BHOPAL. मध्य प्रदेश में आउटसोर्स एजेंसी से अनुबंध की व्यवस्था भी नगरीय निकायों में भ्रष्टाचार का जरिया बन गई है। निकायों में अफसर-जनप्रतिनिधि और आउटसोर्स एजेंसियां साठगांठ कर कर्मचारियों के भुगतान के नाम पर लाखों का फर्जीवाड़ा कर रहे हैं। यानी अब निकायों में आउटसोर्स के जरिए धांधली को अंजाम देने नेता, अफसर और कंपनियों ने सिंडीकेट बना लिया है।
निकाय और आउटसोर्स एजेंसियों की मिलीभगत
नेताओं के इशारे पर किसी खास कंपनी को काम दिया जाता है, फिर कंपनी और निकाय के अधिकारियों के सहारे कम कर्मचारियों को काम पर रखकर दोगुनी संख्या बताकर लाखों रुपए डकार लिए जाते हैं। इस भ्रष्टाचार की खबर अफसरों को भी है लेकिन मुनाफे के कारण शिकायतें फाइलों में ही दबी रह जाती हैं। बीते सालों में नगरीय निकाय और आउटसोर्स एजेंसियों की मिलीभगत के कई मामले सामने आए हैं, लेकिन किसी में ठोस कार्रवाई हुई हो ऐसी कोई नजीर नहीं है।
यानी निकाय को चलाने वाली व्यवस्था ने दूसरे कामों की तरह आउटसोर्स एजेंसियों को अपना साथी बना लिया है। निकायकर्मियों के इशारे पर एजेंसियां फर्जी बिल लगाती हैं। इससे अफसरों को भी फर्जीवाड़े से हुए मुनाफे का बड़ा हिस्सा मिलता है। साफ_साफ समझें तो नियमों को ताक पर रखकर नगरीय निकाय और कंपनी सरकार को ही चूना लगा रहे हैं।
सागर की मकरोनिया नगर पालिका का मामला
ताजा मामला सागर की मकरोनिया नगर पालिका से जुड़ा है। मामला इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि यहां एक जनप्रतिनिधि के इशारे पर सीएमओ ने निकाय की संवैधानिक व्यवस्था ही हिला दी। सीएमओ साब आउटसोर्स कंपनी पर इतने मेहरबान थे कि नगर पालिका की आमसभा में बहुमत से पारित प्रस्ताव को भी पलट दिया। परिषद के विरोध के बाद भी सीएमओ पवन शर्मा उसे हर महीने 45 लाख का भुगतान करते रहे। यानी वरिष्ठ जनप्रतिनिधि के इशारे पर सीएमओ द्वारा 6 माह में करीब ढाई करोड़ रुपए का भुगतान किया गया। जबकि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर था। अब इस मामले में शिकायत नगरीय प्रशासन विभाग के संयुक्त संचालक कार्यालय तक पहुंच गई है। जिस पर फाइल बुलाकर जांच भी शुरू कर दी गई है।
आउटसोर्स एजेंसी की आड़ में किया गड़बड़झाला
साल 2023 में मकरोनिया नगर पालिका परिषद द्वारा मेनपावर उपलब्ध कराने के लिए नगरीय विकास एवं आवास विभाग को पत्र लिखा गया था। इसके बाद विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन सीएमओ रीता कैलासिया ने टेंडर के बिना ही सेडमैप को मैनपावर उपलब्ध कराने काम दे दिया। इस अनुबंध के कुछ दिन बाद ही एक मामले में बड़ी गड़बड़ी के चलते सीएमओ कैलासिया निलंबित हो गई। उनकी जगह ईशांक धाकड़ को सीएमओ के रूप में पदस्थ किया गया। जब आउटसोर्स एजेंसी का भुगतान की बारी आई तो धाकड़ ने नियम विरुद्ध अनुबंध की वजह से हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने इसके लिए नगरीय प्रशासन विभाग को पत्राचार भी किया। विधानसभा चुनाव की आचार संहिता खत्म होने के बाद परिषद की बैठक में सेडमैप से अनुबंध खत्म करने का निर्णय हुआ। जिसके बाद नए सिरे से टेंडर जारी किए गए। इस बीच नए सीएमओ के रूप में पवन शर्मा ने कार्यभार संभाल लिया और टेंडर खोले ही नहीं गए।
