Bhopal : आज हर तरफ चेस यानी शतरंज की बिसात की बातें चल रही हैं। हों भी क्यों ना... भारत ने 45वें चेस ओलिंपियाड में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए ओपन और विमेंस कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीते हैं। देश को इंडिविजुअल कैटेगरी में भी 4 गोल्ड मिले हैं। मेंस और विमेंस दोनों कैटेगरी में 2-2 प्लेयर्स ने पहला स्थान हासिल किया है। विजेता खिलाड़ियों के साथ विश्वनाथन आनंद की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है।
भारतीय शतरंज का इतिहास अक्सर महान विश्वनाथन आनंद के नाम से ही जोड़कर देखा जाता है। जाहिर सी बात है, आनंद भारत के पहले ग्रैंडमास्टर हैं, पर आपको जानकर हैरानी होगी कि शतरंज में भारत की सफलता आनंद की प्रसिद्धि से पहले की है।
वास्तव में, आनंद से बहुत पहले मोहम्मद रफीक खान ने भारतीय शतरंज के लिए बड़ी उपलब्धि हासिल की थी। उन्होंने वर्ष 1980 के ओलंपियाड में शतरंज में भारत को पहला पदक दिलाकर इतिहास रच दिया था, तब आनंद की उम्र 11 साल थी। भोपाल के रहने वाले मोहम्मद रफीक खान ने Chess Olympiad में सिल्वर मेडल जीता था।
जिंदगी का हिस्सा बन गया शौक
मोहम्मद रफीक का जीवन संघर्षों से भरा रहा। भोपाल में बढ़ई (कारपेंटर) का काम करते हुए उन्होंने शतरंज की बिसात पर कदम रखा। घरों और दुकानों में बढ़ईगीरी करते हुए रफीक ने चेस की दुनिया में रुचि ली। उस समय चेस उनकी जिंदगी का एक शौक भर था। फिर धीरे-धीरे यह उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया।
रफीक ने बिना किसी औपचारिक ट्रेनिंग के चेस खेलना सीखा। कारपेंटरी करते हुए शतरंज का यह जुनून उनके जीवन का हिस्सा बनता गया। धीरे-धीरे वे इसमें इतने डूब गए कि चेस के लिए उन्होंने बढ़ई के काम को भी पीछे छोड़ दिया।
1980 का शतरंज ओलंपियाड
मोहम्मद रफीक ने 1980 में माल्टा में आयोजित Chess Olympiad में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था। यह ओलंपियाड भारतीय शतरंज के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ, क्योंकि यह पहला मौका था, जब किसी भारतीय खिलाड़ी ने इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में पदक हासिल किया।
उनकी इस जीत के पीछे कड़ी मेहनत और शतरंज के प्रति उनका समर्पण था। ओलंपियाड में रफीक ने न केवल भारत का प्रतिनिधित्व किया, बल्कि जाने-माने Belgian चेस खिलाड़ी अल्बेरिक ओ'केली डी गॉलवे को उनकी खुद की ओ'केली सिसिलियन टेक्निक से दो बार मात देकर पूरी दुनिया को चौंका दिया था।
चेस के उस्ताद के नाम से मशहूर
मोहम्मद रफीक का नाम भारतीय चेस की सबसे महान प्रतिभाओं में से एक माना जाता है, खासकर 1970 और 1980 के दशक में। हालांकि, उन्होंने International Master या Grandmaster का खिताब कभी हासिल नहीं किया, लेकिन उनके खेल का स्तर और उनकी प्रतिभा किसी भी ग्रैंडमास्टर से कम नहीं थी। मध्यप्रदेश में रफीक को 'चेस के उस्ताद' के नाम से जाना जाता था।
पटिया और आज की तकनीक
रफीक पटिया पर चेस खेलते थे। उनके खेल की समझ से लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। पटिया पर खेले जाने वाले शतरंज की शैली अंतरराष्ट्रीय संस्करण से थोड़ी अलग है। पटिया पर प्यादे एक बार में केवल एक वर्ग ही आगे बढ़ते हैं, जबकि आधुनिक नियम के अनुसार प्यादे दो वर्ग आगे बढ़ सकते हैं। हालांकि यह विसंगति रफीक की सफलता में बाधा नहीं बनी। आपको बता दें कि 12 जुलाई 1946 को जन्मे मो.रफीक खान ने 18 जुलाई 2019 को अंतिम सांस ली।
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