इंदौर नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे ने नगर निगम के चर्चित फर्जी फाइल घोटाले को लेकर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि नगर निगम के पास से 90 करोड़ के भुगतान वाली 174 फर्जी फाइलों की मूल नस्ति गायब है।
इस घोटाले में पुलिस ने सिर्फ 31 करोड़ की 48 फाइलों को आधार बनाया है। इंदौर नगर निगम के इतिहास के इस सबसे बड़े घोटाले की जांच के लिए यह जरूरी है कि अब स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम सीट का गठन किया जाए।
करोड़ों के भुगतान वाली 174 फर्जी फाइल की मूल नस्ती गायब
चिंटू चौकसे ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि यह आशंका है कि पिछले 15 साल में इंदौर नगर निगम में फर्जी फाइल के माध्यम से कम से कम 500 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। हाल ही में ड्रेनेज विभाग की फर्जी फाइलों का जो मामला उजागर होकर सामने आया, उसमें नगर निगम की गंभीर किस्म की लापरवाही भी उजागर हुई है।
चौकसे ने कहा कि इस मामले में नगर निगम के द्वारा पुलिस विभाग को कुल 285 फाइल उपलब्ध कराई गई थी। इसमें से 63 फाइल ऐसी थी, जिसमें ठेकेदार द्वारा काम भी किया गया था और भुगतान किया गया था। ऐसे में इन फाइलों का कोई औचित्य नहीं था। इन फाइलों को पुलिस विभाग के द्वारा निगम के सत्यापन के प्रकाश में वापस भेज दिया गया है।
नगर निगम में 90 करोड़ का घोटाला?
शेष बची 222 फाइलों में से 174 फाइले ऐसी है, जिसमें फर्जी फाइल बनाकर भुगतान प्राप्त किया गया है। इन फाइलों में 90 करोड़ रुपए का भुगतान प्राप्त किया गया। इन फाइलों की मूल नस्ति पुलिस विभाग के द्वारा नगर निगम से मांगी गई थी।
नगर निगम यह मूल नास्ति उपलब्ध कराने में नाकाम रहा है। इसके परिणाम स्वरूप इन फाइलों को पुलिस विभाग के द्वारा नगर निगम को वापस लौटा दिया गया है। चौकसे ने कहा कि यह सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात है कि 174 एसी फाइल चिन्हित हो गई है, जिनमें 90 करोड़ रुपए का भुगतान निगम के खजाने से हुआ है, लेकिन इन फाइलों की मूल नस्ति गायब है।
नगर निगम के लेखा शाखा में हर काम डिजिटल होता है। उसके बाद भी यह यदि सारी फाइलें गायब है तो इससे स्पष्ट है कि इसमें बड़े- बड़े अधिकारी शामिल हैं ।
इंदौर नगर निगम के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला
चौकसे ने कहा कि पुलिस के द्वारा इंदौर नगर निगम के फर्जी फाइल घोटाले में जो मुकदमा दर्ज किया गया है, उस मुकदमे में अब 48 फाइलों के आधार पर निगम से प्राप्त किया गया 31 करोड़ रुपए का भुगतान ही आधार बनाया गया है। इंदौर नगर निगम के इतिहास का यह सबसे बड़ा घोटाला है। इस घोटाले की जांच में जितनी गंभीरता और जितनी गहराई होना चाहिए थी, वह कहीं भी नजर नहीं आ रही है।
स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का गठन
निगम के इस घोटाले के मामले में दोषियों को बचाने का खेल इंदौर से लेकर भोपाल तक खेला जा रहा है। ऐसी स्थिति में अब यह जरूरी है कि राज्य सरकार के द्वारा इंदौर नगर निगम के इस घोटाले की समग्र जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का गठन किया जाए। इस टीम के द्वारा इन सारी फाइलों को तो देखा ही जाए, उसके साथ ही नगर निगम के जन कार्य, उद्यान और जल कार्य विभाग में पिछले 15 सालों में हुए सभी भुगतान वाली फाइलों की जांच की जाए।
इस पूरे घोटाले में महापौर पुष्यमित्र भार्गव की भूमिका भी संदिग्ध रूप से उभर कर सामने आ रही है। उनके द्वारा इस घोटाले को उजागर करने में कोई योगदान नहीं दिया गया। जब पूर्व आयुक्त के द्वारा यह घोटाला उजागर कर दिया गया तो घोटाले के दोषियों पर कार्रवाई करने में भी महापौर भार्गव ने कोई रुचि नहीं ली। इस समय इंदौर नगर निगम में सभी मुख्य जिम्मेदारियां पर भ्रष्टाचार के आरोपियों को बैठा दिया गया है। पुलिस के द्वारा मांगी जा रही मूल नस्ति को उपलब्ध न कर पाना भी महापौर की नाकामी है ।
दोषियों को बचाने का खेल जारी
इंदौर नगर निगम में फर्जीवाड़ा करने वाले व्यक्तियों को बचाने का खेल अभी भी चल रहा है। वार्ड क्रमांक 79 में कुंदन नगर में सड़क का पूर्ण निर्माण किए बगैर भुगतान हासिल करने वाले ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई करने के नाम पर नगर निगम के द्वारा उसे ब्लैकलिस्टेड करने की घोषणा की गई है। इस ठेकेदार ने जो बिना काम किए पैसा प्राप्त किया है, उस पैसे को वापस वसूलने की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
इसके साथ ही इस ठेकेदार के खिलाफ आपराधिक केस भी दर्ज नहीं कराया गया है। ऐसा ही मामला सत्संग भवन के खातीपुरा में निर्माण के नाम पर हुआ घोटाला भी है। इस भवन के निर्माण के लिए ठेकेदार के द्वारा नगर निगम से 13 लाख रुपए की राशि प्राप्त कर ली गई और हकीकत में सत्संग भवन का निर्माण ही नहीं किया गया। इस मामले में भी अब तक नगर निगम के द्वारा ठेकेदार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
thesootr links