नील तिवारी @ jabalpur. जबलपुर जिले की सिहोरा तहसील के अंतर्गत आने वाले गांव कटरा में 5 जून को अवैध रेत खदान ( illegal sand mine ) धसक जाने से तीन लोगों की रेत के नीचे दबकर मौत हो गई थी। 6 अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। इस मामले में जांच पड़ताल के दौरान एक बीजेपी के स्थानीय नेता अंकित तिवारी का नाम सामने आया था।
इस मामले में पुलिस ने इतनी ज्यादा तत्परता दिखाई कि मृतक के भाई से दबाव में बयान लेकर यह बता दिया गया कि मृतक मंदिर निर्माण के लिए खुद ही रेत खोदने वहां पहुंचे थे और मामले को रफा-दफा करने की पुरजोर कोशिश की गई।
अवैध खदान बयां कर रही है अपराध की दांस्ता
जिस खदान में रेत के अंदर दबने से मजदूरों की मौत हुई उसमें बनाए गए गहरे-गहरे भयावाह गड्ढे खुद इस बात का सबूत है कि यहां पर सालों से दबंग खनिज माफिया जमीन का सीना छलनी कर अवैध रूप से रेत निकाल रहे हैं। इस खदान को समतल करने के लिए प्रशासन को ही तीन से चार जेसीबी इस्तेमाल कर कई दिन मशक्कत करनी पड़ी।
सामने आए परिजन और दबंगों के खिलाफ की शिकायत
इस मामले पर लगातार मीडिया की नजर बनी हुई थी। वहीं पत्रकारों के समर्थन में मृतकों के परिजनों को भी साहस मिला और उन्होंने सामने आकर इस मामले में लिखित शिकायत दी। परिजनों ने मामले में कार्रवाई की गुहार पहले गोसलपुर थाने में लगाई थी पर वहां उनकी सुनवाई नहीं होने के बाद वह जबलपुर पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचे।
ग्रामीणों सहित पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचे परिजनों ने शिकायत में बताया कि इस अवैध खदान का संचालन भाजपा के मंडल अध्यक्ष अंकित तिवारी उर्फ कान्हा सरकार और उसके सहयोगियों के द्वारा किया जा रहा था। इसके साथ ही परिजनों ने सोनू भदोरिया, सिहोरा के तहसीलदार, एसडीएम, हल्का पटवारी और जिला खनिज अधिकारी के विरुद्ध भी गैरइरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की है।
तीन आरोपियों के खिलाफ हुआ मामला दर्ज
जबलपुर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ग्रामीण सूर्यकांत शर्मा ने बताया कि परिजनों के बयान के आधार पर तीन ज्ञात एवं अन्य आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया जा रहा है। हालांकि मृतकों के परिजनों ने भाजपा के मंडल अध्यक्ष अंकित तिवारी पर खदान संचालन के सीधे आरोप लगाए हैं उसके बाद भी पुलिस के अनुसार सोनू भदोरिया और केतु ठाकुर के द्वारा मजदूरी पर मजदूरों को लाया जाता था और रेत परिवहन में अंकित तिवारी का ट्रैक्टर इस्तेमाल होता था इस आधार पर कार्रवाई की जा रही है।
वहीं लगातार पांच सालों से इस अवैध रेत खदान को संरक्षण देने वाले किसी भी प्रशासनिक अधिकारी पर कार्रवाई करने का प्रशासन की मंशा नजर नहीं आ रही है । अब देखने वाली बात यह होगी की भारी राजनीतिक दबाव के चलते जिस मामले में शुरुआत से ही लीपा पोती कर दी गई थी। अब उस पर कितनी निष्पक्ष कार्रवाई हो पाती है।
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