इंदौर नगर निगम फर्जी बिल घोटाले में बोला अभय राठौर- मुख्य बड़े अपराधियों के नाम नहीं आ जाएं, इसलिए मुझे अपराधी बना दिया

इंदौर नगर निगम के 150 करोड़ के फर्जी बिल घोटाले में ईडी की इंट्री हो चुकी है। मामले में अभी तक मुख्य सरगना के रूप में सामने आए इंजीनियर अभय राठौर पर सभी की नजरें हैं।

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Sanjay gupta
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INDORE : इंदौर नगर निगम के 150 करोड़ के फर्जी बिल घोटाले में जहां 7 एफआईआर हैं, वहीं अब ईडी की भी इंट्री हो चुकी है। उधर इस मामले में अभी तक मुख्य सरगना के रूप में सामने आए इंजीनियर अभय राठौर पर सभी की नजरें हैं। जिला कोर्ट में जमानत के लिए लगे आवेदन में एक बार फिर उसने पूर्व निगमायुक्तों, अपर आयुक्तों की ओर उंगली उठा दी है।

यह कहा राठौर ने-

राठौर की ओर से उनके पुत्र जय राठौर ने शपथपत्र पेश किया। शपथपत्र में और अधिवक्ता की ओर से बताया गया कि- मुख्य अपराधियों के अपराध उजागर करने से रोकने के लिए टीआई विजय सिंह सिसौदिया ने फरियादी व मुख्य आरोपी इंजीनियर सुनील गुप्ता से संगनमत होकर मुझे अपराधी बनाया गया है। जानबूझकर मुझे जमानत पर आने से रोका जा रहा है, पहले भी मेरी पत्नी शालिनी सिंह राठौर इस मामले में शपथपत्र दे चुकी है और कोर्ट में बयान भी हो चुके हैं। टीआई सिसौदिया द्वारा बेवजह मेरा नाम लिया जा रहा है कि घोटाले की राशि का 50 फीसदी मेरे द्वारा लिया जा रहा था। जबकि इन बिलों का भुगतान करने की जिम्मेदारी सेवकराम पाटीदार, सुनील गुप्ता व अन्य पर रही है।

अपर आयुक्त वित्त का भी किया जिक्र

राठौर ने यह भी कहा कि कि अपर आयुक्त वित्त इसमें अपराधी है। सुनील गुप्ता द्वारा बनवाए गए फर्जी बिल्स का भुगतान अपने अधीनस्थ ऑडिट विभाग से करवाने की अनुशंसा से लेकर पे आर्डर बनवाकर ठेकेदारों को भुगतान कराकर आपराधिक षडयंत्र कर अवैध धन अर्जित करने में संलग्न रहा है। बेवजह मेरा नाम लिया गया है इसलिए जमानत दी जाए।

कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज किया आवेदन

वहीं अपर लोक अभियोजक श्याम दांगी द्वारा जमानत का विरोध किया गया और बताया गया कि मुख्य आरोपी है और गंभीर धाराओं में केस दर्ज है। बाहर आने पर वह सबूतों, गवाह को प्रभावित कर सकता है। मामला गंभीर प्रवत्ति का है। इसलिए जमानत नहीं दी जाए। सभी पक्षों को सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश देवेंद्र प्रसाद मिश्रा ने यह कहते हुए राठौर का आवेदन खारिज कर दिया कि लोक धन का उपयोग प्लानिंग करते हुए अधिकारियों, कर्मचारियों और प्रभावशाली व्यक्तियों की मिलीभगत से किया जाना दर्शित होता है। सूक्ष्म जांच जरूरी है। गंभीरता को देखते हुए जमानत का लाभ दिया जाना उचित नहीं होगा।  आवेदन निरस्त किया जाता है।

sanjay gupta

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