल रही फर्म
- जिन फर्म की जांच में लेखा बाबू सुनील भावर निलंबित हुए हैं। उनके बेटे श्रीकांत भावर की फर्म मातोश्री है। अब इसकी भी जांच हो रही है। यह फर्म भी ड्रेनेज के ठेके ले रही थी। सुनील भावर लेका शाखा में पदस्थ था और यह बिल पास करने का काम कर रहा था। उसके बेटे की फर्म आते ही तत्काल पैसा जारी होता था।
- इसी तरह जनकार्य विभाग के अधीक्षक प्रशांत दिघे का बेटा प्रतीक भी सुभाष कंस्ट्रक्शन फर्म चलता है। एक और फर्म बीके कंस्ट्रक्शन भी है। इसे भी लगातार काम मिलता है। प्रशांत पहले लेखा व उद्यान विभाग में रह चुका है। उद्यान विभाग से सुभाष कस्ट्र्कंशन की फाइल गायब बताई जा रही है। इसे भी करोड़ों के भुगतान हुए हैं।
- इसी तरह मस्टरकर्मी जितेंद्र (शंकर) सोलंकी के बड़े भाई मानसिंह सोलंकी की फर्म परमेशवरी कंस्ट्रक्शन है। इसे भी लगातार काम मिले और करोडों के भुगतान हुए हैं
इसी तरह एक अपर आयुक्त के पीए के भाई द्वारा भी शिवाय कंस्ट्रक्शन चलाने की बात सामने आई है।
प्रशांत दिघे के बेटे की शिकायत भी हुई जो दबा दी
प्रशांत जनकार्य और उद्यान विभाग में रहा है। बेटे प्रतीक दिघे की फर्म सुभाष कंस्ट्रक्शन को जमकर काम दिलवाए और भुगतान करवाया। महापौर के ड्रीम प्रोजेक्ट संजीवनी क्लिनिकि में भी खेल हुआ और प्रशांत ने अपने बेटे की फर्म को कई जगह के काम दिलवाए। पूर्व पार्षद महेश गर्ग ने उनके काम की जानकारी सूचना के अधिकार में मांगी थी जो नहीं दी उलटे इस मामले को दबाने के लिए 25 हजार की रिश्वत की पेशकश भी कर दी। इसकी भी शिकायत अपर आयुक्त अभय राजनगांवकर को हुई लेकिन मामला दबा दिया गया।
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ड्रेनेज तो ठीक जनकार्य के घोटालों का तो हिसाब नहीं
ड्रेनेज विभाग में घोटाले हुए, लेकिन जनकार्य विभाग की अभी तक ढंग से जांच ही नहीं हो रही है। वहीं यहां ऐसे घोटाले हैं कि कई काम के तो निशान भी नहीं मिलेंगे। कारण है कि यहां रोड के पंचवर्क, गिट्टी-चूरी डालने के काम भी होते हैं। यह पंरपरागत रूप से हर बारिश के बाद होते हैं। यानि एक बार हुआ काम अगली बारिश में धुल गया और फिर नए सिरे से काम और 3 से 5 करोड़ रुपए का भुगतान होता है। इसमें कई जगह फर्जी काम होते हैं और फर्जी फाइल बनाकर भुगतान लिया जाता है, क्योंकि इन काम की जांच हो ही नही सकती, वह तो अगली बारिश में धुल जाता है। इसी तरह निगम में ऐसे काम जो खासकर मेंटनेंस से संबंधित है और जनकार्य में होते हैं, उनमें पंरपरागत रूप से साल दर साल घोटाला चल रहा है। फर्जी काम हर बार बताए जाते हैं और तय फर्म को यह काम मिलते हैं, भुगतान होता है हिस्सा बंटता है और फिर अगले साल यह सभी काम पर लग जाते हैं। इसलिए ठेकेदारों की सबसे ज्यादा रूचि जनकार्य में अधिक होती है और यह नगर निगम का सबसे मलाईदार विभाग माना जाता है।
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