जबलपुर हाईकोर्ट ने बलात्कार (rape) के एक मामले में जांच के दौरान आरोपी को समर्थन देने के लिए पुलिस के काम पर हैरानी जताई है। जस्टिस जीएस अहलूवालिया (Justice GS Ahluwalia) की पीठ ने गैंगरेप और अन्य गंभीर आरोपों में शामिल एक आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस के रवैये की तीखी आलोचना की।
हाईकोर्ट ने कहा, "यह वास्तव में चौंकाने वाला है कि एक ओर लड़की के साथ बलात्कार न केवल एक जघन्य अपराध है, बल्कि यह उसकी भावनाओं और आत्मसम्मान पर भी हमला है। दूसरी ओर, पुलिस आरोपी व्यक्तियों का समर्थन करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। अब समय आ गया है कि पुलिस लड़कियों की सुरक्षा को लेकर अपनी गंभीरता और चिंता दिखाए।"
क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार्य नहीं किया
इस मामले में पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट (closure report) को स्वीकार्य नहीं माना गया। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मामले में स्पष्ट निर्देश दिए थे कि आरोपी की कोई भूमिका नहीं है। इसके बावजूद, पुलिस ने इस फैसले को नजरअंदाज करते हुए अपनी जांच को कमजोर कर दिया।
पुलिस को ऐसे लगाई फटकार
जस्टिस अहलूवालिया ने टिप्पणी की कि पुलिस आवेदक के निर्देशों के इशारे पर चल रही थी, जिससे यह साफ होता है कि जांच में पारदर्शिता और निष्पक्षता का अभाव था। अदालत ने कहा कि पुलिस ने आरोपी की रक्षा के लिए न केवल कानून का उल्लंघन किया, बल्कि पीड़िता के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों को नकारा। कोर्ट ने पुलिस से यह अपेक्षा की कि वे जांच में पारदर्शिता लाएं और पीड़ितों की सुरक्षा को प्राथमिकता दें। यह मामला न केवल दुष्कर्म की गंभीरता को उजागर करता है, बल्कि पुलिस व्यवस्था में सुधार की जरूरत को भी बताता है।
कानून व्यवस्था पर सवाल
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर से यह सवाल उठाया है कि क्या कानून व्यवस्था वास्तव में कमजोरों की रक्षा कर पा रही है, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराधों में। कोर्ट के इस कड़े रुख ने उम्मीद जगाई है कि आने वाले दिनों में पुलिस अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में अधिक गंभीरता दिखाएगी।
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