कैलाश विजयवर्गीय के दावे को शिवराज सिंह चौहान से ही मिल रही चुनौती

कैलाश विजयवर्गीय और शिवराज चौहान एबीवीपी के समय से साथ में हैं। दोनों ने पहली बार विधानसभा चुनाव भी 1990 में ही लड़ा और जीता। विजयवर्गीय इंदौर चार से चुनाव जीते तो शिवराज बुधनी से।

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Pratibha ranaa
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कैलाश विजयवर्गीय और शिवराज सिंह चौहान

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संजय गुप्ता, INDORE. पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ( Shivraj Singh Chauhan ) और नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ( Kailash Vijayvargiya ) के बीच एक बार फिर राजनीतिक प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है। मुद्दा इस बार लोकसभा चुनाव में जीत के दावे का है। विजयवर्गीय भले ही लोकसभा नहीं लड़ रहे, लेकिन उन्होंने सबसे पहली बार इंदौर संसदीय सीट पर बीजेपी की जीत आठ लाख पार का दावा किया। वहीं अब शिवराज सिंह चौहान ने विदिशा सीट से 8 लाख से अधिक वोट से जीत के लिए ताल ठोक दी है। अब यह रोचक होगा कि 1990 से ही आपस में राजनीतिक प्रतिस्पर्धी रहे विजयवर्गीय और चौहान में से किसका दावा सही साबित होने वाला है। 

क्यों कर रहे हैं शिवराज सिंह चौहान यह दावा

सीएम पद से हटाए गए शिवराज सिंह चौहान सबसे बड़ी जीत हासिल कर अपना रूतबा पाने में लगे हुए हैं। विधानसभा चुनाव 2023 में वह यहां की बुधनी सीट से 1.04 लाख वोट से जीते थे (हालांकि यह जीत इंदौर दो से रमेश मेंदोली की 1.07 लाख वोट से थोड़े पीछे रह गई थी)। चौहान विदिशा सीट से 1991 उपचुनाव में पहली बार सांसद बने और पांच बार सांसद रहे। 2019 लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी के रमाकांत भार्गव ने 5.03 लाख वोट से जीत हासिल की। ऐसे में अब टारगेट 8 लाख पार का है। 

इंदौर सीट की तरह ही 1989 से बीजेपी का गढ़

इंदौर सीट की तरह ही विदिशा सीट भी 1989 से बीजेपी का गढ़ है। साल 1984 के बाद से कांग्रेस को यहां जीत हासिल नहीं हुई है। यहां से 1989 में राघवजी चुनाव जीते तो 1990 में अटल बिहारी वाजवेयी चुनाव जीते। बाद में उन्होंने सीट छोड़ी और फिर शिवराज सिंह चौहान 1991, 1996, 1998, 1999, 2004 में लगातार पांच बार चुनाव जीते। 2009 व 2014 में सुषमा स्वराज भी यहां से चुनाव जीत चुकी है। यह सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी और केवल दो बार 1980 व 1984 में कांग्रेस के प्रताप भानु शर्मा ने यह सीट जीती थी। इसके पहले जनसंघ ने और फिर बीजेपी ने लगातार यह सीट जीती। 

विदिशा सीट में यह विधानसभा शामिल

विदिशा संसदीय सीट में रायसेन जिले की भोजपुर, सांची और सिलवानी सीट, विदिशा जिले की विदिशा, बासौदा सीट, सीहोर जिले की बुधनी सीट और इछावर सीट के साथ देवास की खातेगांव सीट शामिल है। सिलवानी सीट पर ही कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीती है, बाकी सात सीट पर बीजेपी विधायक है। 

कैलाश विजयवर्गीय ने दिया है 8 लाख पार का नारा

इंदौर लोकसभा 1989 से बीजेपी का गढ़ है, यहां 8 बार लगातार सुमित्रा महाजन चुनाव जीती तो फिर 2019 में शंकर लालवानी ने रिकार्ड 5.47 लाख वोट से जीत हासिल की। इस बार बीजेपी ने यहां देश में एक नंबर जीत का नारा दिया है, जिस तरह से इंदौर सफाई में नंबर वन है, उसी तरह अब सर्वाधिक वोट से जीत के मामले में भी इसे नंबर वन बनाना है।

सर्वाधिक वोट से जीत में इंदौर 12वें और विदिशा 16वें नंबर पर था

देश में सर्वाधिक वोट से 2019 में रिकार्ड गुजरात के नवसारी सीट से बीजेपी के सीआर पाटिल ने 6.89 लाख वोट से जीत का बनाया था। वहीं इंदौर का नंबर सर्वाधिक वोट से जीत में 12वें नंबर पर था और यह जीत 5.47 लाख वोट से थी। वहीं विदिशा में बीजेपी के रमाकांत भार्गव की जीत 16वें नंबर पर थी, यह 5.03 लाख वोट से थी। हालांकि मप्र की सबसे बड़ी और देश में नौंवे नंबर की सबसे बड़ी जीत होशंगाबाद से बीजेपी के उदय प्रताप सिंह की 5.53 लाख वोट की थी। 

विजयवर्गीय और शिवराज में हमेशा से रही है राजनीतिक प्रतिस्पर्धा

विजयवर्गीय और शिवराज सिंह चौहान एबीवीपी के समय से साथ में हैं। दोनों ने पहली बार विधानसभा चुनाव भी 1990 में ही लड़ा और जीता। विजयवर्गीय इंदौर चार से चुनाव जीते तो शिवराज बुधनी से। इसके बाद विदिशा संसदीय सीट खाली होने पर शिवराज केंद्र में सांसद बनकर चले गए और लगातार 2004 तक सांसद रहे। केंद्र में रहने से केंद्रीय नेतृत्व के करीब होने का लाभ उन्हें 2005 में तब मिला जब प्रदेश में सीएम पद पर बदलाव हुआ और वह सीएम बने। इसके बाद वह लगातार 2018 तक सीएम रहे, फिर 15 माह की कमलनाथ सरकार रही और मार्च 2020 में फिर सीएम बने और दिसंबर 2023 तक सीएम रहे। उधर विजयवर्गीय पहले लगातार विधायक रहे, फिर महापौर निर्वाचित हुए, प्रदेश में 2003 में बीजेपी सरकार बनने पर वह पहली बार मंत्री बने और 2015 तक लगातार मंत्री रहे। लेकिन शिवराज सिंह चौहान से पटरी नहीं बैठने पर इस्तीफा देकर केंद्र में चले गए। 2023 में फिर विधानसभा चुनाव लड़कर चुनाव जीते और अब मोहन सरकार में मंत्री बने हैं। सीएम के लिए कैलाश विजयवर्गीय हमेशा दौड़ में रहे, प्रदेशाध्यक्ष के लिए भी नाम चला लेकिन सीएम की कुर्सी उनके साथ खेल खेलती रही।

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