रिंकू भाटिया कोर्टबाजी में उलझे रहे, मोनू प्रचार करते रहे और जीत गए

मध्‍य प्रदेश के इंदौर में श्री गुरुसिंघ सभा चुनाव में प्रधान पद से 12 साल बाद मनजीत सिंह उर्फ रिंकू भाटिया की विदाई हो गई। इतनी बुरी हार रिंकू की होगी यह संगत को भी भरोसा नहीं था।

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Sanjay gupta
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Rinku Bhatia
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INDORE : इंदौर में श्री गुरुसिंघ सभा चुनाव में प्रधान पद से 12 साल बाद मनजीत सिंह उर्फ रिंकू भाटिया की विदाई हो गई। इतनी बुरी हार रिंकू की होगी यह संगत को भी भरोसा नहीं था। प्रधान पद के साथ ही सचिव पद पर भी उनके खंडा पैनल के प्रत्याशी की हार हो गई। कार्यकारिणी के 17 पदों का रिजल्ट देर रात तक आएगा। लेकिन रूझान यहां भी रिंकू की पैनल के खिलाफ दिख रहे हैं। 
प्रधान पद के लिए खालसा-फतेह पैनल के मोनू को 4307 वोट और खंडा पैनल के रिंकू को 2793 वोट मिले, मोनू की 1514 वोट से जीत हुई है। वहीं सचिव पद पर खालसा-फतेह पैनल के ही बंटी उर्फ प्रितपाल सिंह भाटिया ने खंडा के इंद्रजीत सिंह होरा को करीब दो हजार वोट से हराया। जीत के बाद मोनू ने कहा कि अब काम दिखाने का समय आ गया है और यह संगत की जीत है, इसलिए सामने वाले हार के डर से ही चुनाव नहीं कराना चाहते थे। कार्यकारिणी से भी रिंकू भाटिया की खंडा पैनल साफ हो रही है, रूझान के अनुसार सभी 17 पदों पर खालसा-फतेह पैनल के प्रत्याशी आगे चल रहे हैं।

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क्यों हारे रिंकू- शराब कारोबार, गिरफ्तारी ले डूबी

1. रिंकू भाटिया ने चुनाव टालने के लगातार प्रयास किए, इसके लिए एक-दो नहीं हाईकोर्ट में सात और सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई। सभा के चुनाव कायदे से हर साल होते हैं लेकिन 12 साल से पद पर रिंकू चिपके रहे और अभी भी वह चुनाव नहीं होना देना चाहते थे। यह संगत को ठीक नहीं लगा।

2. रिंकू भाटिया को शराब का कारोबार भी ले डूबा। वह हमेशा गुजरात बार्डर से लगे प्रदेश के जिलों के शराब ठेके लेते रहे। आईएएस एसडीएम पर शराब तस्कर पकड़ने के दौरान हमला हुआ और इसमें सीधे तौर पर रिंकू का नाम आया। पुलिस से गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार हुए और फिर इंदौर एयरपोर्ट पर गिरफ्तार हुए। कुछ दिन जेल में रहे। उन पर शराब के अवैध परिवहन को अलग-अलग थानों में केस दर्ज है।

3. रिंकू ने जहां मोनू भाटिया पर चुनाव के दौरान व्यक्तिगत हमले किए, वहीं लगातार चुनाव रूकवाने की कोशिश में लगे रहे। वहीं मोनू ने चुनाव प्रचार एक साल पहले ही शुरू कर दिया था। वह बिना किसी कोर्टबाजी के चुनाव कराने में लगे रहे और प्रचार-प्रसार करते रहे।

4. मोनू भाटिया को रिंकू ने हलके में लिया और लंबे समय से प्रधान पद पर बने रहने के चलते अंहकार के भाव में रहे। अपने पद का उपयोग कारोबार फैलाने में भी किया और जमकर संपर्कों को भुनाया। इसी के चलते वह अभी भी चुनाव नहीं चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की फटकार के बाद चुनाव हो ही गए। 

बॉबी के साथ गठबंधन कर गया काम

उधर मोनू की फतेह पैनल चुनाव में कमजोर थी। इसलिए उन्होंने रिंकू और बॉबी दोनों की ही तरफ गंठबंधन की पहल की थी, लेकिन रिंकू ने दरकिनार कर दिया। इसके बाद खालसा पैनल के बॉबी छाबड़ा के साथ उनका समझौता बैठ गया। यह समझौता भी उनके अनुरूप ही हुआ और बॉबी ने मोनू को प्रधान पद दिया और बंटी भाटिया उर्फ प्रितपाल सिंह भाटिया सचिव पद के उम्मीदवार बने। बॉबी की खालसा पैनल का खासा होल्ड  है।

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