वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर
11 दिसंबर, 2023… वो एक अचंभित करने वाला फैसला था। मध्यप्रदेश के सत्ता सिंहासन के संदर्भ में जिसे भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने लिया था। तीसरी बार के विधायक और शिवराज सरकार के आखिरी कार्यकाल में पहली बार मंत्री बने डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने का। 13 दिसंबर, 2024 को मुख्यमंत्री के तौर पर डॉ. मोहन यादव का एक साल पूरा हो गया है। इस शुरुआती साल में डॉ. मोहन यादव ने अपनी पहचान एक मजबूती से फैसले लेने वाले मुख्यमंत्री के तौर पर बनाई। आखिर उन पर अतीत किस का हावी था। जाहिर है, डेढ़ दशक से ज्यादा लगातार एक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान का। शिवराज एक लचीले मुख्यमंत्री के तौर पर जाने जाते थे। कई बार उन्होंने अपने को एक सख्त मुख्यमंत्री जाहिर करने की कोशिश जरूर की, लेकिन आखिर सब उनकी फितरत से वाकिफ थे।
डॉ. मोहन यादव ने अपनी पहचान एकदम उलट बनाने की राह पकड़ी। सहज, सरल रहते हुए सख्त और मजबूत फैसले लेने वाले मुख्यमंत्री की। यह छवि बनाने का उन्होंने कोई मौका नहीं खोया। चाहे मामला एक बस ड्राइवर से बदतमीजी करने पर एक कलेक्टर को तत्काल हटाने का हो या फिर गुना में बस में आग लगने की घटना पर ट्रांसपोर्ट कमिश्नर से लेकर तमाम जिम्मेदारों पर तत्काल एक्शन लेने का मामला हो। छतरपुर में पुलिस पर हुए हमले के बाद डॉ. यादव की सरकार ने जो सख्त कदम उठाए थे , उसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी शायद पीछे छोड़ दिया था।
शिवराज को हटाए जाने की चर्चा
जिनकी राजनीति में अधिक दिलचस्पी नहीं है, उन्होंने भी वर्ष 2023 के आसपास बेहद आसानी से कुछ महसूस किया होगा। वह यह कि उस समय के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के बीच एक अघोषित प्रतियोगिता आकार ले चुकी थी। इसका ज्यादा विवरण देने की जगह इतना भर बता देते हैं कि तब शिवराज को हटाए जाने की चर्चा थी और संभावित मुख्यमंत्रियों के रूप में शर्मा का नाम भी चल रहा था। भाजपा ने हमेशा से संगठन की मजबूती पर जोर दिया है।
शर्मा तब भी मजबूती के साथ संगठन चला रहे थे और अपने दो पूर्ववर्तियों दिवंगत नंदकुमार सिंह चौहान और राकेश सिंह के समय पार्टी में आए ठहराव को शर्मा रवानगी में बदल चुके थे। अब पता नहीं यह इस सबका असर था या फिर कुछ और, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद शर्मा तो प्रदेश में ही रहे, अलबत्ता भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान का नया ठिकाना दिल्ली में स्थापित कर दिया।
संघ के समर्पित कार्यकर्ता...डॉक्टर साहब
यहीं से मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव के एक साल के कामकाज की बात की जा सकती है। डॉ. यादव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सही अर्थ में समर्पित कार्यकर्ता हैं, मगर भाजपा में उनका तजुर्बा एक जनप्रतिनिधि के रूप में अधिक था। बीते एक साल में यह परिदृश्य बदला है, हालात भी। हालात यूं कि एक बार फिर राज्य में सत्ता और संगठन के बीच वह कदमताल दिखने लगी है, जो 2023 की ऊपर बताई जा चुकी परिस्थितियों में लड़खड़ाती नजर आने लगी थी। वीडी शर्मा यूं तो अपने कार्यकाल के कुछ समय बाद से ही फ्री हैंड वाली स्थिति में आ गए थे। उनके हाथ अब भी मुक्त हैं। अंतर केवल यह कि शर्मा के साथ विद्यार्थी परिषद के अपने सीनियर डॉ. यादव का हाथ भी आ चुका है।
