Shabd Utsav Program : अब न वो लैला मजनूं जैसे प्यार करने वाले रहे और न जिंदगी की मुश्किलें और हालात वैसे रहे, तो गजल में भी सुर बदलेंगे ही। गजल के तेवर वक्त के साथ बदलते रहे हैं और बदलते रहेंगे।
एक तरफ ये आवाज गूंजी तो दूसरी तरफ ये भी कि फौरी शोहरत अलग चीज है, लेकिन शेर कौन सा कामयाब है, ये तो उसे कहे जाने के 25 साल बाद तय होता है। ये बातें मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के शब्द उत्सव के दौरान गजल केंद्रित अलग-अलग सत्रों में विशेषज्ञ ने कहीं हैं।
शब्द उत्सव के पहले दिन 'गजल आज और कल' सत्र में गजल के कई पहलुओं पर उर्दू अकादमी की प्रमुख डॉ. नुसरत मेहदी, सीनियर शायर इकबाल मसूद, चर्चित लेखक और कवि पंकज सुबीर और युवा शायर डॉ. एहसान आजमी ने खुलकर अपनी राय का इजहार किया।
इस बातचीत में बतौर एंकर भवेश दिलशाद ने बेझिझक सवाल पूछे तो बेबाक जवाब भी मिले। इस तरह सभागार में मौजूद श्रोता भी गजल के वर्तमान और भविष्य के मुद्दों से जुड़ गए।
जो कीड़े रेंगते फिरते हैं नालियों के करीब
वो मर भी जाएं तो रेशम बना नहीं सकते
इकबाल मसूद ने कहा गजल एक खास फन है। जैसे हर कीड़ा रेशम नहीं बनाता, हर शायर गजल नहीं कह सकता...जुबान हो, फन या कंटेंट गजल अपने सफर को रोशन करती जा रही है और आगे भी करेगी।
बशीर बद्र के प्रयोगों को खासी तरजीह देते हुए मसूद ने गजल की जदीदियत को डिफेंड किया। चर्चित लेखक व शायर पंकज सुबीर ने चिंता जतायी कि अब तक हम दुष्यंत के शेर ही कोट कर रहे हैं, तो साफ है कि प्रतिरोध का सुर उतना मजबूत नहीं है।
एक सवाल पर डॉ. मेहदी ने इजहार किया, गजल इशारों किनायों की सिन्फ रही है, इसे बराहे रास्ते बात करने से बचाना चाहिए। डॉ मेहदी ने यह भी कहा कि गजल माशूका से बातचीत के अर्थ में समझी जाती रही है और इसे हिंदी के शृंगार रस के संदर्भ में विरह और मिलन के कंटेंट में समझना चाहिए, यही इसकी पहचान है।
गजल पर बहस के सत्र के दौरान गजल के तकनीकी पक्ष पर भी बात हुई और डॉ. एहसान आजमी ने साफ तौर पर कहा कि गजल के लिए अरूज की शर्त और बंदिश जरूरी है। हालांकि उन्होंने इस गुंजाइश का इशारा भी किया कि शायरी पहली चीज है, अरूज की बाध्यता उसके बाद की।
शब्द उत्सव के अंतिम दिन किताब पर चर्चा के सत्र सियाह, नील और सुर्ख के दौरान भी गजल में नयेपन और रवायत को लेकर रायशुमारी सुनायी दी। सत्र के खास मेहमान डॉ. अंजुम बाराबंकवी ने भी अरूज से पहले शायरी की वकालत करते हुए शायर की काबिलियत को ज्यादा तवज्जो दी।
न करीब आ न तू दूर जा ये जो फासला है ये ठीक है
न गुजर हदों से न हद बता यही दायरा है ये ठीक है
उन्होंने यह शेर कोट करते हुए कहा कि भवेश दिलशाद ने ये गजल जिस बहर में कही है, उसमें गालिब के दीवान में भी कोई गजल नहीं है। ये शायर के फन की बात है। परिचर्चा सत्र में जहां सुबीर ने कहा कि गजल दुष्यंत से आगे नहीं बढ़ सकी है और यह हमारी चिंता है।
वहीं 'सियाह, नील और सुर्ख' सत्र में चर्चित शायरा डॉ. मालिनी गौतम ने अपने वक्तव्य में कहा, "भवेश दिलशाद की गजलों में उर्दू की रवायत भी है, तहजीब भी और हिंदी का मिजाज भी।
दुष्यंत और अदम गोंडवी की गजलों की रवायत नहीं ढोती बल्कि भवेश की गजलें बात आगे बढ़ाती हैं। इस वजह से न ये गजलें हिंदी गजलें हो जाती हैं और न ही सिर्फ कुछ उर्दू शब्दों के इस्तेमाल से उर्दू गजलें हो जाती हैं। "
मशहूर शायर डॉ. अंजुम बाराबंकवी ने साफ तौर पर कहा "ये गजलें दुष्यंत, बशीर बद्र, निदा, राहत जैसी नहीं हैं बल्कि ये भवेश दिलशाद की अपनी गजलें हैं। उनका अपना ढंग है।"
इस नुक्ते पर वरिष्ठ शायर जिया फारुकी ने कहा कि भवेश दिलशाद की गजलें हिंदी की या उर्दू की नहीं बल्कि सबकी हैं। मैंने उर्दू के शायरों के बीच बताया कि देखिए हिंदी की दुनिया का एक शायर उर्दू की पहले न सुनी पढ़ी गयी तरकीबें भी पेश कर रहा है।
तीन दिनों के शब्द उत्सव में यह बात गूंज बनी कि गजल साहित्य की सबसे चहेती, लोकप्रिय और सबसे ज्यादा कोट की जाने वाली विधा रही है, और आगे भी रहेगी। गजल का आने वाला कल रोशन है और समय के साथ वह अपनी भाषा और तेवर तलाशतीऔर तराशती रहेगी।"
जुल्म को देख के चुप रहते हो बोलो वरना
ये जो है नेमते-गोयाई चली जाएगी
डॉ. अंजुम बाराबंकवी के ऐसे शेरों को भरपूर दाद भी मिली। गजल पर बहस और गजल संग्रहों पर चर्चा के अलावा शब्द उत्सव में 'सुखन की शाम' का आयोजन भी हुआ। साहित्यिक कार्यक्रम | उर्दू अकादमी प्रमुख डॉ. नुसरत मेहदी
इसका संचालन युवा शायर बद्र वास्ती ने किया। गजलों के साथ ही इस महफिल में कविताएं और गीत आदि भी पढ़े गए। दुष्यंत कुमार के सुपुत्र आलोक त्यागी संभवत: पहली बार साहित्यिक मंच से अपनी गजलें पढ़ते नजर आए।
इस महफिल में करीब दर्जन भर कवियों ने रचनापाठ किया। शब्द उत्सव के गजल सत्रों के दौरान भोपाल ही नहीं मध्य प्रदेश और अन्य कुछ प्रदेशों से भी ख्यातिलब्ध साहित्यकार, कवि और शायर मौजूद रहे।
उल्लेखनीय है कि तीन दिवसीय शब्द उत्सव में भवभूति अलंकरण एवं सम्मान समारोह, अनुवाद विमर्श, साहित्य और पत्रकारिता, साहित्य की चुनौतियां, शॉर्ट फिल्म स्क्रीनिंग, पुस्तक लोकार्पण, रंगमंच और साहित्य जैसे अनेक सत्रों में भरपूर साहित्यिक विमर्श होता रहा।
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