मौसमी बारिश जैसी सीखो-कमाओ योजना, रोजगार तो दूर, स्टाइपेंड मिलना मुश्किल

द सूत्र ने पिछली सरकार में युवाओं से किए वायदे और सीखो कमाओ योजना की हकीकत की पड़ताल की तो कई हैरान करने वाले तथ्य सामने आए हैं। ये तथ्य बताते हैं ऐसी योजनाओं का आखिर हश्र क्या होता है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. चुनावी सीजन आए और लोकलुभावन योजनाओं की मूसलधार बारिश न हो, ऐसा मुमकिन नहीं। ऐसा हर चुनाव से ठीक पहले होता ही है, लेकिन इन लुभावने वादों के जाल में फंसकर आमजन का क्या होता है यह कोई नेता नहीं सोचता। चुनाव जीतकर सरकार चलाने में नेता प्रदेश की तरुणाई को भी बरगलाने से  नहीं चूकते। ऐसा ही कुछ प्रदेश के युवाओं के साथ विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुआ। युवाओं को अपने पाले में लाने के लिए पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने जिस सीखो कमाओ योजना को लेकर बड़े- बड़े वादे कर युवाओं को सुनहरे भविष्य के सपने दिखाए थे वे अब धूमिल हो चले हैं। हालत यह है कि पूर्व सीएम ने युवाओं को सीखने के साथ स्टाइपेंड के रूप में जो 8 से 10 हजार रुपए हर माह देने का वादा किया था उन्हें अब वे भी नहीं मिल पा रहे। कुछ युवा कंपनियों में प्रशिक्षण लेने के बाद खाली भटक रहे हैं तो कुछ स्टाइपेंड न मिलने से घर से या दूसरों से उधार लेकर शहरों में रहने मजबूर हैं। 

ऐसी लुभावनी योजना जो शुरूआती दौर में ही भटक जाए वो हमारे युवाओं का भविष्य क्या ही बना पाएगी। द सूत्र ने पिछली सरकार में युवाओं से किए वादे और सीखो कमाओ योजना की हकीकत की पड़ताल की तो कई हैरान करने वाले तथ्य सामने आए हैं। ये तथ्य बताते हैं ऐसी योजनाओं का आखिर हश्र क्या होता है। यही नहीं अच्छे रोजगार की तलाश में युवाओं पर इनका क्या असर पड़ता है। 

जैसा ढिंढोरा पीटा हकीकत वैसी नहीं 

पहले बात करते हैं सीखो कमाओ योजना की वर्तमान स्थिति की। प्रदेश में पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यानी 22 अगस्त 2023 को सीखा कमाओ योजना की घोषणा की थी। इस योजना में 18 से 29 साल की आयु के युवाओं को सरकार ने प्रशिक्षण दिलाने के साथ ही हर माह 8 से 10 हजार रुपए स्टाइपेंड देने का वादा किया था। लुभावनी योजना का फायदा उठाने प्रदेश के 9 लाख 27 हजार  युवाओं ने अपना पंजीयन पोर्टल पर कराया था। सरकार के पोर्टल पर रजिस्टर 23 हजार से ज्यादा कंपनियों में प्रशिक्षण के लिए छप्पर फाड़ पंजीयन  कराने के बाद युवाओं को अपने दिन संवारने की आस थी। खैर पंजीयन के बाद युवाओं ने अपनी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर आवेदन किए और यहीं से कंपनियों का रवैया बदलने लगा।  

दावा 1 लाख को रोजगार, इतने प्रशिक्षणार्थी ही नहीं 

सीखो कमाओ योजना को चमत्कारी बताने वाली सरकार ने जितना ढिंढोरा पीटा था हकीकत उसके ठीक विपरीत है। पंजीयन और आवेदन के बाद अब योजना के तहत केवल 27 हजार युवाओं को ही प्रशिक्षण लेने का मौका मिला। योजना को शुरू हुए 11 महीने ही हुए हैं और हकीकत की परतें खुलने लगी हैं। यानी जो सुनहरे सपने युवाओं को दिखाए गए थे वे  धुधले पड़ने लगे हैं। वो कैसे अब ये भी जान लीजिए। योजना के तहत सवा 9 लाख पंजीयन के बावजूद कंपनियों ने केवल 27 हजार युवाओं को ही प्रशिक्षण के लिए चुना। अन्य पंजीकृत युवाओं को वेटिंग में रखकर छोड़ दिया गया। यही नहीं अब तक प्रशिक्षण पूरा करने वाले युवाओं की संख्या 1 हजार भी नहीं पहुंच पाई है। वहीं प्रशिक्षण के दौरान ही कंपनियां करीब डेढ़ हजार युवाओं को बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। 

स्टाइपेंड न मिलने से छोड़ना पड़ा प्रशिक्षण 

अब बात करते हैं उस स्टाइपेंड की जिसे सरकार की ओर से प्रशिक्षण अवधि में दिया जाना था। दरअसल कंपनियों में प्रशिक्षण लेने वाले युवाओं को घर से दूर रहना पड़ता है। ऐसे में उन्हें रहने, खाने और किराए के लिए रुपए की कमी न हो सरकार ने स्टाइपेंड देने का वादा किया था। इसके लिए चार कैटेगरी भी बनाई गई थीं। पहली कैटेगरी में हायर सेकेंडरी पास यानी 12 कक्षा तक पढ़ने वाले युवाओं को प्रशिक्षण अवधि में 8 हजार रुपए, तकनीकी शिक्षित यानी आईटीआई पास युवाओं को 8 हजार 5 सौ रुपया, डिप्लोमा हासिल कर चुके युवाओं को 9 हजार और डिग्री पूरी करने वाले युवाओं को हर  माह 10 हजार रुपए स्टाइपेंड के रूप में दिए जाने थे।

