BHOPAL : लोकलुभावन लाड़ली बहना योजना अब मध्य प्रदेश के हजारों जरूरतमंदों का मानो हक मार रही है। सरकार इस योजना पर अपना खजाना लुटा रही है। इसके चलते दूसरी योजनाओं को चलाने पर्याप्त बजट नहीं मिल पा रहा। हालत ये है कि कई योजनाएं तो बंद होने की कगार पर पहुंच गई हैं।
सबसे ज्यादा चिंता वृद्ध, दिव्यांग, किसान, कल्याणी पेंशन, स्पॉन्सरशिप स्कीम की है, जो प्रदेश के 50 लाख से ज्यादा लोगों के भरण पोषण का इंतजाम करती हैं। लाड़ली बहना योजना पर मोहन सरकार हर महीने 11 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर रही। इसके चलते दूसरी योजनाओं को सौतेला व्यवहार झेलना पड़ रहा है। सरकार ने बजट की बाधा के चलते करीब 1 लाख 17 हजार पेंशनधारियों को मिलने वाली आर्थिक मदद रोक दी थी। हालांकि सरकार इसकी वजह पुर्नसत्यापन बताकर पल्ला झाड़ रही है, लेकिन सरकार की माली हालत और बार—बार कर्ज लेने की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।
लुभावनी योजना में ही उलझी सरकार
पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने लाड़ली बहना योजना की घोषणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले की थी। चुनाव में अप्रत्याशित सीटें जीतने की वजह से भाजपा सरकार का पूरा फोकस लाड़ली बहना के वोटों पर है और इसी वजह से सीएम डॉ.मोहन यादव भी योजना को जारी रखने का भरोसा दिला चुके हैं। हर महीने प्रदेश की सवा करोड़ महिलाओं के खाते में सरकार 1250 रुपए दे रही है।
अनाथ बच्चे, वृद्ध-दिव्यांग पेंशन को मोहताज
सरकार लुभावनी योजना के मोहपाश में इस कदर उलझी हुई है कि जरूरतमंदों की सुध भूल बैठी है। लाड़ली बहना योजना का लाभ तो सामान्य महिलाओं को मिल रहा है, लेकिन इसकी वजह से जिन योजनाओं के हितग्राही प्रभावित हैं, वे वास्तव में मदद के हकदार हैं। प्रदेश भर में अभावग्रस्त और जरूरतमंदों को सरकार की पेंशन योजनाओं का लाभ चार से लेकर छह माह से नहीं मिल रहा है।
किसी जिले में वृद्धजनों को छह महीने से पेंशन नहीं मिली है तो किसी जिले से दिव्यांगजनों की शिकायतें आ रही हैं। बुरहानपुर जिले के सवा दो सौ अनाथ बच्चे स्पॉन्सरशिप स्कीम की मदद से 8 महीने से वंचित हैं। इन बच्चों के माता-पिता दोनों ही नहीं हैं। किसी को रिश्तेदार तो किसी को दूसरी संस्थाओं में रखा गया है। इनके पालन पोषण के लिए स्कीम के तहत चार हजार रुपए हर महीने दिए जाते हैं, लेकिन बजट की कमी के चलते ये आर्थिक मदद रोक दी गई है।
किसानों को मुआवजा देने तक बजट नहीं
प्रदेश भर में हजारों किसान मुआवजा राशि के लिए भटक रहे हैं। ये वे किसान हैं, जिनकी जमीन सिंचाई योजनाओं के डूब क्षेत्र में आने के कारण अधिग्रहण में जा चुकी है। कोई किसान डेढ़ साल से तो कोई दस महीने से सिंचाई और राजस्व विभाग के दफ्तरों के चक्कर काट रहा है।
कलेक्टर कार्यालयों में भी ऐसे आवेदनों के ढेर लग गए हैं, लेकिन किसानों को मुआवजा राशि नहीं मिल रही है।उनके खेत पहले ही जा चुके और और अब दूसरी जमीन वे खरीद नहीं पा रहे। इन किसानों की हालत मजदूरों जैसी हो गई है। ऐसे किसान सागर, विदिशा, छतरपुर, छिंदवाड़ा, बड़वानी, सीहोर जिलों में महीनों से अपने हक मांगने भटक रहे हैं।
1. सुधा पाठक, निराश्रित वृद्ध महिला, शुक्रवारी सागर
बेटे विष्णु की आकस्मिक मौत पर संबल योजना के तहत सहायता राशि मिलनी थी। अगस्त 2023 से नगर निगम, तहसील और कलेक्ट्रेट के चक्कर काट रही हैं। अधिकारी सहायता राशि मिलने का आश्वासन देकर टाल देते हैं। कभी चुनाव की आचार संहिता तो कभी बजट का कहकर लौटा दिया जाता है। एक साल से मजबूर वृद्धा अफसरों के दफ्तरों के चक्कर काट रही है।
2. वसीम खान, रहवासी एवं पार्षद पति, सागर
लाड़ली बहना योजना में हितग्राही सूची में शामिल 30 फीसदी महिलाओं को राशि नहीं मिल रही है। 60 साल से ज्यादा उम्र होने पर महिलाओं को सूची से बाहर किया जा रहा है। परिवार के मुखिया की मौत के बाद भी संबल योजना की राहत राशि परिजनों को नहीं मिल रही है। अधिकारी हितग्राहियों को आश्वासन देकर टाल देते हैं। विधवा पेंशन, दिव्यांग पेंशन, कल्याणी योजना जैसी सरकार की दूसरी योजनाओं में किसी को राशि नहीं मिल रही। केवल लाड़ली बहना योजना की हितग्राहियों को ही रुपया मिल रहा है। दूसरी योजनाओं के हितग्राहियों की सुध कौन लेगा।
3. बैजनाथ अहिरवार, ग्रामीण सेवारा सेवारी, टीकमगढ़
एक साल से ज्यादा हो गया जनपद से लेकर कलेक्ट्रेट तक चक्कर काट रहे हैं। हर घर शौचालय योजना के तहत उधारी लेकर शौचालय बनाया था, अब लोग कर्ज वसूलने घर आ रहे हैं। 10 परसेंट ब्याज पर रुपए उधार लिए थे। 12 हजार रुपए सरकार का अनुदान मिलना था लेकिन अब कोई सुन ही नहीं रहा। ग्राम पंचायत से जिला पंचायत तक हर कोई रुपए न होने का कह देता है। क्या करें, परेशान हैं।
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