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उज्जैन महाकाल की भस्मारती
Latest Religious News: उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर की एक अद्वितीय और मुख्य पूजा पद्धति है भस्मारती। ये वो दिव्य प्रक्रिया है जिसमें शिवलिंग का भस्म से श्रृंगार किया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसे देखने के लिए देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु रोज यहां आते हैं।
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वैराग्य का प्रतीक
भस्म हमें याद दिलाती है कि जीवन का अंतिम सत्य केवल भस्म यानी राख है। शिव हमेशा भस्म धारण करते हैं। इसका अर्थ है कि उन्होंने मोह-माया और सांसारिक आकर्षण को त्याग दिया है। भक्त भस्म लगाकर यह संदेश ग्रहण करते हैं कि उन्हें भी अस्थायी सुखों से विरक्त होकर सच्चे ज्ञान की ओर बढ़ना चाहिए।
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मृत्यु पर विजय
भगवान शिव को महाकाल कहा जाता है, जिसका अर्थ है काल के भी देवता। भस्म का लेपन मृत्यु के ऊपर शिव की शक्ति को दर्शाता है। यह भक्तों को यह आश्वस्त करती है कि शिव ही अंतिम सत्य हैं और उनके आगे मृत्यु भी शक्तिहीन है।
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शुद्धिकरण का साधन
भस्म को अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह अग्नि में जलने के बाद पूरी तरह से शुद्ध हो जाती है और सभी विकारों से मुक्त होती है। इसका लेपन शिवलिंग और भक्तों के शरीर पर करने से नकारात्मक ऊर्जाएं और दूर रहती हैं। धार्मिक मान्यताओं में यह शरीर और आत्मा पर लगे जानी-अनजानी अशुद्धियों को हटाकर एक सुरक्षा कवच प्रदान करती है।
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शरीर को सुरक्षा
प्राचीन काल में महाकाल भस्मारती में रोगाणुनाशक और जीवाणु रोधक गुण होते थे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, इसे त्वचा पर लगाने से यह बैक्टीरिया और कीटों के प्रभाव से सुरक्षा प्रदान करती थी। खासकर ब्रह्म मुहूर्त के समय जब वातावरण में नमी ज्यादा होती है। यह एक प्राकृतिक ड्राई क्लीनिंग एजेंट के रूप में काम करती थी।
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ऊर्जा का संरक्षण
भस्म को वैज्ञानिक रूप से एक श्रेष्ठ ऊष्मा रोधी माना जाता है। यह शरीर की प्राकृतिक ऊर्जा और गर्मी को बाहर निकलने से रोकती है। इससे ठंडे मौसम में भी साधक या पुजारी ध्यान केंद्रित कर पाते हैं। यह प्रक्रिया शरीर के महत्वपूर्ण चक्रों पर गर्मी बनाए रखने में मदद करती है, जो ध्यान और तपस्या के लिए आवश्यक है।
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जागृति का समय
भस्मारती तड़के 4 बजे, यानी ब्रह्म मुहूर्त में शुरू की जाती है। शास्त्रों में इसे ईश्वरीय ऊर्जा को ग्रहण करने का सबसे उत्तम समय माना गया है। इस समय वातावरण शांत और पवित्र होता है। इससे पूजा और मंत्र जाप का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। इस शुभ काल में शिव का दर्शन और पूजन करने से मनुष्य के मन और आत्मा में सकारात्मकता का संचार होता है।
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भूतभावन का स्वरूप
भस्मारती शिवलिंग का अंतिम श्रृंगार उतारकर उसे जागरण और नया श्रृंगार देने की प्रक्रिया है। इसे एक विशेष अनुष्ठान के साथ किया जाता है। पहले शिवलिंग को पवित्र जल से नहलाया जाता है। फिर भस्म लेपन द्वारा उन्हें उनके मूल अघोर रूप में स्थापित किया जाता है। यह दर्शन भक्तों को शिव के आदि और अनंत स्वरूप का अनुभव कराता है। डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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