पहले डकैतों से लड़े ACP विवेक सिंह, फिर पदक के लिए 21 साल की लड़ाई
इंदौर के एसीपी विवेक सिंह चौहान ने 2003 में ग्वालियर में तैनाती के दौरान डकैतों से मुठभेड़ कर बहादुरी का परिचय दिया। इस अद्वितीय कार्य के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें राष्ट्रपति पुलिस वीरता पदक के लिए नामित किया था।
2003 में ग्वालियर में तैनात एसआई विवेक सिंह चौहान ने डकैतों से मुठभेड़ में बहादुरी दिखाई, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रपति पुलिस वीरता पदक देने की अनुशंसा की गई। मप्र सरकार ने यह प्रस्ताव केंद्र को भेजा, लेकिन इस सम्मान को पाने के लिए चौहान को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। हाल ही में इंदौर हाईकोर्ट ने सरकार को एक महीने के भीतर यह पदक प्रदान करने के निर्देश दिए। आपको बता दें कि फिलहाल विवेक सिंह इंदौर में एसीपी के पद पर तैनात हैं।
कैसे हुआ मुठभेड़ का आगाज
यह घटना 23 जून 2003 की है। मुखबिर ने सूचना दी कि ग्वालियर के घाटीगांव के पास डांडाखिड़क हनुमान मंदिर के पास डकैतों का मूवमेंट है। चौहान ने होमगार्ड जवान सीताराम साहू और एक मुखबिर के साथ वहां जाकर रेकी करने का फैसला किया। अगले दिन जब तीनों मौके पर पहुंचे, तब शाम हो चुकी थी।
शाम 6 बजे दो युवक 12 बोर की बंदूकें लेकर मंदिर पहुंचे। दर्शन के बाद उन्होंने अचानक बंदूक तान दी। डकैतों ने सवाल-जवाब करना शुरू किया। एक डकैत चौहान के सामने बैठा और दूसरा उनके साथी के सामने। अपनी सूझबूझ से चौहान ने स्थिति संभाली और डकैतों से लड़ाई की।
जानलेवा मुठभेड़ और डकैतों का अंत
चौहान ने डकैत की बंदूक छीनने की कोशिश की। झड़प में उन्होंने सर्विस रिवॉल्वर से दोनों डकैतों को मार गिराया। इस संघर्ष में चौहान गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन अपने साहस और त्वरित निर्णय से उन्होंने स्थिति को काबू में किया।
खून से सने कपड़ों में पहुंचे थे घर
मुठभेड़ के बाद, चौहान खून से सने कपड़ों में घर पहुंचे। उनकी पत्नी और भतीजे उन्हें देखकर चौंक गए। जब चौहान ने उन्हें पूरी घटना बताई, तो उनके साहस की सराहना की गई।
डकैतों का आपराधिक इतिहास
मारे गए डकैत रामेश्वर पाठक और शिवनारायण पाठक हत्या, अपहरण और फिरौती जैसे अपराधों में शामिल थे। जेल से फरार होने के बाद उन्होंने फिरौती के लिए लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था। मुठभेड़ के कुछ दिन पहले ही उन्होंने 10 लाख की लूटपाट की थी।
हनुमान मंदिर बना था डकैतों का ठिकाना
घने जंगलों में स्थित डांडाखिड़क हनुमान मंदिर, डकैतों के लिए सुरक्षित शरणस्थली थी। मुठभेड़ के बाद, मंदिर में बड़े पैमाने पर किराना और जरूरी सामान बरामद हुआ, जिससे पता चला कि डकैत इसे लंबे समय तक ठिकाने के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे।
ग्वालियर-चंबल अंचल की चुनौती
2000 के दशक में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र अपहरण और फिरौती के मामलों का केंद्र बन चुका था। डकैतों का खौफ इतना बढ़ चुका था कि पुलिस के लिए भी उन्हें पकड़ना मुश्किल हो गया था। ऐसे में चौहान की बहादुरी ने पुलिस का मनोबल बढ़ाया और यह मुठभेड़ अखबारों की सुर्खियां बनी।
FAQ
मुठभेड़ की जगह कहां थी?
ग्वालियर के घाटीगांव के जंगलों में डांडाखिड़क हनुमान मंदिर के पास।
3. डकैतों का आपराधिक इतिहास क्या था?
हत्या, अपहरण और फिरौती के आरोपों में शामिल थे।
हाईकोर्ट ने क्या निर्देश दिए?
1 महीने के भीतर राष्ट्रपति पुलिस वीरता पदक देने का आदेश दिया।
एनकाउंटर का पुलिस पर क्या प्रभाव पड़ा?*
पुलिस का मनोबल बढ़ा और यह घटना क्षेत्र में चर्चित रही।