देश में गणेशोत्सव की धूम है। भक्त गणपति को मानने के लिए उनकी आराधना में लीन रहने वाले हैं। गणेश मंदिरों में भक्तों का सैलाब भी देखने को मिलेगा। वैसे तो देश में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां भक्तों का मेला लगता है लेकिन मध्य प्रदेश के सीहोर का गणेश मंदिर की अपनी खासियत है कि गणेश जी प्रार्थना जल्दी सुनते हैं, चिंता दूर करते हैं और मुरादें पूरी करने के लिए देश-विदेश में विख्यात है।
सीहोर के गणेश प्रथम स्वयं-भू
देश में भगवान गणेश की चार सिद्ध प्रतिमाएं हैं। इन प्रतिमाओं में गुजरात में सिद्धपुर, राजस्थान के सवाई माधोपुर रणथंभौर गणेश मंदिर, उज्जैन में चिंतामन गणेश, और सीहोर के सिद्धिविनायक गणेश हैं। इनमें से सीहोर के गणेश प्रथम स्वयं-भू माने जाते हैं। सीहोर के गणेश मंदिर की कहानी रोचक है, मान्यता है कि इस चिंतामन गणेश मंदिर के सभा मंडप का निर्माण सम्राट विक्रमादित्य ने करवाया है। मंदिर का स्तूप श्री यंत्र के कोणों पर स्थित है।
महाराजा विक्रमादित्य ने कराया था मंदिर का निर्माण
सीहोर मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 155 में महाराजा विक्रमादित्य द्वारा गणेश जी के मंदिर का निर्माण श्रीयंत्र के अनुरूप करवाया था। राजा विक्रमादित्य के बाद मंदिर का जीर्णोद्धार और सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने करवाया था। शालिवाहन शक, राजा भोज, कृष्ण राय तथा गोंड राजा नवल शाह आदि ने मंदिर की व्यवस्था में सहयोग किया था। नानाजी पेशवा बिठूर आदि के काल में मंदिर की ख्याति और प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैली थी
मूर्ति के आधे दर्शन
सिद्धिविनायक गणेश मंदिर में भगवान की प्रतिमा को आप देखेंगे तो मूर्ति आपको जमीन में धंसी हुई दिखाई देगी, मूर्ति का बाहरी हिस्से के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि प्रतिमा कमर से नीचे तक जमीन में धंसी हुई है। प्राचीन काल में इसे खोदने की कोशिश की गई लेकिन सफल नहीं हो सके। आमतौर पर मंदिरों में भगवान श्री गणेश की सूंड बायीं ओर रहती है, लेकिन सिद्धिविनायक गणेश में भगवान की सूंड दांयी और है। इससे भगवान सिद्ध और स्वयं-भू कहलाते हैं।
उल्टे स्वास्तिक से होती है मनोकामना पूरी
हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले सीधा स्वास्तिक बनाया जाता है जो शुभ माना जाता है। अगर आप उल्टा स्वास्तिक बनाते है तो वह अशुभ माना जाता है । सीहोर के गणेश मंदिर में भक्त उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि उल्टा स्वास्तिक बनाने से मनोकामना पूरी हो जाती है और जब मनोकामना पूरी हो जाती है तो उसके बाद सीधा स्वास्तिक बनाकर भगवान का धन्यवाद दिया जाता है।
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