मस्तक पर चंद्र और बेलपत्र से हुआ बाबा महाकाल का राजसी श्रृंगार, लाखों भक्तों ने किए दर्शन

विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में मंगलवार को सावन के पावन मास में बाबा महाकाल को राजा स्वरूप में सजाया गया। सुबह की भस्म आरती के दौरान भगवान को रजत मुकुट, चंद्र और बेलपत्र अर्पित किए गए, जिसका अलौकिक दृश्य देख हजारों भक्त भाव-विभोर हो गए।

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Kaushiki
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बाबा महाकालभस्म आरती: सावन के पावन मास में मंगलवार की सुबह विश्व प्रसिद्ध उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर में भक्तों को बाबा महाकाल के अद्भुत और दिव्य दर्शन हुए। भस्म आरती के दौरान भगवान को राजा के स्वरूप में सजाया गया, जिसका अलौकिक दृश्य देख भक्त भाव-विभोर हो गए।

सुबह 4 बजे मंदिर के कपाट खोले गए और नंदी हाल में डमरू और झांझ मंजीरों की गूंज के साथ भस्म आरती की शुरुआत हुई। इस दौरान, हजारों की संख्या में श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए पहुंचे और इस अद्वितीय क्षण के साक्षी बने।

महाकाल का शाही अभिषेक और श्रृंगार

भगवान महाकाल का अभिषेक करने के लिए सबसे पहले जल का उपयोग किया गया। इसके बाद, दूध, दही, घी, शहद और फलों के रस से बने पंचामृत से भगवान का अभिषेक किया गया। यह पंचामृत पूजन न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि यह भगवान के प्रति भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक भी है।

अभिषेक के बाद, बाबा महाकाल का दिव्य श्रृंगार किया गया। त्रिनेत्रधारी भगवान को चंदन का त्रिपुंड और रुद्राक्ष की माला पहनाई गई। इसके साथ ही, उन्हें रजत का मुकुट, चंद्र और बेलपत्र अर्पित कर राजा स्वरूप में सजाया गया।

यह राजसी रूप भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र था। इसके अलावा, भगवान को शेषनाग का रजत मुकुट, मुंडमाल और सुगंधित फूलों की माला भी पहनाई गई। भगवान महाकाल ने भांग, चंदन, ड्रायफ्रूट और भस्म धारण की, जिससे उनका रूप और भी भव्य हो गया।

भस्म आरती का आध्यात्मिक महत्व

भस्म आरती के बाद, भगवान महाकाल को फल और मिष्ठान का भोग लगाया गया। इस दौरान नंदी हाल में डमरू, झांझ और मंजीरे के साथ भस्म आरती की गई, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। बड़ी संख्या में भक्तों ने बाबा महाकाल का आशीर्वाद लिया, जिससे मंदिर परिसर में भक्ति और आस्था का अद्भुत माहौल बन गया।

भस्म आरती की प्रक्रिया शुरू होने से पहले, सभा मंडप में घंटी बजाकर वीरभद्र जी के कान में स्वस्ति वाचन किया गया जिसके बाद चांदी के पट खोले गए। पुजारी ने गर्भगृह के पट खोलकर भगवान का श्रृंगार उतारा और पंचामृत से पूजन किया। इसके बाद, कर्पूर आरती की गई।

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