BHOPAL. राजधानी भोपाल के बगरौदा इंडस्ट्रियल एरिया में नशे की फैक्ट्री पर गुजरात एटीएस और एनसीबी की छापामार कार्रवाई से अब तक खलबली मची हुई है। नशे की फैक्ट्री के तार मुंबई और प्रदेश की राजनीति से भी जुड़े हुए हैं। फैक्ट्री में छह माह से सबसे महंगा नशा एमडी यानी मेफेड्रोन तैयार हो रहा था। यह वहीं नशा है जिसका उपयोग मुंबई-गोवा और महानगरों की रेव पार्टियों में होता है। इसे हाइप्रोफाइल लोगों का नशा भी कहा जाता है। नशे के सौदागरों द्वारा फैक्ट्री में तैयार इस नशीले पदार्थ की खेप मुंबई, इंदौर और दूसरे महानगरों में भेजने का अनुमान अधिकारी लगा रहे हैं।
राजधानी भोपाल में प्रशासन, पुलिस और इंटेलीजेंस एजेंसियों की नाक के नीचे 1800 करोड़ से ज्यादा का ड्रग्स बरामद होना कई सवाल खड़े करता है। कैसे राजधानी में यह कारोबार चलता रहा और किसी को खबर तक नहीं हुई। गुजरात पुलिस ने इस का भंडाफोड़ किया। मुद्दा इसलिए और भी गंभीर हो जाता है कि इससे पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह मध्य प्रदेश में अवैध कट्टों और ड्रग्स के मामलों पर लगाम लगाने की बात करते रहे हैं। आइए समझते हैं, इस सामूहिक फैलियर के पीछे कौन- कौन हैं जिम्मेदार…
बॉलीवुड स्टार और रेव पार्टियों का नशा है एमडी
औद्योगिक क्षेत्र बगरौदा में नशे की फैक्ट्री में तैयार होने वाला नशा एमडी बहुत महंगा है। इसका नशा बॉलीवुड स्टार से लेकर रेव पार्टियों में होता है। साल 2021 में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने एक पार्टी से बालीवुड स्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन और उनके साथियों को नशे के साथ हिरासत में लिया था। तब भी एमडी यानी मेफेड्रोन का नशा कई दिनों तक चर्चा में बना रहा था। मुंबई और गोवा में अकसर इस नशे की पकड़_धकड़ की कार्रवाई सामने आती रहती है। राजधानी भोपाल के पास एमडी की पूरी फैक्ट्री और 1814 करोड़ का माल बरामद करने की कार्रवाई संभवतया देश की सबसे बड़ी कार्रवाई है।
अधिकारियों का मानना है कि मुंबई और गोवा सहित महानगरों में एमडी की काफी डिमांड होती है। इस वजह से पुलिस, नारकोटिक्स और इंटेलीजेंस की नजर उन पर बनी रहती है। इसी से बचने आरोपी भोपाल के पास इंडस्ट्रियल एरिया में किराए की फैक्ट्री में एमडी ड्रग तैयार कर रहे थे। इस नेटवर्क में साल 2022 में मुंबई में एमडी ड्रग की तस्करी का आरोपी भी शामिल है।
आसपास की फैक्ट्री को था संदेह
बगरौदा में छह माह से किराए पर ली गई फैक्ट्री में नशीला पदार्थ मेफेड्रोन तैयार हो रहा था लेकिन स्थानीय पुलिस अधिकारी, औद्योगिक क्षेत्र के अफसर और इंटेलिजेंस को इसकी भनक तक नहीं लगी। द सूत्र ने मौके पर पहुंचकर बात की तो फैक्ट्रियों में काम कर रहे लोगों का कहना था कि फैक्ट्री में होने वाली गतिविधि पर उन्हें शंका तो होती थी लेकिन वे गेट बंद रहने के कारण अंदर नहीं देख सकते थे। वहीं उद्योग विभाग और पुलिस अफसरों के जांच के लिए पहुंचने के सवाल पर वे चुप्पी साध गए। अधिकारियों के नियमित निरीक्षण के सवाल पर भी वे जवाब नहीं दे सके। हांलाकि गुजरात एटीएस और एनसीबी की कार्रवाई ने पोल खोल दी है कि उद्योग विभाग, श्रम विभाग और दूसरे जिम्मेदार अफसरों के अलावा पुलिस वहां कैसी निगरानी कर रही थी। स्थानीय लोगों ने बताया फैक्ट्री छह माह पहले किराए पर लेकर यहां कीटनाशक बनाने की खबर उन्हें थी। लेकिन इतने महीनों में वहां न तो कीटनाशक बनाने में उपयोग होने वाले कैमिकल का कोई वाहन आता दिखा न यहां बनने वाले प्रोडक्ट की सप्लाई की खबर उन्हें लगी।
नशीली गंध के कारण खड़ा रहना मुश्किल
