निजी स्कूलों ने अवैध फीस वसूली से हुई कमाई को ऐसे लगाया ठिकाने, खुल रहे बड़े राज

जबलपुर में 11 स्कूलों के खिलाफ की गई कार्रवाई में चल रही जांच में एक के बाद एक नए खुलासे हो रहे हैं। द सूत्र को पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी से इस मामले में स्कूलों के द्वारा खरीदी गई करोड़ की ज़मीनों और उसके पीछे की वजह का पता लगा है।

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Neel Tiwari
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Jabalpur School increasing collecting illegal fees read special report द सूत्र
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जबलपुर. शहर में चल रहे फाइव स्टार स्कूलों या यूं कहें कि शिक्षा के व्यापार के अड्डों पर प्रशासन के द्वारा की गई कार्रवाई के बाद से ही केवल मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे देश में निजी स्कूल संचालकों में हड़कंप मचा हुआ है। क्योंकि इस तरह की कार्रवाई यदि पूरे देश में की जाती है तो एक बड़ा शिक्षा माफिया ( education mafia ) का नेक्सस ध्वस्त हो सकता है। मामले की चल रही जांच में निजी स्कूलों के द्वारा अवैध रूप से कमाई गई रकम को ठिकाने लगाने के तरीके भी खुलकर सामने आ रहे हैं।

अवैध वसूली से खरीदी गई करोड़ों की प्रॉपर्टी

सेंट अलॉयसिस, स्टेम फील्ड, क्राइस्ट चर्च,ज्ञान गंगा आर्केड और चेतन्य पब्लिक जैसे अन्य स्कूलों के खिलाफ चल रही जांच में पुलिस को यह साक्ष्य मिले हैं, कि इन स्कूलों के द्वारा करोड़ों रुपए ज़मीनों की खरीदी कर इन्वेस्ट किए गए हैं। इसके बाद अलग-अलग थानों में चल रही विवेचनाओं में इन स्कूलों और उनके संचालकों के नाम पर खरीदी गई प्रॉपर्टी की रजिस्ट्रियां भी मंगवाई गई हैं। पूरे दस्तावेज इक्कठे होने के बाद कुल रकम का खुलासा होगा पर प्रारंभिक तौर पर यह पता लग रहा है कि स्कूलों के द्वारा हर साल करोड़ों रुपए प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट किए जाते हैं।

प्रॉपर्टी निवेश से एडजस्ट करते थे ऑडिट शीट

यह निजी स्कूल अपने सालाना खर्च को बढ़ाने के लिए वसूली गई अवैध फीस से ज़मीन खरीदते थे ताकि करोड़ों की खरीदी गई ज़मीनें इनके वार्षिक खर्च में दर्शाई जा सके और इनका वार्षिक खर्च वार्षिक आय के बराबर हो सके। इस तरह इन स्कूलों को अगले वर्ष फीस वृद्धि कर अभिभावकों की जेब ढीली करने का मौका मिलता था। इसके अलावा भी यह स्कूल अपनी ही दो शाखाओं का खर्च एक दूसरे की ऑडिट रिपोर्ट में दिखाकर भी गड़बड़ झाला करते थे।

क्या कहता है अधिनियम

मध्य प्रदेश के निजी विद्यालय ( private school ) ( फीस एवं संबंधित विषयों का विनियमन ) विधेयक 2017 के भाग 5 के अनुसार कोई भी निजी विद्यालय केवल तब फीस में वृद्धि कर सकता है। जब उसका वार्षिक खर्च, वार्षिक आय से 10 प्रतिशत कम हो। उदाहरण के तौर पर यदि किसी स्कूल की सालाना कमाई 1 करोड़ रुपये है और उसका सालाना खर्च 91 लाख रुपए है, तो वह नियम अनुसार फीस वृद्धि कर सकता है पर 15% या उससे अधिक की फीस वृद्धि के लिए निजी स्कूलों को जिला समिति को आवेदन करना होता है । जिसके बाद जिला समिति आवेदन को राज्य समिति के पास भेजती है।

कई और स्कूलों के नाम आ सकते हैं सामने

अब तक की गई कार्रवाई में 11 स्कूलों पर दर्ज की गई FIR के बाद इस कार्यवाही में और भी स्कूलों के नाम जुड़ सकते हैं। इन स्कूलों में जॉय सीनियर सेकेंडरी स्कूल का नाम सबसे आगे है। इस स्कूल ने तो शासन के द्वारा लीज ली गई जमीन को किराए पर देने के लिए इश्तिहार तक निकलवा दिया था। 

जॉय सीनियर सेकेंडरी स्कूल के खिलाफ अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष हेमंत पटेल द्वारा की गई शिकायत में इस स्कूल को 2 वर्ष पहले ही अनियमितत का दोषी पाया गया था और उसके बाद भी अब तक इस स्कूल पर कार्रवाई नहीं हुई है। तो इस स्कूल का नाम भी फीस घोटाले में जल्द जुड़ने की जानकारी मिल रही हैं।

निजी स्कूलों के द्वारा किया गया कानून का खुला उल्लंघन

जांच के दायरे में आए निजी स्कूलों के द्वारा भले ही लगातार कार्रवाई पर सवाल उठाए जा रहे हैं पर मध्य प्रदेश निजी विद्यालय (फीस एवं संबंधित विषयों का विनियमन) विधेयक 2017 में फीस वृद्धि से लेकर जानकारी और ऑडिट रिपोर्ट तक पोर्टल पर अपलोड करने के स्पष्ट निर्देश हैं। जिसका यह निजी स्कूल सालों से उल्लंघन करते हुए मनमानी कर रहे थे। जबलपुर पुलिस के द्वारा की जा रही जांच में यह स्पष्ट हो रहा है कि इन स्कूलों का कार्रवाई से बच पाना अब मुमकिन नहीं है।

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