शुरूआती महीने में तो प्रशिक्षण के लिए घर छोड़कर रहने वालों को ये राशि मिलती रही, लेकिन बाद में सरकार का ध्यान भटकता चला गया। साल ही पहली तिमाही से ही प्रशिक्षणार्थियों को दो-दो महीने का स्टाइपेंड नहीं मिला है।  इस वजह से वे दूसरे शहर में रहने पर होने वाले खर्च का बोझ नहीं उठा पा रहे हैं। नया हरसूद यानी छनेरा के युवा मोहित लोवंशी की बात हकीकत से पर्दा उठाती है। मोहित का कहना है घर से दूर रहने वाले युवा स्टाइपेंड न मिलने से सबसे ज्यादा परेशान हैं। उनके साथ प्रशिक्षण ले रहे 30 से ज्यादा साथी इसी वजह से घर वापस लौट चुके हैं। 

इनकी कहानी उठाती है सच्चाई से पर्दा

निमाड़ अंचल से हर साल हजारों युवा बेरोजगार की तलाश में पलायन कर जाते हैं, क्योंकि यहां काम-धंधे का टोटा है। सीखो कमाओ योजना से इस अंचल के युवाओं को कुछ आस बंधी थी। योजना में पंजीयन कराने वाले खंडवा निवासी हर्ष कुमार का कहना है उन्होंने भी दूसरे लोगों की तरह पोर्टल पर पंजीयन किया था। इसका नोटिफिकेशन भी उनके पास है, लेकिन उसके बाद क्या हुआ पता नहीं। न तो योजना की ओर से कोई पूछपरख हुई न किसी कंपनी ने प्रशिक्षण के लिए बुलावा भेजा। आयुष बताते हैं उन्होंने डिग्री के बाद आईटीआई से तकनीकी डिप्लोमा भी लिया है। पोर्टल पर उन्होंने भी रजिस्ट्रेशन कराया था लेकिन आठ महीने बाद भी प्रशिक्षण के लिए कोई संदेश नहीं मिला। उधर अंचल के 70 युवाओं को सिंगाजी थर्मल पावर प्लांट में प्रशिक्षण के लिए रखा गया था। सितम्बर महीने से उनका प्रशिक्षण शुरू हुआ था लेकिन शुरूआत से ही स्टाइपेंड नहीं मिला तो युवाओं ने किसी तरह दो-तीन महीने तो काम चलाया लेकिन फिर 30 युवाओं ने काम ही छोड़ दिया। क्योंकि उन्हें घर से भी मदद नहीं मिल पा रही  थी।  

सरकार को दिखाने कंपनियों की खानापूर्ति 

सीखो कमाओ योजना की जमीनी हकीकत लगभग खोखली ही है। सरकार के स्तर  पर इसकी निगरानी का शायद ही कोई सिस्टम है। क्योंकि अब तक जिन कंपनियों में युवाओं को प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है वहां कोई सुविधाएं तक नहीं हैं। यानी प्रशिक्षण के लिए आने वाले युवाओं के रहने, आने-जाने के साधन के लिए कंपनी कोई जिम्मेदारी नहीं उठा रही हैं। इस वजह से सबसे ज्यादा तकलीफ प्रशिक्षण हासिल करने वाली युवतियों को हो रही है।  

प्रशिक्षण के बाद नौकरी की तलाश का संकट 

सरकार ने योजना के जरिए युवाओं के कौशल विकास का इंतजाम तो कर दिया है लेकिन रोजगार का वादा कैसे पूरा होगा ये सवाल बना हुआ है। छतरपुर के बिजावर के सैंकड़ा भर युवाओं ने बिजली से संबंधित प्रशिक्षण लिया है लेकिन अब उन्हें काम नहीं मिल रहा, जबकि प्रदेश भर में सरकार की ही बिजली कंपनियों के पास लाइनमैन जैसे तकनीकी पद खाली पड़े हैं। कंपनियां आउटसोर्स कंपनियों के कर्मचारियों को अनुबंध पर रखकर काम करा रहीं हैं लेकिन सरकार की योजना से प्रशिक्षित युवाओं को काम नहीं दिया जा रहा। छतरपुर, जबलपुर, ग्वालियर, इंदौर अंचल में हजारों युवा बिजली कंपनियों में काम करने तैयार हैं। ऐसे युवाओं ने कलेक्टरों के माध्यम से आवेदन सौंपकर मुख्यमंत्री और सरकार से बिजली कंपनियों में काम मांगा है। 

फैक्ट फाइल 

ऐसी है सीखो कमाओ योजना 

योजना के लिए आयु सीमा - 18 से 29 वर्ष  
प्रशिक्षण के लिए रजिस्टर्ड हैं  23 हजार कंपनी
अब तक 9.27 लाख युवा करा चुके हैं पंजीयन
एमपी में 27 हजार युवा ले रहे हैं प्रशिक्षण 
हर साल 1 लाख युवाओं को रोजगार से जोड़ने का लक्ष्य 

योजना में स्टाइपेंड की कैटेगरी 

हायर सेकेंडरी  

 8000

आईटीआई

8500

डिप्लोमा  

9000

डिग्रीधारी    

10000

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