अब मध्यप्रदेश में बनेगी तीन गुना अफीम, देश में 90 हजार से बढ़कर ढाई लाख हो जाएंगे किसान
नीमच में नया अफीम प्रसंस्करण प्लांट नवंबर 2026 से शुरू होगा। इससे अफीम किसानों की संख्या 90 हजार से बढ़कर ढाई लाख हो जाएगी। किसान सरकार से रकबा बढ़ाने और समर्थन मूल्य में वृद्धि की मांग कर रहे हैं।
अफीम की खेती करने वाले किसानों के लिए बड़ी खबर है। नीमच जिले के मोरवन में अफीम प्रसंस्करण का नया और आधुनिक प्लांट तैयार हो रहा है, जो नवंबर 2026 से पूरी क्षमता के साथ शुरू होगा।
इसके बाद अफीम किसानों की संख्या करीब 90 हजार से बढ़कर ढाई लाख तक पहुंचने की उम्मीद है। यानी प्रदेश में तीन गुना अफीम उत्पादन होगा।
अभी नीमच का प्लांट 3 हजार टन की प्रोसेसिंग करता है, जबकि नया प्लांट 10 हजार टन से ज्यादा अफीम प्रोसेस करेगा। इसमें मॉर्फिन समेत कई दवाइयों में काम आने वाले उत्पाद भी तैयार होंगे।
किसानों का कहना है कि नई सुविधा से ज्यादा लोगों को रोजगार और खेती का मौका मिलेगा। हाल ही में अफीम किसान सलाहकार समिति की बैठक में किसानों ने सरकार से खेती का रकबा बढ़ाने, समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी और महिलाओं को प्राथमिकता देने जैसे सुझाव भी रखे हैं।
बैठक में किसानों ने दिए सुझाव
Photograph: (The Sootr)
गौरतलब है कि अफीम की खेती से जुड़े कई परिवारों की रोजी-रोटी इसी पर टिकी है। इसे लेकर नीमच में बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें नारकोटिक्स अफसरों के साथ अफीम किसान सलाहकार समिति के सदस्य शामिल हुए। बीजेपी सांसद सुधीर गुप्ता, राज्यसभा सांसद बंशीलाल गुर्जर, जावद विधायक ओमप्रकाश सकलेचा सहित अफीम किसानों ने अपनी बात रखी।
किसानों ने मांग की कि अफीम की खेती का रकबा बढ़ाया जाए, फसल का समर्थन मूल्य बढ़े और जिन किसानों के पति अब नहीं हैं, उनके पट्टों में पत्नी का नाम जोड़ा जाए। इसके अलावा महिलाओं और छोटे किसानों को प्राथमिकता देने की भी बात हुई।
51 हजार से ज्यादा किसानों के पास लाइसेंस
2024-25 के लिए 5120 हेक्टेयर में अफीम की फसल के लिए एनसीबी ने 51,199 किसानों को लाइसेंस जारी किए हैं। इसमें चीरे वाली अफीम और सीपीएस दोनों के लाइसेंस शामिल हैं। एक किसान को दस आरी जमीन पर अफीम की खेती का पट्टा दिया जाता है।
अब अफीम और सीपीएस दोनों के लगभग बराबर पट्टे दिए जाते हैं। पिछले वर्षों पर गौर करें तो 2021-22 में 36,627, 2022-23 में 41,880, 2023-24 में 51,891 किसानों को लाइसेंस जारी किए गए थे। अब अफीम व सीपीएस दोनों के लगभग बराबर पट्टे दिए जाते हैं।
नीमच-मंदसौर-रतलाम में खेती भी, तस्करी भी
जहां एक तरफ अफीम खेती से हजारों परिवारों की आजीविका जुड़ी है, वहीं दूसरी तरफ यही बेल्ट मादक पदार्थों की तस्करी का बड़ा ठिकाना भी बन गया है। हर साल यहां से औसतन 90 हजार किलो से ज्यादा अवैध डोडा-चूरा और अफीम पकड़ी जाती है।
इसके पीछे सरकार की खरीद नीति भी एक वजह मानी जा रही है। 2015 से सरकार ने अफीम की फसल से निकलने वाले डोडा की खरीदी बंद कर दी। किसान इसे ज्यादा दिन तक स्टोर नहीं कर सकते, नष्ट करने का इंतजाम नहीं, ऐसे में चोरी-छिपे यह माल तस्करों के पास पहुंच रहा है।
कई बार लाइसेंस के मुताबिक किसानों के पास थोड़ी-बहुत अफीम और डोडा बच जाता है, जिसका कोई सरकारी रिकॉर्ड नहीं रहता। इसका फायदा तस्कर उठा रहे हैं। किसानों के मुताबिक बची अफीम का बाजार भाव हजारों में नहीं, लाखों में पहुंच जाता है।
क्यों जरूरी है सख्त नीति
नीमच, मंदसौर और रतलाम जैसे जिलों में हर साल हजारों किसान लाइसेंस के तहत अफीम उगाते हैं। लेकिन नियमों में खामियों के कारण बचे डोडा-चूरा को सरकार नष्ट नहीं करवा पाती। नतीजा, कई किसान जेलों में बंद हैं और अवैध कारोबार फल-फूल रहा है। किसानों को डर है कि अगर नीतियां साफ न हुईं तो तस्करी रोकना मुश्किल होगा।
किसानों का कहना है कि अफीम खेती को बचाना है तो प्रोसेसिंग के साथ-साथ सरकार को खरीदी और नष्टीकरण की नीति भी सख्त करनी होगी, ताकि अफीम और डोडा खेत से सीधे प्लांट तक जाए, और गलत हाथों में न पहुंचे। MP News