भारत का दिल' कहे जाने वाले मध्य प्रदेश का 1 नवंबर को स्थापना दिवस है। इस दिन एमपी के गठन के 69 साल पूरे हो जाएंगे। गठन के बाद राजधानी बनाने की लड़ाई से लेकर स्थापना के 45 साल बाद विभाजन तक के दौर को इस राज्य ने देखा है। इसी के साथ इसने भोपाल गैस लीक जैसी त्रासदी को झेला है और उससे निकल कर देश के उन्नतशील राज्यों की कतार में खड़ा है तो आइए आज आपको बताते हैं की आखिर मध्य प्रदेश कैसे बना।
कैसे बना मध्य प्रदेश
भारत को आजाद हुए 9 साल पूरे हो चुके थे। देश में लोकतंत्र स्थापित हो भी चुका था। देश में जनता द्वारा चुनी गई सरकार का भी गठन हो चुका था। लेकिन देश में भौगोलिक अस्थिरता बनी हुई थी। कई प्रांत भाषाई और भौगोलिक आधार पर अलग राज्य की मांग कर रहे थे। इसी के चलते 1 नवंबर 1956 को देश में 14 नए राज्य अस्तित्व में आए। इन्हीं में से एक मध्य प्रदेश भी था। देश के मध्य हिस्से के 4 छोटे राज्यों को मिलाकर इसका गठन किया गया। जिसमें मध्य प्रदेश जिसकी राजधानी नागपुर थी। मध्य भारत जिसकी दो राजधानियां थी, शीतकालीन राजधानी ( Winter Capital ) ग्वालियर और ग्रीष्मकालीन राजधानी इंदौर विंध्य प्रदेश जिसकी राजधानी रीवा और भोपाल शामिल थे। इस चारों राज्यों की अपनी विधानसभाएं भी थीं।
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कैसे बनी राजधानी
किसी भी राज्य के गठन के बाद सबसे जरूरी चीजों में उसकी राजधानी होती है। इसी तरह एमपी का गठन तो हो गया, लेकिन अब पेंच राजधानी को लेकर फंस गया। कैपिटल बनने के लिए कई जिलों ने अपनी दावेदारी पेश की, जिसमें सबसे पहला नाम ग्वालियर फिर इंदौर का था। साथ ही राज्य पुनर्गठन आयोग ने राजधानी के लिए जबलपुर का नाम भी सुझाया था। इस खींचतान से इतर भोपाल को राजधानी के रूप में चुना गया।
भोपाल को राजधानी क्यों चुना
भोपाल को राजधानी बनाने के पीछे यह तर्क दिया गया की यहां भवन ज्यादा हैं, जो सरकारी कामकाज के लिए उपयुक्त हैं। इसके पीछे एक और कारण माना जाता है। भोपाल को मध्य प्रदेश में मिलाने के बाद से ही यहां के नवाब हैदराबाद के निजाम से मिलकर इसका विरोध कर रहे थे। माना जाता है कि इस विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए भी भोपाल को राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया था।
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कौन थे मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री
जानकारी के मुताबिक राज्य पुनर्गठन के बाद प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में 1 नवंबर 1956 को पंडित रविशंकर शुक्ल ने शपथ ली थी। दरअसल, रविशंकर शुक्ल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ अमावस्या की काली रात को ली थी। लाल कोठी में शपथ समारोह के सारे इंतज़ाम हो चुके थे। शुक्ल, शपथ लेने के लिए मंच पर पहुंच गये थे। तभी किसी ने याद दिलाया कि आज अमावस्या की काली रात है।
मंच पर छाया सन्नाटा
अमावस्या की काली रात है ये सुनकर मंच पर सन्नाटा छा गया सभी गणमान्यों की नजर पं. शुक्ल की तरफ गई। पं. शुक्ल ने देखा की सारा इंतजाम हो गया है। अंधेरी रात की वजह से शपथ को रोकना उन्हें उचित नहीं लगा। उन्होंने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और इस तारीख को एमपी के इतिहास में अमर कर दिया। लेकिन बात का पतंगड़ तो तब बना जब 2 महीने बाद ही रविशंकर शुक्ल की मौत हो गई। हालांकि, उनकी मौत बीमारी के चलते हुई थी, लेकिन लोगों ने दबे जबान में ही सही इसके लिए अमावस्या की काली रात के शपथ ग्रहण को ही इसका कारण माना।
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