यह परिवर्तित परिदृश्य अक्सर अलग-अलग रूप में दिखता है। लोकसभा चुनाव से लेकर अमरवाड़ा, बुदनी और विजयपुर का उपचुनाव इसका गवाह है। इनमें से विजयपुर में भाजपा की इकलौती पराजय को छोड़ दें, तो शेष सभी मामलों में साफ दिखा कि यादव और शर्मा की युति ने मध्यप्रदेश के स्तर पर डबल इंजन वाली मजबूती को साकार कर दिखाया। ऐसा ही भाजपा के उस सदस्यता अभियान में भी नजर आ रहा है, जिसकी धमाकेदार सफलता के लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी मध्यप्रदेश की पीठ थपथपा चुका है।
यादव 'नाम' के नहीं बल्कि 'काम' के
डॉ. यादव के निर्णयों को ध्यान से देखें तो एक बात साफ है। वो व्यक्ति नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के आधार पर चयन करने में यकीन रखते हैं। यही काम उन्होंने सरकार में भी कर दिखाया। अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं के चलते भाजपा और सरकार पर बोझ बन चुके कई चेहरों को यादव ने सरकार से परे सरका कर उन्हें महज विधायक वाली परिधि में सीमित कर दिया है। बाकी मंत्रियों के चयन में भी दिखता है कि यादव 'नाम' के नहीं बल्कि 'काम' के लोगों को लेकर आगे चलना चाह रहे हैं। और वो आगे बढ़ते हुए देखे भी जा सकते हैं। साल भर का समय कभी अनिश्चितता तो कभी चुनौतियों वाला रहा। इनमें यादव कई जगह सफल तो कही जगह ठिठके हुए भी नजर आए। इस सबके बीच वो अधिकांश जगहों पर अपने हिसाब से 'जमावट' करने में भी कामयाब रहे हैं। तो अब आगे की तस्वीर क्या होगी? क्योंकि सिस्टम को नए सिरे से जमाने के बाद बहुत बड़ी चुनौती उसे सही तरीके से संचालित करने की है।
मुख्यमंत्री की परेशानी
जमावट की बुनावट में जरा भी ढील आई तो साल भर की मेहनत के एक झटके में रेत का महल साबित होने वाली स्थिति बनने में देर नहीं लगेगी। यादव के साथ यह जोखिम बहुत अधिक है। सत्ता से लेकर सरकारी सिस्टम में अब भी वो कई तत्व मौजूद हैं, जो यादव के एक गलत कदम उठाने भर की ताक में हैं। फिर मुख्यमंत्री की परेशानी और भी इसलिए बढ़ जाती है कि सरकार का एक साल उनके लिए वह सालने वाला मामला भी ले आया है, जिसे किसानों की समस्या कहते हैं। राज्य में खाद की किल्लत पर सरकार कितने भी असरकार तरीके से दावे कर ले, लेकिन यह सच है कि खाद के चलते किसान परेशान है। उस पर अपराधों के मामले में हो रही वृद्धि भी यादव के लिए चक्रवृद्धि ब्याज की दर की तरह चिंताजनक हालात बना रही है। बेहद महंगी लोकलुभावन योजनाओं के संचालन की विवशता के साथ ही कमजोर आर्थिक स्थिति का विष भी उन्हें निगलना पड़ रहा है।
ऐसी विपरीत परिस्थितियों से निकलने के लिए यादव अपनी टीम सहित तैयार तो दिख रहे हैं, लेकिन खुद यह टीम मुख्यमंत्री के अनुरूप कितनी तैयार है, यह देखना बहुत जरूरी होगा। और यह भी देखने वाली बात होगी कि टीम के लिहाज से गलत चयन वालों के चाल-चलन को सुधारने के लिए यादव क्या करेंगे? क्योंकि इस जमावट को बार-बार ताश के पत्तों की तरह फेंटने का समय यादव के पास नहीं रह गया है। मुख्यमंत्री के रूप में पहले जन्मदिन के बाद यादव का असली समय शुरू होता है अब। तो अगले चार साल में यादव कैसे दिखेंगे, इसके संकेत तो मिल रहे हैं, लेकिन संकेतों की मुकम्मल तस्वीर बनने के बाद ही यह समझ आ सकेगा कि यादव तकदीर से मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन तदबीर से वह कैसे पार्टी के इस फैसले को सही साबित कर सकेंगे? अपनी तरफ से वे पूरी मजबूती से पेश आ रहे हैं और अगले चार साल के लिए सधे हुए कदमों से वे अपनी मंजिल की तरफ अग्रसर हैं।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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