एमडी यानी मेफेड्रोन बनाने वाली अवैध फैक्ट्री के कैंपस से अब भी नशीली गंध उठ रही है। इसके आसपास कुछ देर खड़े रहने पर सिर चकराने लगता है। फैक्ट्री पर पुलिस का पहरा है और एनसीबी के अफसर अभी भी यहां जमे हुए हैं। फैक्ट्री कैंपस में पिछले हिस्से में बने गार्ड रूम के बाहर दर्जन भर खाली बोतल बिखरी पड़ी हैं जिनसे नशीली गंध उठ रही है। बताया जाता है इन बोतलों में ही वह कैमिकल लाया जाता था जिससे एमडी बनता था। ये बोतल और उनकी पैकिंग के बॉक्स काफी खास हैं। यहां बोतलों के अलावा एक कैमिकल बॉक्स और एक बड़ा ड्रम भी मिला है। वहीं फैक्ट्री के पिछले हिस्से में एक पाइप से निकलने वाला गाढ़ा तरल भी जमा है। एमडी ड्रग की प्रोसेसिंग के बाद यह अपशिष्ट के रूप में निकलता था लेकिन उसे कैंपस से बाहर नहीं जाने देते थे। लोग यह भी बताते हैं कि यहां दो चौकीदार सहित तीन लोग दिन_रात रहते थे। वे कभी_ कभार ही बाहर दिखते थे लेकिन दूसरे कारखानों के लोगों से बात नहीं करते थे। कीटनाशक फैक्ट्री में काम करने वाले तीनों के लिए खाने का सामान और शराब की बोतलें भी फैक्ट्री में ही पहुंचाई जाती थीं।
ये विभाग जिम्मेदार
- उद्योग विभाग
- जीएसटी डिपार्टमेंट
- पुलिस महकमा
- इंटेलीजेंस यूनिट
- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो
- पर्यावरण विभाग
- श्रम विभाग
पूरे कुएं में घुली भांग, किसको सौंपें जिम्मेदारी
इस मामले में सबसे चिंता की बात यह है कि एक भी सरकारी विभाग के अधिकारी- कर्मचारियों ने अपनी ड्यूटी ठीक से नहीं निभाई।अगर लेबर डिपार्टमेंट से लेकर इंटेलीजेंस एजेंसियों तक कोई भी एक विभाग अपना काम सही से करता तो ड्रग्स का इतना बड़ा कारोबार राजधानी में पनपना संभव ही नहीं था। इस मामले में प्रदेश के किस-किस विभाग की लापरवाही सामने आई है आइए आपको बताते हैं।
श्रम विभाग : लेबर (श्रम) विभाग का मुख्य काम श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें बेहतर कार्य परिस्थितियां उपलब्ध कराना होता है। कार्यस्थल की सुरक्षा और स्वास्थ्य मानकों का पालन सुनिश्चित करना और खतरनाक कार्यस्थलों पर सुरक्षा उपायों की निगरानी और निरीक्षण करना इसी विभाग की जिम्मेदारी होती है। कैमिकल बनाने की फैक्टरी तो सबसे संवेदनशील जगह है, जिसकी लगातार मॉनिटरिंग होना चाहिए। क्या लेबर डिपार्टमेंट ने ऐसा किया?
उद्योग विभाग : इंडस्ट्री (उद्योग) विभाग का काम केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देना ही नहीं होता है। औद्योगिक सुरक्षा और पर्यावरण मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न निरीक्षण करना भी इस विभाग की बड़ी जिम्मेदारी होती है। छह माह से बंद एक फैक्टरी में अचानक से एक फैक्टरी खुलती है, क्या इसकी परमीशन विभाग से ली गई थी? अगर नहीं तो फिर छह माह से क्या विभाग के अफसर सो रहे थे? सूत्र बताते हैं कि 2020 में आखिरी बार इस फैक्टरी का सर्वे किया गया था। इसके बाद से किसी को फुरसत ही नहीं मिली।
इंटेलीजेंस यूनिट : इस घटनाक्रम में सबसे बड़ा फेल्योर इंटेलीजेंस का रहा। स्थिति ये है कि मध्यप्रदेश में एडीजी इंटेलीजेंस का पद ही हफ्ते भर से खाली है। इसके बाद दो आईजी, एसपी और हर जिले में डीएसपी तैनात होते हैं, लेकिन कहीं से कोई इनपुट नहीं मिला।
जीएसटी विभाग : जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) विभाग का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए जाने वाले कर को एकीकृत करना, उसका संग्रह करना, और उसके नियमों का पालन सुनिश्चित करना है। इसी के साथ मौके पर जाकर भी संबंधित बिजनेस की वस्तुस्थिति को जानना इसी विभाग की जिम्मेदारी होती है। एक फैक्टरी 2020 से बंद पड़ी है। वहां नई फैक्टरी भी शुरू हो गई, मगर विभाग ने मौके पर जाकर क्या देखा?
