नगर निगम घोटाले में अब एमआईसी सदस्य राजेंद्र राठौड़ का पत्र, निगम आयुक्त, अपर आयुक्त, लेखा अधिकारी की जिम्मेदारी बताई

इस घोटाले से निगम के अधिकारी, कर्मचारी व ठेकेदारों का गठजोड़ सामने आया है। इससे शहर और निगम की साख को बट्‌टा लगा है। इतनी अधिक मात्रा में राशि के भुगतान निगम आयुक्त, अपर आयुक्त, लेखा अधिकारी के सहमति या संज्ञान के बाद ही किए जाते हैं। 

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Sandeep Kumar
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संजय गुप्ता @ INDORE. नगर निगम के फर्जी बिल घोटाले में महापौर पुष्यमित्र भार्गव ( Mayor Pushyamitra Bhargava ) का चौंकाने वाला पत्र अभी चर्चा में ही था कि एमआईसी ( मेयर इन काउंसिंल MIC ) सदस्य राजेंद्र राठौड़ ने नई चिट्‌ठी भेज दी। यह पत्र उन्होंने सीएम डॉ. मोहन यादव ( CM Dr. Mohan Yadav ) के साथ ही मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, प्रमुख सचिव अमित राठौर जो जांच कमेटी के अध्यक्ष है और उनके साथ प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन नीरज मंडलोई को भेजी है। इसमें इस घोटाले के लिए निगम आयुक्तों, अपर आयुक्त व लेखा अधिकारी की भी जिम्मेदारी बताई गई है। 

यह लिखा है पत्र में

राठौड़ ने पत्र में लिखा है कि- इस घोटाले से निगम के अधिकारी, कर्मचारी व ठेकेदारों का गठजोड़ सामने आया है। इससे शहर और निगम की साख को बट्‌टा लगा है। इतनी अधिक मात्रा में राशि के भुगतान निगम आयुक्त, अपर आयुक्त, लेखा अधिकारी के सहमति या संज्ञान के बाद ही किए जाते हैं। ऐसी स्थिति में तत्कालीन समय के निगम आयुक्त, संबंधित विभाग के अपर आयुक्त और लेखा अधिकारी की जवाबदेही इन भुगतानों के लिए बनती है। 

वरिष्ठ अधिकारियों के संरक्षण के कारण यह बचे रहे

राठौड़ ने आगे लिखा कि- पुलिस जांच कर रही है और जो अधिकारी अभी आरोपी बने हैं वह पहले भी आर्थिक अनियमितता में दोषी पाए गए हैं, लेकिन लचर व्यवस्था और वरिष्ठ अधिकारियों के संरक्षण के कारण उन पर प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई। इसके कारण हौंसले बढ़ते गए। 

निगम की जांच कमेटी और जांच एजेंसियों पर भी उठाए सवाल

उन्होंने पत्र में निगम की जांच कमेटी और शासन की जांच एजेंसी दोनों पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने लिखा है कि शासन की जांच एजेंसी इन मामलों में प्रभावी कार्रवाई नहीं करती है साथ ही विभागीय नगर निगम की जांच कमेटियां भी संदिग्ध रहती है। लोकायुक्त पुलिस द्वारा अधिकारियों के विरुद्ध दर्ज केस में अभियोजन की मंजूरी लटकी रहती है। यही भ्रष्ट अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद भी संविदा में सेवा में बने रहते हैं। साल 2012 में अभय राठौर ने यातायात घोटाला किया था लेकिन बच गए। लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू में केस चले लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। पत्र में राठौर ने यह भी लिखा है कि निगम तंगहाली में चल रहा है और एक और फर्जी बिल भुगतान हुए, वहीं ईमानदार ठेकेदार भुगतान नहीं होने से आत्महत्या के लिए मजबूत हुए। विकास काम रूक गए हैं। 

महापौर की मांग निगम घोटाले में बने विभागीय कमेटी 

उधर महापौर पुष्यमित्र भार्गव द्वारा मुख्य सचिव ( सीएस ) को स्मार्ट सिटी घोटाले को लेकर लिखे पत्र में इसकी जांच ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त जैसी जांच एजेंसी से कराने की बात कही है, वहीं इसी पत्र में उन्होंने निगम के फर्जी बिल घोटाले का भी जिक्र कर एक विभागीय कमेटी बनाने का सुझाव दिया है। यह कमेटी नगर निगम के बिल घोटाले की चल रही पूरी जांच की मॉनीटरिंग करे, जो समयबद्ध तरीके से जांच पूरी करा सके और जो इस पूरे घोटाले में जिम्मेदार अधिकारी रहे हैं उनकी भूमिका तय कर सके, ताकि मप्र शासन और निगम का जनता का विश्वास बना रहे। 

घोटाले को लेकर पूर्व विधायक नेमा भी लिख चुके पत्र

इस घोटाले को लेकर यह चौथी चिट्‌ठी है जो सीएम को गई है। महापौर इस घोटाले की पहली जानकारी आने के बाद ही सीएम को अप्रैल में पत्र लिख चुके थे कि और इसकी उच्च स्तरी जांच की मांग कर चुके थे। अब यह स्मार्ट सिटी घोटाले में लिखी गई उनकी चिट्‌ठी है, जिसमें निगम घोटाले को लेकर भी लिखा गया है। यह पत्र वैसे सीएस को है लेकिन उन्होंने सीएम, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को भी इसकी कॉपी भेजी है। वहीं पूर्व बीजेपी विधायक गोपीकृष्ण नेमा भी 15 मई को सीएम को पत्र लिख चुके हैं। इसमें उन्होंने भ्रष्टाचार का आंकड़ा एक हजार करोड़ तक होने की आशंका जाहिर करते हुए सीएम से कड़ी कार्रवाई की मांग की थी। इस घोटाले को उन्होंने अकल्पनीय बताया था।

लगातार घिर रहे हैं IAS निगमायुक्त

इन लगातार पत्रों से इंदौर नगर निगम के पूर्व IAS निगमायुक्त लगातार घिरते जा रहे हैं। महापौर से लेकर अन्य नेता नाम तो किसी का नहीं लिख रहे है लेकिन पत्रों में तत्कालीन अधिकारियों को जिम्मेदार बताने में भी कोई कमी नहीं रख रहे हैं। ऐसे में अब निगम के साथ ही पूरे शहर और प्रदेश में चर्चा होने लगी है कि आखिर महापौर, उनकी काउंसिल के साथ ही अन्य जनप्रतिनिधियों का टारगेट कौन सा अधिकारी है? दरअसल जब जुलाई 2022 में नई परिषद बनी और पुष्यमित्र भार्गव बने लगातार जनप्रतिनिधियों और निगम अधिकारियों के बीच तनाव की स्थिति रही। खासकर तत्कालीन निगमायुक्त प्रतिभा पाल और फिर आई हर्षिका सिंह के समय। अब शिवम वर्मा के आने के बाद स्थितियां ठीक हुई है लेकिन अब इसे नेताओं की ओर से अधिकारियों पर पलटवार के रूप में देखा जा रहा है कि अब मेरी बारी है। इसके चलते पूरी ब्यूरोक्रैसी में हलचल मची है।

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