रविकांत दीक्षित, भोपाल.
- शिवराज सिंह चौहान इतने बेचैन क्यों हैं?
- विदिशा में लड़ाई जीत-हार की तो नहीं है!
- उनकी जीत लगभग-लगभग तय ही मानो।
- क्यों उनकी टीम ऐसे भारी भरकम दौरा कार्यक्रम बना लेती है, जिसे पूरा करने में शिवराज के पसीने छूट जाते हैं?
- सौम्य, सरल और सहृदय माने जाने वाले शिवराज के व्यवहार में ऐसे अचानक बदलाव क्यों आ गया है?
भाईसाहब, चौराहों के चाणक्यों के ऐसे ही कुछ सवाल हैं। विदिशा-रायसेन संसदीय सीट पर सभा के दौरान जो कुछ हुआ, वह मध्यप्रदेश के 'मौन' मतदाताओं ने देख लिया है।
वायरल वीडियो में आप देख सकते हैं कि शिवराज की मौजूदगी में भोजपुर विधायक सुरेंद्र पटवा ( Bhojpur MLA Surendra Patwa ) तैश में घड़ी दिखाते हुए कह रहे हैं कि '10 मिनट हैं मेरी घड़ी में।' फिर वे नाम पूछते हैं, तू तड़ाक की भाषा बोलने लगते हैं। मंच से ही वे उस टीआई को ऐसी जगह फिकवाने की धमकी दे डालते हैं, जहां से वो नजर न आए। मानो वे उस टीआई को मारने के लिए नीचे भी उतरने की कोशिश करते हैं, पर 'कर्मठ' कार्यकर्ता उन्हें रोक लेते हैं।यह पूरा सियासी घटनाक्रम 2 मई की रात का है। मंडीदीप में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सभा में सुरेंद्र पटवा ने टीआई को धमकाया। वजह सिर्फ इतनी सी थी कि टीआई ने 10 बजे प्रचार बंद करने को कहा था।
अब शिवराज की प्रतिक्रिया भी जान लीजिए...
मंच पर शिवराज ने टीआई को संबोधित करते हुए कहा, कैसे बंद किया तुमने, चालू करो उसे। पूर्व मुख्यमंत्री का यह अंदाज उनके समर्थकों को नागवार गुजरा है।सवाल वही है कि आखिर अपनी सौम्यता और सादगी के लिए देशभर में मशहूर शिवराज इतने बेचैन क्यों हो रहे हैं? उनके समर्थक तो इस पर मौन हैं, लेकिन विपक्षी सवाल जरूर उठाते हैं। उनका कहना है कि शिवराज ये बार-बार भूल जाते हैं कि अब मुख्यमंत्री नहीं हैं। चुनाव आयोग के नियम को मानने में क्या परेशानी है? फिर मान लीजिए कि यदि 10 मिनट बचे भी थे तो क्या टीआई के साथ नेताओं को ऐसे पेश आना चाहिए?
यूं धमकी देने की क्या जरूरत थी?
हालांकि, आप बीजेपी की आइडियोलॉजी से यह भी कह सकते हैं कि विदिशा में तो बीजेपी की जीत सुनिश्चित है, इसके बावजूद भी हमारे निष्ठावान कार्यकर्ताओं के साथ प्रत्याशी शिवराज सिंह चौहान अपने प्रचार में जुटे हुए हैं। भाजपा के लिए कर्म प्रधान है। राजनीति जनसेवा का माध्यम है।
लेकिन चाणक्यों का तो सवाल वही है कि 'देश भक्ति और जनसेवा' की शपथ लेने वाले पुलिस वाले से यही बात आराम से भी तो की जा सकती थी, उसे सुरेंद्र पटवा ने यूं फिकवाने की धमकी क्यों दे दी?
पांव-पांव वाले भैया से मामा तक का सफर
दरअसल, विदिशा वही क्षेत्र है, जिसने अपने पांव-पांव वाले भैया के 'मामा' बनने तक के सफर को बेहद नजदीक से देखा है। वे विधायक बने। फिर सांसद। जब पीक आया तो मध्य प्रदेश के मुखिया यानी मुख्यमंत्री बनाए गए। अब वे फिर विधायक हैं। सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं। यहां शिवराज की सियासत सांप-सीढ़ी के खेल समान कही जा सकती है। 99 पर पहुंचकर वे फिर उसी मुहाने पर आ खड़े हैं, जहां से शुरू किया था। हालांकि वे हजार मर्तबा यह कह चुके कि बीजेपी ने उन्हें बहुत कुछ दिया है। यह सही भी है। उनके सिर सत्ता रूढ़ पार्टी के सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड है। यहां शिवराज का 'सब कुछ देने' वाला बयान थोड़ा फिट नहीं बैठता।
गधे के सिर से सींग...