मध्य प्रदेश पुलिस : मध्य प्रदेश पुलिस का तो मुख्यालय तो भोपाल में ही है। यहां तो विभाग के डीजी से लेकर सारे बड़े अफसर यहीं बैठते हैं। जाहिर है बगरोदा औद्योगिक क्षेत्र के लिए भी अलग से पुलिस तैनात है। और पुलिस का अपना नेटवर्क भी होता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल पुलिस के फेल्योर का ही है।
संदेह के घेरे में एमपी का पूरा सिस्टम
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी NCB और ATS गुजरात ने मिलकर इस सर्जिकल ऑपरेशन को अंजाम दिया है। प्रोटोकॉल के अर्न्तगत इन्हें अपने ऑपरेशन की जानकारी मध्य प्रदेश सरकार और भोपाल पुलिस को देनी चाहिए थी, परंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया। आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि भारत में इस प्रकार के सर्जिकल ऑपरेशन तब किए जाते हैं जब दूसरे राज्य की पुलिस के बारे में पूरा विश्वास और एविडेंस होते हैं कि लोकल पुलिस अपराधियों से मिली हुई है। और यह भी कि यदि लोकल पुलिस को इन्फॉर्म किया गया तो अपराधी को पकड़ना मुश्किल हो जाएगा। इस रेड के बारे में पुलिस अधिकारियों ने बताया कि गोपनीय सूचना के आधार पर फैक्ट्री पर छापा मारा गया था। भोपाल निवासी अमित चतुर्वेदी और सान्याल बाने के खिलाफ मादक पदार्थ मेफेड्रोन (MD) का अवैध निर्माण और बिक्री की जानकारी मिली थी। इस जानकारी पर ही संयुक्त रूप से कार्रवाई की गई।
रिकॉर्ड में बंद फैक्ट्री, अंदर बनता रहा नशा
एंटी टेरीरिस्ट स्क्वाड गुजरात और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की संयुक्त कार्रवाई ने भोपाल पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। साथ ही यह सर्जिकल ऑपरेशन करके एमपी इंटेलिजेंस और भोपाल पुलिस दोनों को एक्सपोज कर दिया है। मध्य प्रदेश सरकार के खुफिया तंत्र और भोपाल पुलिस की प्रतिष्ठा पर यह घटना दाग लगाने वाली साबित हुई है। एटीएस गुजरात ने भोपाल में एक ऐसी सरकारी सहायता प्राप्त फैक्ट्री को पकड़ा है जो सरकारी रिकॉर्ड में सालों से बंद है। साथ ही इस फैक्ट्री के बंद दरवाजे के अंदर घातक और प्रतिबंधित नशीली MD ड्रग्स का उत्पादन भी हो रहा था।
नोटिस देकर फैक्ट्री मालिक से मांगा जवाब
गुजरात एटीएस डीएसपी एसएल चौधरी ने बताया कि गुजरात एटीएस ने भोपाल से अब तक की सबसे बड़ी एमडी ड्रग्स बनाने वाली फैक्ट्री पकड़ी है। पुलिस टीम कैसे इस फैक्ट्री तक पहुंची, इसकी दिलचस्प कहानी खुद एटीएस के अधिकारियों ने बताई। उनका कहना है कि महाराष्ट्र के एक किलो एमडी ड्रग्स केस में 2022 में जमानत पर छूटे आरोपी सान्याल बाने पर छह महीनों से नजर रख रहे थे। वह लगातार भोपाल-इंदौर और उज्जैन के बीच आ-जा रहा था। भोपाल के पास इंडस्ट्रियल इलाके में उसकी गतिविधियां बढ़ी तो टीम ने नजर रखना शुरू किया। तब यह पता लगा कि इलाके में एक फैक्ट्री का वेंटिलेशन ग्राउंड लेवल से लगा है।
सामान्यतः ऐसा केमिकल वाली फैक्ट्री में ही होता है। क्योंकि, अन्य फैक्ट्रियों में धुएं के निकास के लिए चिमनी या वेंटिलेशन छत पर होता है। इससे जांच टीम का शक बढ़ा। हमारी 17 पुलिसकर्मियों की टीम जांच के लिए एक महीने तक भोपाल में रुकी। इस दौरान अहमदाबाद एटीएस ऑफिस से सर्विलांस किया जा रहा था। इस तरह तीन मोर्चों पर जांच कर हम देश की सबसे बड़ी ड्रग्स प्रोसेसिंग फैक्ट्री तक पहुंच सके।
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