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मप्र पश्चिमी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, इंदौर में बिजली अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत का एक और घोटाला उजागर हो गया है। केंद्र की पूर्व में बिजली इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार के लिए आई 523 करोड़ की आईपीडीएस (इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम) में घोटाला कर उसके ट्रांसफार्मर, खंभे, तार तक निजी कॉलोनियों को बेच चुके इन जादूगरों ने अब नया खेल रच दिया है।
केंद्र की दूसरी योजना आरआरडीएस (रिवैम्प्ड सेक्टर डिस्ट्रीब्यूशन स्कीम), जो 1000 करोड़ की है, उसमें भी सेंध लगा दी गई है। इस योजना से इंदौर और रीजन में बिजली इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार करना था, लेकिन इससे निजी कॉलोनियों को जगमग किया जा रहा है। इसके भी खंभे और ट्रांसफार्मर बेच दिए गए हैं।
निजी कॉलोनी में लगे मिले इसके सामान
बिजली कंपनी के एमडी को जब 1000 करोड़ की इस योजना में भी घोटाले की शिकायत मिली, तब जाकर बिजली विभाग की टीम ने छापा मारा। इसमें एक कॉलोनी में आरआरडीएस के तहत आवंटित खंभे लगे पाए गए। बिजली कंपनी ने पंचनामा बना लिया, लेकिन इसके बाद भी मामला दबाया जा रहा है।
बिजली कंपनी इस पूरे मामले को ठेकेदार की गलती बताते हुए उसे ही केस दर्ज कराने के लिए कह रही है। शुक्रवार को एडवोकेट अभिजीत पांडे ने तिलक नगर क्षेत्र की कॉलोनी श्री लक्ष्मी नगर में केंद्र की इस योजना से आई सामग्री लगाए जाने की शिकायत की।
जांच के लिए इंजीनियरों की टीम मौके पर पहुंची तो आरआरडीएस योजना के तहत आवंटित तीन खंभे वहां लगे मिले। दो दिन पहले ही इन खंभों को कॉलोनी के निजी ट्रांसफार्मर लगाने के लिए वहां लगाया गया था। टीम पंचनामा बनाकर लौट आई।
यह है 1000 करोड़ की योजना
केंद्र सरकार ने देशभर के बिजली वितरण ढांचे को आधुनिक बनाने के लिए रिवैम्प्ड सेक्टर डिस्ट्रीब्यूशन स्कीम (आरआरडीएस) लॉन्च की है। इसके तहत दो साल में इंदौर रीजन में करीब एक हजार करोड़ के काम किए जाने का दावा किया गया। इस राशि से खंभे, ट्रांसफार्मर, केबल, इंसुलेटर व अन्य सामग्री लगाई जानी है।
घोटाले पर यह बोले अधिकारी
कंपनी के चीफ इंजीनियर कामेश श्रीवास्तव ने माना कि जांच में तीन खंभे केंद्रीय योजना के लगे पाए गए हैं। विंध्य टेलीलिंक कंपनी को आरआरडीएस का काम सौंपा गया है। कंपनी का कहना है कि उसके खंभे चुराकर कॉलोनी में लगा दिए गए। उसी कंपनी से एफआईआर करवाने को कहा गया है।
वहीं खंभे लगाने वाले ठेकेदार केके तिवारी ने सफाई दी कि खंभे कॉलोनी में पहले से रखे थे। उन्हें लगा कि यह कॉलोनाइज़र द्वारा लाए गए हैं, इसलिए उन्होंने उठाकर लगा दिए।
523 करोड़ का घोटाला ऐसे किया था
मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, इंदौर को केंद्र की इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम (IPDS) के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार के लिए 14 जिलों में 523 करोड़ रुपये मिले थे। इसमें से इंदौर शहर के लिए 167 करोड़ रुपये की राशि थी।
