1 जून को देश में सातवें चरण के लिए 8 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 57 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव कराए जाएंगे ( loksabh elections 2024 )। लोकसभा चुनाव की मतगणना के बाद देशभर में चुनावी शोर थम जाएगा। वहीं मध्य प्रदेश में नौ लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां हारे-जीते कोई भी, लेकिन यहां नए सांसद ही मिलेंगे। बता दें, लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद मध्य प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की स्थिति बन सकती है। इनमें से कुछ सीटों पर जहां मौजूदा विधायक चुनाव लड़ रहे हैं, तो कुछ सीटें ऐसी है जहां से कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ( Madhya Pradesh new MP )
2 राज्यसभा सांसद और 6 विधायक भी मैदान में
मध्य प्रदेश में नौ लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां हारे-जीते कोई भी, लेकिन यहां नए सांसद ही मिलेंगे। इससे पहले 2019 में 17 नए सांसद चुने गए थे। इस बार 29 लोकसभा सीटों पर दो राज्यसभा सांसद और 6 विधायक भी मैदान में हैं। ये जीते तो इन सीटों पर उपचुनाव की भी नौबत आएगी।
मध्य प्रदेश में एक और चुनाव की तैयारी
4 जून को मतगणना के बाद देश में नई सरकार चुनी जाएगी। शपथ ग्रहण और मंत्रिमंडल गठन की औपचारिकताएं पूरी होगी। वहीं मध्य प्रदेश में एक और चुनाव का दौर शुरू हो जाएगा। दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश में कई ऐसी विधानसभा सीटें बचेंगी, जहां उपचुनाव की स्थिति बन गई है। ऐसे में इन सीटों पर चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी जाएंगी। बता दें, अमरवाड़ा विधानसभा सीट पर तो उपचुनाव तय ही है, क्योंकि यहां पर कांग्रेस से विधायक रहे कमलेश शाह ने पार्टी और विधायकी दोनों से ही इस्तीफा दे दिया है।
मध्य प्रदेश की इन 9 सीटों पर मिलेंगे नए सांसद
मुरैना
मुरैना में दोनों पूर्व विधायक हैं। ये पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। मुरैना सीट परंपरागत रूप से भाजपा का गढ़ माना जाता है। 1996 से यहां भाजपा है। यहां पर पहली बार दो नए प्रत्याशियों को मैदान में उतारा गया था। दोनों में ही कांटे की टक्कर देखी गई है। यहां भाजपा से शिवमंगल सिंह तोमर और कांग्रेस से सत्यापाल सिकरवार हैं।
भोपाल
भोपाल में दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरों को मैदान में उतारा हैं। आलोक शर्मा भोपाल के महापौर रह चुके हैं। भाजपा ने मौजूदा सांसद प्रज्ञा ठाकुर का टिकट काटकर आलोक शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। 1989 से भाजपा को इस सीट पर कब्जा है। कांग्रेस से यहां से अरुण श्रीवास्तव हैं।
ग्वालियर
यहां भाजपा- कांग्रेस दोनों के पूर्व विधायक हैं। इस बार दोनों विधानसभा का चुनाव हार गए थे। भाजपा ने यहां से सिटिंग सांसद विवेक शेजवलकर का टिकट काट कर भारत सिंह कुशवाह को प्रत्याशी बनाया था। जबकि कांग्रेस ने प्रवीण पाठक को टिकट दिया है।
सागर
भाजपा-कांग्रेस दोनों ने नए चेहरे को मौका दिया है। भाजपा ने इस बार यहां महिला को मैदार में उतारा। कांग्रेस सहोदरबाई राय इस सीट से 1980 में सांसद रह चुकी हैं। 1996 से ये सीट भाजपा के कब्जे में है। सागर के वोटर सिद्धार्थ चौबे ने कहा-इस बार कोई नया सांसद बनेगा। सागर में भाजपा ने लता वानखेड़े और कांग्रेस ने गुड्डू राजा बुंदेला को मौका दिया है।
दमोह
दोनों पूर्व विधायक हैं। राहुल लोधी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। उप चुनाव में हार गए थे। इस बार के विधानसभा में राहुल को मौका नहीं मिला। भाजपा के मौजूदा सांसद प्रहलाद पटेल के विधायक चुने जाने के बाद से ये रिक्त है। इस सीट पर भी 1989 से भाजपा का कब्जा है। यहां बीजेपी से राहुल सिंह लोधी और कांग्रेस से तरबर लोधी को मौका मिला है। दोनों लोधी समाज से आते हैं और एक समय में दोनों दोस्त भी रह चुके हैं।
जबलपुर
यहां दोनों प्रत्याशी संगठन से जुड़े रहे। भाजपा सांसद राकेश सिंह के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ये सीट रिक्त है। 1996 से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। इस सीट से शरद यादव भी जीत चुके हैं। जबलपुर के वोटर चंदन दुबे कहते हैं कि दोनों प्रत्याशी में कोई भी जीते, पहली बार सांसद बनेगा। यहां भाजपा से आशीष दुबे और कांग्रेस से दिनेश यादव है।
बालाघाट
भाजपा ने मौजूदा सांसद ढाल सिंह बिसेन का टिकट काटकर भारती पारधी को प्रत्याशी बनाया था। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी सम्राट सिंह भी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने इस सीट से पहली बार किसी महिला को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस हीना कांवरे को 2014 में चुनाव लड़ा चुकी है। भाजपा का इस सीट पर 1998 से कब्जा है।
सीधी
दोनों पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। जीते को पहली बार सांसद बनेंगे। कांग्रेस से कमलेश्वर पटेल विधायक और मंत्री रह चुके हैं। वहीं भाजपा से डॉ राजेश मिश्रा संगठन में रहे हैं। भाजपा की सांसद रीति पाठक विधायक चुनी जा चुकी हैं। उनके इस्तीफे से सीट रिक्त थी। इस सीट पर भाजपा का 1998 से कब्जा है।
होशंगाबाद
भाजपा के दर्शन सिंह चौधरी अभी तक संगठन में काम करते रहे हैं। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी तेंदूखेड़ा से विधायक रह चुके हैं। इस बार का विधानसभा चुनाव हार गए थे। 1989 से 2004 तक भाजपा के सांसद जीते। 2009 में कांग्रेस के उदयप्रताप सिंह जीते। अगले दो चुनाव में वे भाजपा से सांसद बने। अब विधायक बनकर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं।
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