क्या है कि जब विधानसभा चुनाव के बाद उनके सिर से मुख्यमंत्री का ताज चला गया तो दो बयान वायरल हुए थे। उन्होंने तब अपने फोटो होर्डिंग्स से हटने पर कहा था कि होर्डिंग से फोटो ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे गधे के सिर से सींग। उन्होंने यह भी कहा था कि कई बार राज तिलक होते होते वनवास हो जाता है। अब इनके क्या मायने थे, ये तो उनका 'मन' ही जाने।
बहरहाल, अब वे फिर मैदान में हैं। विदिशा लोकसभा सीट ( Vidisha Lok Sabha seat ) के रण में लगे होर्डिंग्स में उनके बड़े बड़े फोटो भी हैं और शायद जनता ने उनके राज तिलक की तैयारी भी कर ली है। अब यहीं भी ट्विस्ट है। क्या है कि विदिशा में भाजपा के प्रचार रथ में मोदी, शिवराज, लाड़ली बहना और भांजे-भांजी के अलावा कोई और चेहरा नहीं है। न मुख्यमंत्री, न पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का। विपक्षी इस पर भी सवाल उठाते हैं। खैर, हमें फोटो में ज्यादा रुचि नहीं है।
मोदी बोले थे- शिवराज मेरे साथी हैं
चौराहों के चाणक्यों से लेकर जमीं पर जमीनी कार्यकर्ताओं तक से बातचीत में यह जरूर साफ है कि समर्थकों ने उनके लिए पोर्टफोलियो तक तय कर लिया है। कोई उन्हें केंद्रीय कृषि मंत्री के रूप में देखना चाहता है तो किसी का अनुमान है कि सरकार बनने की स्थिति में उन्हें केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मिल सकता है। बहरहाल, यह भी तय है कि केंद्र में मोदी सरकार बनती है तो शिवराज बड़े पद से नवाजे जाएंगे। हरदा में पीएम नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi ) ने कहा भी था कि शिवराज मेरे साथी हैं, उन्हें चुनाव जिताएं। अब उन्हें साथ ले जाना चाहता हूं।
मामा और मार्जिन...
कुल मिलाकर फिर मुद्दे पर लौटते हैं कि विदिशा में शिवराज इतनी मेहनत कर क्यों रहे हैं? अब तक इस सीट पर किसी भी बड़े बीजेपी नेता का दौरा नहीं हुआ है। पूरा रण खाली है। मार्जिन की लड़ाई में 'मामा' के साथ 'लाड़ली बहनें' हैं। इसी मार्जिन की लड़ाई में मामा के स्वभाव में मानो परिवर्तन आ गया है। उन्हें चिंता है कि कहीं वोटिंग परसेंट कम रहा तो उनकी जीत का मार्जिन भी कम हो जाएगा। इसी चिंता में वे कई बार मंच पर भी खींच जाते हैं।
अब रिपोर्ट ग्राउंड जीरो...
दोपहर के करीब 2 बजे थे। 25 अप्रैल का वह दिन था।
शिवराज का कारकेड विदिशा से सागर की ओर जाने वाले मार्ग पर ग्यारसपुर में खड़ा था। पूर्व सीएम मंच से अपने लिए वोट मांग रहे थे। बोले, गर्मी बहुत है डरोगे तो नहीं...कितने प्रतिशत वोटिंग होगी, जनता से अलग-अलग आवाज आई। शिवराज ने दुरुस्त करते हुए कहा...कितनी 100 फीसदी। फिर गाड़ी से गमछे आए और मंच से अनाउंसर ने धड़ाधड़ नाम पुकारने शुरू कर दिए। मामा कार्यकर्ताओं को गमछा पहनाने लगे।5 से 7 मिनट तक यह क्रम चलता रहा।
फूल, मालाएं और आतिशबाजी
अब कारकेड आगे बढ़ गया। सड़क पर करीब 10 गाड़ियां दौड़ रही थीं। पूरे रास्ते में उनके चाहने वाले फूल मालाएं लेकर खड़े थे। अपने नेता पर लोग पुष्प वर्षा कर रहे थे। पटाखों की लड़ें की लड़ें जलाई जा रही थीं। जैसे-जैसे गांव करीब आते ढोल की आवाज तेज होती जा रही थी। गर्मी प्रचंड थी। शिवराज ने सिर पर तोलिया बांध रखी थी। किसी ने कहा लू लग गई है इन्हें। फिर भी वे कार से उतरते...कहीं लोगों के बीच पहुंचकर नुक्कड़ सभा करते तो कहीं सेल्फी विद मामा शुरू हो जाता।
