स्वयंभू यूनिवर्सिटी...2-2 साल बाद परीक्षा, सिर्फ डिग्री बांटने का खेल

मध्य प्रदेश में बीते एक दशक में सरकार की दरियादिली के चलते अब प्राइवेट यूनिवर्सिटी की संख्या 53 हो चुकी है। इनमें कई यूनिवर्सिटी तो गुमनाम हैं तो कुछ सरकारी यूनिवर्सिटीज को भी पीछे छोड़ रहे हैं।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. अपने विश्वविद्यालयों को संभालने में लाचार सरकार का बीते एक दशक में प्राइवेट यूनिवर्सिटी को अनुमति देना अब मुश्किल खड़ी कर रहा है। प्रदेश में बीते एक दशक में सरकार की दरियादिली के चलते अब निजी विश्वविद्यालयों की संख्या 53 हो चुकी है। इनमें कई यूनिवर्सिटी तो गुमनाम हैं तो कुछ सरकारी यूनिवर्सिटी  को भी पीछे छोड़ रहे हैं। इनकी निगरानी और नियंत्रण के लिए प्रदेश में नियामक आयोग भी है लेकिन  रसूखदार, उद्योग और राजनीतिक घरानों के ये यूनिवर्सिटी अब निरंकुश हो चले हैं। इनमें कुलपति जैसे अहम पद पर नियुक्ति से लेकर पाठ्यक्रमों में प्रवेश जैसी सामान्य प्रक्रिया भी मनमाने तरीके से चल रही है। इनमें ज्यादा फीस की वसूली, कक्षाओं में पढ़ाई नहीं कराने और परीक्षाएं भी मनचाहे शैड्यूल से कराने की शिकायतें सामने आती रही हैं, लेकिन कार्रवाई शायद ही किसी पर हुई हो। नियामक आयोग के नोटिस के तीन माह बाद भी तीन दर्जन प्राइवेट यूनिवर्सिटी ने अयोग्य कुलपति नहीं बदले हैं और आयोग को जवाब तक नहीं दिया है। 

कार्रवाई केवल नोटिस तक सिमटी 

प्राइवेट यूनिवर्सिटी की मनमानी पर कसावट रखी जा सके, इसके लिए प्रदेश में नियामक आयोग भी है। आयोग के प्रमाणन के बाद ही हर साल प्राइवेट यूनिवर्सिटी का फी-स्ट्रक्चर जारी होता है लेकिन ये सिर्फ वेबसाइट के लिए होता है। असलियत में तो छात्रों से निर्धारित से ज्यादा फीस वसूल की जाती है। या फिर अध्ययन के दौरान और परीक्षा के समय अलग-अलग मदों में फीस जमा कराने मजबूर किया जाता है। वहीं शिकायतों के बाद उच्च शिक्षा विभाग और नियामक आयोग की ओर से भी केवल नोटिस भी जारी होता है। बीते रिकॉर्ड को देखें तो अब तक किसी निजी यूनिवर्सिटी पर आयोग की सख्ती नहीं चली है। तीन माह पहले कुलपतियों की मनमानी नियुक्ति पर आयोग ने नोटिस जारी किया था लेकिन इसका असर भी ज्यादातर यूनिवर्सिटीज पर नहीं पड़ा। हाल ही में यूजीसी की गाइडलाइन की अनदेखी के मामले में भी नियामक आयोग केवल जवाब तलब करने नोटिस ही दे पाया है। कार्रवाई के सवाल पर आयोग के जिम्मेदार स्वयं ही प्राइवेट यूनिवर्सिटीज के पाले में खड़े दिखते हैं। वहीं ज्यादातर प्राइवेट यूनिवर्सिटीज की जमीनी स्थिति अच्छी नहीं है।