यह राशि पुराने तार, खंभे, ट्रांसफार्मर हटाकर नया इंफ्रास्ट्रक्चर लगाने के लिए मिली थी। लेकिन कंपनी के 26 अधिकारियों ने ठेकेदारों से मिलकर घोटाला कर डाला। यह राशि वर्ष 2017 में मिली थी और 2020 तक कार्य किया गया।
कंपनी के असिस्टेंट इंजीनियर (AE), डिविजनल और एग्जीक्यूटिव इंजीनियर (DE/EE), तथा सुप्रिटेंडेंट इंजीनियर (SE) स्तर के अधिकारियों ने ठेकेदारों से मिलकर इस योजना में खरीदे गए ट्रांसफार्मर, खंभे और तारों को बायपास और अन्य नई कॉलोनियों के बिल्डरों को बेच डाला।
माल सस्ते दामों में ठेकेदारों को बेचा गया। कई जगह जहां एक खंभा लगना था, वहां कागजों पर तीन दिखा दिए गए। तय रूट से हटकर अन्य जगह खंभे और ट्रांसफार्मर लगाने का झूठा उल्लेख कर दिया गया।
साथ ही इन कार्यों के लिए मजदूरी भी दिखाकर नकली बिल लगा दिए गए। यानी दोनों ओर से घोटाला किया गया—सामग्री भी बेची और उसके नकली बिल भी लगाए।
देवास में तो तालाब में खंभे लगाना दिखा दिया
इस मामले में अधिवक्ता अभिजीत पांडे व अन्य द्वारा शिकायत की गई, जो केंद्र सरकार तक पहुंची। इसके बाद कंपनी ने जांच शुरू की। लेकिन जांच सिर्फ इंदौर के 5 में से कुछ डिविजन और देवास में की गई, जबकि यह काम पूरे 14 जिलों में हुआ था।
सिर्फ तीन स्थानों पर, वो भी लगभग 20% कार्यों की ही जांच की गई। इसमें कॉलोनियों के अंदर ट्रांसफार्मर और तार पाए गए। देवास में तो एक तालाब के अंदर खंभे लगाना कागजों पर दिखाया गया था, जबकि मौके पर तालाब ही मिला, खंभे कहीं नहीं थे।
इसके बाद 26 अधिकारियों की हुई जांच शुरू, ये दोषी पाए गए
बिजली कंपनी ने इस मामले में सख्ती दिखाते हुए 26 अधिकारियों को नोटिस जारी किए। आरोपों के आधार पर जांच शुरू हुई। इसमें से दो अधिकारी—कामेश श्रीवास्तव और आरके नेगी को बरी कर दिया गया, जबकि 12 अधिकारियों को दोषी मानते हुए उनके दो से चार इंक्रीमेंट रोक दिए गए।
इन दोषी अधिकारियों में AE से लेकर DE और SE स्तर के अधिकारी शामिल हैं। इनके नाम हैं: सतीश कुमरावत, एम. गर्ग, भूपेंद्र सिंह, अभय कुमार पांडे, अनिल व्यास, सत्यप्रकाश जायसवाल, आरपी सिंह, आरपी कुंडल, बीएम गुप्ता, एम. जेड, ऋषिराज ठाकुर। शेष 12 अधिकारियों की जांच अब भी जारी है, जो चार वर्षों से चल रही है।
छोटी जांच में ही 20 करोड़ का घोटाला उजागर हुआ
कंपनी ने केवल इंदौर के दो डिविजन और देवास में जांच की, जबकि काम 14 जिलों में हुआ था। इस सीमित जांच में ही लगभग 20 करोड़ का घोटाला सामने आ गया।
इसमें कंपनी अधिकारियों के साथ ही ठेकेदार कंपनी क्षेमा पावर, चेन्नई को भी दोषी पाया गया और ब्लैकलिस्ट किया गया। लेकिन इसके बावजूद जिम्मेदारों ने शेष जिलों की जांच नहीं करवाई और दबाव बढ़ने पर भी मामला वहीं दबा दिया गया।
जैसे बजरंग नगर में 55 खंभे मौके से गायब पाए गए, जिनके लिए करोड़ों की बिलिंग हुई थी।
EOW में इसलिए रुकी जांच
इस पूरे मामले में ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा) में भी शिकायत की गई और आरोपी ठेकेदारों व अधिकारियों पर केस की मांग की गई। लेकिन पिछले डेढ़ से दो वर्षों से यह जांच रुकी हुई है।
बताया जा रहा है कि बिजली कंपनी ने इस मामले से संबंधित कोई भी दस्तावेज ईओडब्ल्यू को उपलब्ध नहीं कराए हैं, जिस कारण जांच आगे नहीं बढ़ पाई है।
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