BHOPAL. जनता की भलाई के लिए सिर्फ नेक नीयत ही काफी नहीं होती, उसे धरातल पर उतारकर राहत देना भी होता है। सरकारें नियम कायदे तो बना देती हैं, लेकिन वे जमीन पर कितने प्रभावी ढंग से उतर पाते हैं, यह सब जानते हैं। अब हम इस खबर में आपको दो ऐसे मामले बताने जा रहे हैं, जिनमें नेतानगरी की हीलाहवाली से जनता के काम प्रभावित हो रहे हैं।
पहला: मंत्री अपने प्रभार के जिलों में रात बिताएंगे
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (CM mohan yadav) ने कैबिनेट बैठक में सभी मंत्रियों से यह कहा था कि वे अपने प्रभार के जिले में रात बिताएंगे। सीएम के इस फरमान का असर मानो जीरो ही रहा। जानकारी के मुताबिक, एक दो मंत्रियों को छोड़कर किसी ने जिले में रात नहीं बिताई।
दूसरा: प्रभारी मंत्रियों को जिले देने में ध्यान नहीं रखा
सरकार ने लंबे इंतजार के बाद 15 अगस्त से पहले प्रभारी मंत्री बनाए थे, लेकिन इनमें से ज्यादातर मंत्रियों ने अब तक अपने प्रभार के जिलों में एक सिर्फ एक या दो बार दौरा किया है। इसका नतीजा यह है कि जिलों में काम अटक रहे हैं।
'द सूत्र' ने जब इसकी पड़ताल की तो दो बड़ी वजह निकलकर सामने आईं। क्या है कि सूबे के कुछ मंत्री ओवरलोड हैं। मतलब, उनके पास विभागीय कामकाज के साथ जिलों का प्रभार और संगठन की भी जिम्मेदारी है। चलिए इसे उदाहरण से समझाते हैं...।
1. कैलाश विजयवर्गीय नगरीय विकास एवं आवास तथा संसदीय कार्य मंत्री हैं। उन्हें धार और सतना जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया है। उन पर महाराष्ट्र चुनाव का भी जिम्मा है। विजयवर्गीय को नागपुर सिटी और नागपुर ग्रामीण जिले की जिम्मेदारी दी गई है। इन जिलों में 12 विधानसभा सीटें आती हैं।
स्थिति: अब उनकी अपनी मजबूरी है। इतनी जिम्मेदारियों के बीच अपने प्रभार के जिलों में समय कैसे दे पाएंगे? इसे दूसरे नजरिए से देखें तो विजयवर्गीय का गृह जिला इंदौर है। उन्हें इंदौर से 707 किलोमीटर दूर सतना और 62 किलोमीटर दूर धार जिले का प्रभार दिया गया है। वे अभी तक सिर्फ एक बार सतना गए हैं।
2. प्रहलाद पटेल मोहन सरकार में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री हैं। वे भिण्ड और रीवा जिले के प्रभारी मंत्री हैं। इसी के साथ उन पर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वर्धा और अमरावती जिले की जिम्मेदारी है। इसमें वर्धा में चार और अमरावती जिले में आठ विधानसभा सीटें आती हैं।
स्थिति: प्रहलाद पटेल का गृह जिला नरसिंहपुर है। उन्हें नरसिंहपुर से 525 किलोमीटर दूर भिण्ड और 318 दूर रीवा जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया है।
3. विश्वास सारंग मध्य प्रदेश सरकार में सहकारिता और खेल एवं युवा कल्याण मंत्री हैं। वे खरगोन और हरदा जिले के प्रभारी मंत्री हैं। इसी के साथ बीजेपी ने उन्हें महाराष्ट्र के अकोला और बुलढाणा जिले की सीटों का काम भी सौंपा है। अकोला जिले में पांच और बुलढाणा जिले 7 विधानसभा सीटें आती हैं।
स्थिति: सारंग का गृह जिला भोपाल है। उन्हें 318 किलोमीटर दूर खरगोन और 147 किलोमीटर दूर हरदा जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया है।
4. इसी फेहरिस्त में उर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर हैं। वे ग्वालियर से आते हैं, लेकिन सरकार ने उन्हें 666 किलोमीटर दूर पांर्ढुना और पास ग्वालियर के पास के जिले शिवपुरी का जिम्मा दिया गया है।
यह है परिणाम
ये तो हुई कुछ मंत्रियों की व्यवहारिक परेशानी की बात। ज्यादातर मंत्रियों के साथ ऐसा ही है। मंत्रियों के गृह जिले से उन्हें दूर के जिले का प्रभार दिया गया है। इसी का नतीजा है कि मंत्री न तो जिलों में रात बिताने में रुचि ले रहे हैं और न ही नियमित रूप से अपने प्रभार के जिले के काम निपटा पा रहे हैं।
क्या काम अटक रहे
चलिए अब आपको बता दें कि मंत्रियों के नियमित रूप से प्रभार के जिलों में न पहुंचने के कारण क्या-क्या काम प्रभावित हो रहे हैं। इसमें अव्वल तो जिला योजना समिति की बैठक नियमित रूप से नहीं हो पा रही है और इससे आम जन मानस के साथ- साथ विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं। इसी के साथ मान लीजिए पांर्ढुना के किसी सरकारी कर्मचारी को किसी विशेष परिस्थिति में प्रभारी मंत्री से कोई काम आन पड़ा है तो उसे या तो मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर से मिलने या तो ग्वालियर जाना होगा या वे वहां नहीं मिले तो भोपाल आना होगा। दोनों जगह नहीं मिले तो उस कर्मचारी का समय और पैसा दोनों बर्बाद होंगे।
क्या करती है जिला योजना समिति
जिला योजना समिति यानी District Planning Committee की बैठक नहीं होने से आम जनता के कई महत्वपूर्ण काम और विकास योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। इस कमेटी का उद्देश्य जिला स्तर पर समग्र विकास की योजनाएं बनाना और उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करना होता है। नियमित बैठक न होने से सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सुविधाओं के प्रोजेक्ट्स को मंजूरी नहीं मिलती। प्रोजेक्ट्स के लिए निर्धारित धनराशि नहीं मिल पाती। नई औद्योगिक और कृषि परियोजनाओं की योजनाएं ठप हो जाती हैं, इससे रोजगार के अवसरों पर असर पड़ता है। केंद्र और राज्य सरकार की कई योजनाएं, जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत अभियान या अन्य योजनाएं कमेटी की ओर से अनुमोदित नहीं होने से रुकी रहती हैं। जनता की समस्याएं जैसे स्थानीय बुनियादी ढांचे की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की जरूरत, समय पर हल नहीं हो पातीं।
क्या सरकार करेगी यह कवायद
सूत्रों के अनुसार, इन सब परेशानियों और जनता के काम अटकने को लेकर प्रदेश के आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों के प्रभार वाले जिलों में बदलाव होने की संभावना जताई जा रही है। आगामी महीने में बदलाव हो सकता है, इसमें जिन मंत्रियों के पास एक से ज्यादा बड़े डिपार्टमेंट हैं, उन्हें छोटे जिले दिए जाएंगे। इसके अलावा मंत्रियों के गृह क्षेत्र से उनके प्रभार की दूरी को भी देखा जाएगा। इससे मंत्रियों को उनके गृह जिले और प्रभार वाले जिलों के बीच की दूरी कम हो जाएगी।
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