यूजीसी की गाइडलाइन भी ताक पर 

प्रदेश में उच्च शिक्षा के विस्तार के उद्देश्य के साथ खुली निजी यूनिवर्सिटी अब केवल कमाई का जरिया बन चुकी हैं। 53 निजी यूनिवर्सिटी के संचालक इतने प्रभावशाली हैं कि नियम का उल्लंघन होने पर भी कार्रवाई से बच निकलते हैं। बीते माह प्रदेश की 53 निजी यूनिवर्सिटी में से 24 को यूजीसी की गाइडलाइन नजरअंदाज करने का जिम्मेदार पाया गया था। इन यूनिवर्सिटीज के पास कई जरूरी दस्तावेज, अनुमति संबंधी 2-F, 12-B जैसे प्रमाण पत्र भी अधूरे हैं। इनमें 2-F प्रमाण पत्र प्राइवेट यूनिवर्सिटीज को परीक्षा के बाद डिग्री देने का अधिकार सौंपता है। जबकि 12-B सर्टिफिकेट के जरिए UGC यानी यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग से आर्थिक मदद प्राप्त की जा सकती है। इन दोनों प्रमाण पत्रों के बिना यूनिवर्सिटी का संचालन नहीं किया जा सकता। लेकिन कुछ प्राइवेट यूनिवर्सिटी 2-F सर्टिफिकेट के बिना ही तीन-चार साल से परीक्षा लेकर छात्रों को डिग्री बांटते आ रहे हैं। ऐसी शिकायतों के बाद अब यूजीसी जांच करा रही है। प्रदेश में निजी यूनिवर्सिटी की स्थापना विधानसभा के एक्ट के माध्यम से होती है। इसके बावजूद इसमें पाठ्यक्रमों के संचालन से लेकर परीक्षा के आयोजन और डिग्री प्रदान करने तक यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग यानी UGC की गाइडलाइन का पालन करना जरूरी है।  

अब भी नहीं बदले अपात्र कुलपति 

प्राइवेट यूनिवर्सिटी की  मनमानी की चर्चा करें तो घंटों तक की जा सकती है। प्रदेश भर में इनके सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे। सबसे पहले बात आयोग की अनदेखी की करते हैं। दरअसल निजी यूनिवर्सिटी के फी-स्ट्रक्चर से लेकर शैक्षणिक स्टाफ और प्रवेश सत्र की हर जानकारी आयोग के पास पहुंचती है। इसके बाद भी आयोग को करीब तीन-चार महीने पहले ये पता चला कि तीन दर्जन से ज्यादा प्राइवेट यूनिवर्सिटी में कुलपति अयोग्य हैं। वे कुलपति के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र ही नहीं हैं।  इसके बाद भी आयोग ने केवल नोटिस ही जारी किए, इन नोटिसों को तीन महीने से ज्यादा समय बीत चुका है लेकिन क्या कुलपति हटाए गए, कुलपतियों की नियुक्ति में ये मनमानी क्यों बरती गई इसका कोई जवाब नहीं है। विधानसभा एक्ट के तहत प्राइवेट यूनिवर्सिटी को अनुमति देते समय आयोग दस्तावेजों की पड़ताल क्यों नहीं कर सका। यदि प्रमाण पत्र संचालन के दौरान मिलना है तो समयावधि को क्यों नजरअंदाज किया गया।

भोपाल-इंदौर में यूनिवर्सिटियों की बाढ़ 

प्रदेश की राजधानी भोपाल और व्यापारिक केंद्र इंदौर में बीते एक दशक में निजी क्षेत्र के प्राइवेट यूनिवर्सिटीज की बाढ़ आ गई है। भोपाल में इनकी संख्या 14 है तो इंदौर में प्राइवेट यूनिवर्सिटी 11 हो चुकी  हैं। ग्वालियर-जबलपुर, सीहोर जैसे प्रदेश के छोटे-बड़े जिलों को मिलाकर यह संख्या 53 पहुंच जाती है। भोपाल में ही मध्यप्रदेश प्राइवेट यूनिवर्सिटी रेगुलेटरी कमीशन यानी नियामक आयोग भी है। इसके बावजूद निगरानी केवल फाइलों पर ही होती है। इसी वजह से प्राइवेट सेक्टर के यूनिवर्सिटीज में प्रबंधन की मनमानी चलती  है। बीते शैक्षणिक सत्र में प्रदेश के इन निजी यूनिवर्सिटीज में  97 हजार 306 छात्र-छात्राओं ने प्रवेश लिया था लेकिन सामने आने वाली खामियों के चलते इस सत्र में प्रवेशी छात्रों की संख्या घटकर 77 हजार 562 ही रह गई है। यानी एक सत्र में छात्रों की संख्या में 19 हजार की कमी आई है। अचानक इतने छात्र कम क्यों हुए इसको लेकर भी आयोग को पड़ताल करने की जरूरत है। 

कहां कितने निजी विश्वविद्यालय 

भोपाल-14
इंदौर-11
ग्वालियर-03
जबलपुर- 02
सीहोर- 04
रायसेन-02
सागर-02
शिवपुरी-02
मंदसौर-01
नीमच-01
विदिशा_01
खंडवा_01
खरगोन-01
दमोह-01
सतना-01
छिंदवाड़ा-01
बालाघाट-01
देवास-01
उज्जैन-01
छतरपुर-01
गुना-01

फैक्ट फाइल :
प्राइवेट यूनिवर्सिटी  : 53 
2023-24 में छात्र   : 97306
2024-25 में छात्र   : 77562

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