मध्य प्रदेश में किसी पंचायत में एक व्यक्ति के नाम पर बेहिसाब भुगतान, तो कहीं रिश्तेदारों के खाते में जा रहा सरकारी धन

प्रदेश की किसी पंचायत में सरपंच काम कराए बिना ही रुपया हड़प रहे हैं, तो सचिव भी अपने लाभ के लिए आंखें बंद कर सरकार के खजाने को बट्टा लगा रहे हैं।

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Sanjay Sharma
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भोपाल. किसी जमाने में पंचों को परमेश्वर कहा जाता था, लेकिन वह दौर अब गुजर चुका है। अब तो पंचायती राज भगवान भरोसे चल रहा है। पंचायतों में सरकारी खजाने से आने वाली राशि की बंदरबांट का खेल जारी है। इसमें सरकारी कर्मचारियों और ग्रामीण जनप्रतिनिधियों में ज्यादा कमाई करने की होड़ लगी है। प्रदेश की किसी पंचायत में सरपंच काम कराए बिना ही रुपया हड़प रहे हैं, तो सचिव भी अपने लाभ के लिए आंखें बंद कर सरकार के खजाने को बट्टा लगा रहे हैं। राशि हड़पने की शिकायतें सरकार तक भी पहुंचती हैं लेकिन नेताओं की छत्रछाया के चलते कार्रवाई टल जाती है।  

प्रदेश में पंचायती राज के क्या हालात हैं हाल ही में इसे ताजा उदाहरणों से आम समझ सकते हैं। प्रदेश में ऐसे हजारों किस्से हैं लेकिन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यक्षेत्र की दो पंचायतों की मनमानी आपको बताते हैं। आप भी इन मामलों को जानकार भ्रष्टाचार की कारगुजारियों पर माथा पीट लेंगे। पंचायतों में नियम विरुद्ध बिलों के भुगतान पर जनपद सीइओ भगवान सिंह राजपूत भी गंभीर नजर नहीं आते। मामला सामने पहुंचने पर उन्होंने कहा लिखित शिकायत अब तक नहीं मिली है। जांच में बिल भुगतान में गड़बड़ी पाई गई तो कार्रवाई होगी ही। 

सरपंच ने नहीं छोड़ा सफाई का भी रुपया

पहला मामला विदिशा जिले की ग्राम पंचायत उदयपुर का है। हाल ही में पंचायत द्वारा किए गए भुगतान की जानकारी उजागर हुई तो सब हैरान रह गए। वजह ही कुछ ऐसी थी। सरपंच वर्षा चौरसिया को सफाई कार्य की मद से 15 हजार 500 रुपए का भुगतान किया गया था। यह राशि एक ही दिन में दो बाउचर के माध्यम से सरपंच के बैंक खाते में ट्रांसफर की गई थी।

यहां हैरत की बात यह है कि आखिर सरपंच के बैंक खाते में सफाई कार्य की राशि का भुगतान क्यों किया गया ? क्योंकि सरपंच तो सफाई करती नहीं है। यदि किसी स्वच्छताकर्मी की यह राशि थी तो उसके बैंक खाते में ट्रांसफर क्यों नहीं की गई ?

नियमों की अनदेखी कर किया गया भुगतान 

सरपंच वर्षा चौरसिया से बात करने उनके पति ने संपर्क किया लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया। पति को कॉल इसलिए करना पड़ा क्योंकि पंचायत का कामकाज उनके पति राजेन्द्र चौरसिया रज्जू ही संभालते हैं। मामले को समझने जब सचिव कोमल सेन से संपर्क किया तो वे पल्ला झाड़ने लगे। उन्होंने कहा यह भुगतान उनके काम संभालने से चार-पांच महीने दूसरे सचिव का है।

 हालांकि इस तरह सरकारी राशि दूसरे के खाते में ट्रांसफर करना उन्होंने भी गलत माना। पंचायत में स्टेशनरी, मिठाई, टेंट, रंगाई-पुताई से लेकर निर्माण कार्यों के लाखों रुपयों के बिलों का भुगतान भी सरपंच के परिजनों के नाम पर किया गया है। पंचायत में लगातार लाखों रुपयों के निर्माण कार्य दस्तावेजों पर चल रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है।

पंचायत में हेमराज ही करता है सब काम 

दूसरा किस्सा विदिशा जिले की ही झिलीपुर पंचायत से जुड़ा है। यहां तो पंचायत के सरपंच संतोष कुशवाह और सचिव ने मनमानी की हद पार कर दी हैं। 14वे वित्त अनुदान से राशि मिलते ही पंचायत ने भुगतान के नाम पर जमकर बिल फाड़े। इस दौरान इसका ख्याल भी नहीं रखा गया कि यह बिल वाउचर गड़बड़झाले की परतें खोल देंगे।

पंचायत में कांक्रीट, स्कूलों में मिठाई बांटने, सफाई, चौकीदार का मानदेय और मतदान केंद्र की पुताई की मजदूरी का भुगतान हेमराज कुशवाह को कर दिया गया। अचरज की बात है, हेमराज पंचायत का चौकीदार है, वह मिठाई बनाता है, फर्नीचर का काम, मकानों की पुताई और नालियां भी साफ करता है ?

भुगतान के तरीके कर रहे गड़बड़ी का इशारा

झिलीपुर ग्राम पंचायत ने जिस तरीके से मिठाई से लेकर सफाई के बिलों का भुगतान हेमराज कुशवाह के नाम पर किया है वह संदेहास्पद है। हेमराज की मिठाई की दुकान है और न फर्नीचर की। वह नालियों की सफाई भी नहीं करता। फिर भुगतान उसके नाम पर क्यों किया गया। बाजार से मिठाई खरीदी गई, निर्माण कराया गया या फिर दूसरे काम, संबंधित फर्मों से बिल क्यों नहीं लिए गए।

 वहीं जब भुगतान की व्यवस्था ऑनलाइन है और सबके पास बैंक खाते हैं तो भुगतान ऑनलाइन क्यों नहीं किया गया। भुगतान के इस तरीके से सरपंच और सचिव की मिलीभगत से गड़बड़ी की आशंका ग्रामीण जता रहे हैं।

कार्रवाई नहीं होती, इसलिए बेहिसाब गड़बड़झाले 

प्रदेश की ग्राम पंचायतों में योजनाओं का लाभ दिलाने में कमीशनबाजी से लेकर सरकारी खजाने में सेंधमारी जारी है। ऐसे मामले लगातार सामने आते हैं और शिकायतें अधिकारियों से लेकर  सरकार तक पहुंचती हैं। अधिकांश मामले तो आपसी बुराई के चलते गांव के लोग ही दबा देते हैं। वहीं जिनमें शिकायत होती है उन्हें अधिकारी जांच के नाम पर फाइलों में कैद कर देते हैं।

पिछले महीनों में हरदा जिले की साल्याखेड़ी में सरपंच ने जेठानी को मजदूरी की मद से तो सचिव ने अपने इंजीनियर बेटे के खाते में 4 लाख 40 हजार रुपए डाल दिए। सरकारी रुपया दोनों ने मिलकर बराबर बांट लिया। वहीं सीधी जिले की बागढ़ खास में सरपंच और सचिव ने मिलकर पंचायत का सवा लाख रुपए हड़प लिया। 15 लाख से पुलिया बनवाई और भुगतान 16 लाख 32 हजार कर दिया। इन मामलों में विभागीय स्तर पर जांच ही जारी है।

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