हवाई पट्टी मामले में लोकायुक्त ने इकबाल सिंह बैस को बनाया आरोपी, 3 कलेक्टरों को राहत

उज्जैन हवाई पट्टी केस में लोकायुक्त ने कसा शिकंजा, आजीविका मिशन मामले में ईओडब्ल्यू पहले ही बना चुकी है पूर्व सीएस इकबाल सिंह बैस को आरोपी, पूर्व सीएम शिवराज के 'नाक का बाल' यानी हद से ज्यादा खास माने जाते थे बैस। 

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Marut raj
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रविकांत दीक्षित, भोपाल. विधानसभा चुनाव तक मध्य प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया की कुर्सी संभालने वाले पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस ( Iqbal sing bais ) अलग - अलग मामलों में घिरते जा रहे हैं। अब बैस को उज्जैन हवाई पट्टी घोटाले में आरोपी बनाया गया है। मामले की शुरुआती जांच के बाद लोकायुक्त संगठन को पता चला कि बैस की मिलीभगत से पूरा खेल हुआ है। बैस के खिलाफ सबूत और दस्तावेज जब्त करने के लिए धारा 173 (8) में जांच शुरू कर दी है।  

बड़ा घटनाक्रम यह भी है कि इस प्रकरण में 2016 के बाद उज्जैन में पदस्थ रहे जिन तीन तत्कालीन कलेक्टरों को आरोपी बनाया गया था, उन्हें प्रकरण से बाहर कर दिया गया है। यानी जांच में उनकी सीधे तौर पर कोई भूमिका नहीं पाई गई है। आपको बता दें कि ईओडब्ल्यू ने 28 मार्च को ही आजीविका मिशन के मामले में बैस, पूर्व आईएएस अशोक शाह और मनोज श्रीवास्तव के खिलाफ जांच के लिए अनुमति मांगी है।

पार्किंग शुल्क में गड़बड़ी से खुला मामला 

दरअसल, उज्जैन से देवास के रास्ते पर दताना-मताना हवाई पट्टी है। लोकायुक्त संगठन ने इस हवाई पट्टी की लीज और पार्किंग शुल्क में आर्थिक गड़बड़ी का मामला दर्ज किया था। कुछ आईएएस अफसर इस केस में पहले से आरोपी हैं। बैस के मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त होने के बाद केस की फाइल पर पड़ी धूल हटाई गई तो घोटाले के रन-वे पर नया नाम उभर आया और अब उन्हें इस मामले में आरोपी बनाया गया है।

लीज की समय सीमा बढ़ाई 

लोकायुक्त ने अपनी जांच में पाया कि विमानन विभाग के तत्कालीन सचिव रहे इकबाल सिंह बैस के पास यश एयरवेज लिमिटेड की ओर से पार्किंग शुल्क हटाने को लेकर आवेदन किया गया था। यह पत्र विमानन विभाग के तत्कालीन संचालक अरुण कोचर ने भेजा था, लेकिन बैस इस फाइल को दबाकर बैठ गए थे। उन्होंने इस मामले में एक कदम आगे बढ़ते हुए कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए लीज की समय सीमा 7 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दी। 

— हाईकोर्ट को भी गुमराह किया

2019 में इस केस को लेकर हाईकोर्ट में ​याचिका दायर की गई। सुनवाई के दौरान बैस ने कोर्ट को भी गुमराह करते हुए गलत जवाब दिया कि रात्रिकालीन पार्किंग चार्जेस कंपनी को नहीं देना है। कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए बैस यहीं नहीं रुके। उन्होंने कोर्ट में प्रकरण लगा होने के बावजूद 11 मई 2021 को बतौर मुख्य सचिव कैबिनेट में यह प्रस्ताव पेश कराया कि यश एयरवेज ( Yash Airways )और विमानन विभाग के संचालक के बीच एग्रीमेंट के तहत नाइट पार्किंग शुल्क वसूलने के योग्य नहीं है। 

— लोकायुक्त ने उठाए थे सवाल

बाद में इस प्रकरण में जब लोकायुक्त से मार्गदर्शन मांगा गया तो लोकायुक्त ने अपनी टीप में कहा था कि मामला 2006 का है। लिहाजा, 2021 की स्थिति में यह मान्य नहीं है। साथ ही तत्कालीन लोकायुक्त ने सवाल भी उठाया कि जब 13 वर्षों में यह काम नहीं हुआ तो सरकार ने फिर किस आधार पर इसे अनुमति दी।  

ऐसे समझिए पूरा मामला...

— उज्जैन स्थित दताना हवाई पट्टी, पीपीपी मोड पर यश एयरवेज को लीज पर पायलेट ट्रेनिंग की गतिविधियों के लिए दिया गया था। 

— यश एयरवेज उज्जैन स्थित दताना हवाई पट्टी पर बेस बनाने की अनुमति चाहता था। उसे बेस बनाने की अनुमति नहीं दी गई, बल्कि रात्रिकालीन पार्किंग चार्जेस की शर्त रखी गई। 

— इसके बाद विमानन विभाग के संचालक ने 04 अक्टूबर 2008 को पत्र लिखकर कहा कि रात्रिकालीन पार्किंग चार्जेस की शर्त को हटाया जाए, लेकिन इस चिट्ठी पर वर्ष 2019 तक कोई आदेश नहीं हुआ। इस बीच यश एयरवेज का अनुबंध वर्ष 2016 में ही खत्म हो गया था। 

— लोकायुक्त की जांच में सामने आया कि यश एयरवेज और राज्य सरकार का विमानन विभाग दोनों यह जानते थे कि रात्रिकालीन पार्किंग चार्जेस देना होगा। चूंकि यश एयरवेज को बेस बनाने की अनुमति भारत सरकार से नहीं मिली थी। इसलिए रात में उज्जैन हवाई पट्टी पर विमान रखने के लिए यह वैकल्पिक व्यवस्था मिलीभगत से की गई थी।   



क्यों जांच से बाहर हुए तीन कलेक्टर 

हवाई पट्टी केस में यश एयरवेज लिमिटेड/सेटॉर एविऐशन एकेडमी को उज्जैन की दताना हवाई पट्टी अगस्त-2006 से अगस्त-2016 तक लीज पर दी गई थी। विमानन विभाग से हुआ अनुबंध जुलाई 2016 तक ही था। इसलिए अगस्त-2016 के बाद अनुबंध की शर्तें प्रभावी नहीं रह जाती। इसके अलावा यश एयरवेज लिमिटेड द्वारा उक्त हवाई पट्टी का मामला न्यायालय में लिट्टीगेशन में होने के कारण अगस्त-2016 के बाद के कलेक्टरों की इस मामले में सीधे तौर पर कोई भूमिका नहीं रही। इसलिए लोकायुक्त ने सितम्बर 2016 से 2019 तक उज्जैन में कलेक्टर रहे संकेत भोंडवे, शशांक मिश्र और मनीष सिंह को मामले से अलग कर दिया। यानी उन पर कोई मुकदमा नहीं चलेगा। 

 

 

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