मंदिर-मढ़िया एक किए दे रहे हैं
मंदिर-मढ़िया पर धोक देते हुए शिवराज आगे बढ़ रहे थे। सूरज अस्ताचल की ओर था और मामा अपने 'लक्ष्य' की ओर चल रहे थे। गांव में, कस्बे में वे दो बातें जरूर दोहराते। एक लाड़ली बहना की अपनी उपलब्धि, दूसरा गर्मी से डरने की बात। शाम होते-होते तक वही पुराना सब चलता रहा। गमछा पहनाना, ढेरों-ढेर कार्यकर्ताओं के मंच से नाम पुकारे जाना और छोटी—छोटी नुक्कड़ सभाएं।
हमारे नेता हैं शिवराज सिंह चौहान
गंजबासौदा विधानसभा क्षेत्र के मढ़िया गांव में मुस्लिम समाज के लोगों ने शिवराज का स्वागत किया। 5 मिनट तक सेल्फी का दौर चला। 'आंधी नहीं तूफान हैं, शिवराज सिंह चौहान हैं...' के नारे गूंज रहे थे। कार्यक्रम खत्म हुआ, कुछ भीड़ छंटी। लोगों से पूछा कि शिवराज को वोट क्यों देंगे, तो बोले- हमारे नेता हैं, सब कुछ दिया है हमें। दूसरे ने कहा, शिवराज ने हमें सम्मान निधि दी है। लाड़ली बहना के पैसे आ रहे हैं। प्रतापभानु के बारे में पूछा तो एक बुजुर्ग ने कहा, रहे होंगे वे सांसद...हम तो शिवराज को वोट देंगे।
रथ का पता नहीं, खुली कार में रोड शो
इस तरह उस दिन मामा ने करीब 80 गांव कवर किए। बाद में गांवों में वे जहां पहुंचते तो कहते कि आगे भी जाना है, वरना वहां का कार्यक्रम खराब हो जाएगा। अब शिवराज आ पहुंचे थे संसदीय क्षेत्र के दूसरे सबसे बड़े कस्बे गंजबासौदा में। तय शेड्यूल के हिसाब से उन्हें यहां रोड शो करना था। बताते हैं कि रथ तैयार था, लेकिन देर हो गई थी। नियम आड़े आने वाले थे, लिहाजा वे खुली कार में सवार हुए। अपने प्रिय नेता को देखकर लोग पुष्प वर्षा करने लगे। आतिशबाजी हो रही थी, लेकिन जल्दबाजी इतनी थी कि आतिशबाजी के बीच से कारकेड गुजरता चला जा रहा था। आखिरकार खुली कार में रोड शो करते हुए शिवराज फटाफट जनता का अभिवादन करते हुए आगे निकल गए।
देखा, गांव-गांव घूमने पर मजबूर कर दिया
अब आते हैं शिवराज के प्रतिद्वंदी, कांग्रेस प्रत्याशी प्रतापभानु शर्मा ( Congress candidate Pratapbhanu Sharma ) पर। पूर्व सीएम की भागदौड़ से इतर प्रतापभानु कूल नजर आ रहे हैं। बातचीत में वे दावा करते हैं कि 18 साल के मुख्यमंत्री को गांव-गांव घूमने पर मजबूर कर दिया है, ये क्या कम है। यह वही प्रतापभानु शर्मा हैं, 1991 में जिन्हें उपचुनाव में हराकर शिवराज पहली बार विदिशा से सांसद बने थे।
क्या है मनोवैज्ञानिक दबाव
राजनीतिक विश्लेषक शिवराज की मेहनत को अलग ढंग से देखते हैं। उनका कहना है कि वे 20 साल बाद विदिशा लौटे हैं। लिहाजा, मनोवैज्ञानिक दबाव है। इसी कारण उन्हें चुनावी क्षेत्र में भाग-दौड़ करनी पड़ रही है। छह विधानसभा और पांच लोकसभा चुनाव लड़ चुके शिवराज इस चुनाव को अपने पहले चुनाव की तरह ही लड़ रहे हैं। साधना सिंह चौहान और कार्तिकेय चौहान भी चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
शिवराज का राजनीतिक कॅरियर...
- शिवराज ( Shivraj Singh Chauhan ) पहली बार वर्ष 1990 में विधायक चुने गए थे। 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी विदिशा और लखनऊ से सांसद बने तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ( Former Prime Minister Atal Bihari Vajpayee ) ने विदिशा से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद हुए उपचुनाव में शिवराज ने प्रतापभानु शर्मा को हराया था।