नगर पालिका को लगा 2 करोड़ का चूना
पार्षद सीमा चौधरी का कहना है परिषद के विरोध के बावजूद सीएमओ हर महीने लाखों रुपए का भुगतान करते रहे। पहले दो एजेंसियों नगर पालिका को 300 कर्मचारी उपलब्ध कराती थीं। जिसके लिए करीब 25 से 30 लाख रुपए का भुगतान होता था। सेडमैप से अनुबंध के बाद अब हर माह 40 से 45 लाख रुपए का भुगतान हो रहा है। इसमें सर्विस टैक्स के 5 प्रतिशत यानी 2 से ढाई लाख रुपए भी नगर पालिका चुका रही है। यानी निकाय क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या तो बीते साल के बराबर ही है लेकिन कंपनी को भुगतान हर महीने 15 लाख रुपए तक बढ़ गया है। यानी बीते 10-12 महीनों में तत्कालीन सीएमओ कैलासिया और स्थानीय जनप्रतिनिधि की साठगांठ के कारण नगर पालिका परिषद को करीब दो करोड़ का चूना लग चुका है।
मैनपॉवर एजेंसी ने कटनी में की लाखों की हेराफेरी
प्रदेश में शायद ही कोई नगरीय निकाय बचा हो जहां आउटसोर्स एजेंसी की आड़ में बंटरबाट का खेल न चल रहा हो। कटनी नगर निगम में भी बीते सालों से अब तक करोड़ों का गोलमाल हो चुका है। शिकायतें सामने आती हैं लेकिन राजनीतिक रसूख के जरिए उन्हें दबा दिया जाता है। जनप्रतिनिधि, अफसर और आउटसोर्स एजेंसी का गठजोड़ हर महीने लाखों का चूना नगर निगम को लगा रहा है। कुछ महीने पहले कटनी नगर निगम में आउटसोर्स एजेंसी की हेराफेरी की शिकायत के बाद जमकर हंगामा हुआ था। तब मौके पर कराए गए सत्यापन में सैकड़ा भर से ज्यादा ऐसे कर्मचारी सामने आए थे जो वास्तव में कंपनी के लिए काम ही नहीं कर रहे थे और हर महीने उनके नाम पर वेतन निकाला जा रहा था। यानी हर महीने लाखों रुपए जिन कर्मचारियों को भुगतान किया जा रहा था वे थे ही नहीं।
भोपाल पहुंची थी शिकायत, क्या जांच हुई सामने नहीं आया
नगर निगम के वैरिफिकेशन के मुताबिक 23 अगस्त तक स्वास्थ्य विभाग में काम करने वाले 569 आउटसोर्स कर्मचारियों में से 292 ने ही वैरिफिकेशन कराया है। इसमें से 277 अब तक नहीं पहुंचे हैं। दूसरे विभागों में 217 कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिनमें से 211 का वैरिफिकेशन हुआ है, 6 आउटसोर्स कर्मचारियों का वैरिफिकेशन बाकी है। नगर निगम हर महीने इन आउटसोर्स कर्मचारियों को 70 से 80 लाख रुपए का भुगतान कर रही है। 286 कर्मचारियों को औसतन हर महीने कलेक्टर रेट पर 10 हजार रुपए प्रति महीने सैलरी दी जारी है। इसमें कुशल, अर्धकुशल और अकुशल श्रेणी के कर्मचारियों को ज्यादा भुगतान हो रहा है। मामले की शिकायत राजधानी स्थित पालिका भवन स्थित नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के अफसरों तक भी पहुंची थी। इस मामले में क्या जांच हुई और उसमें कौन जिम्मेदार पाया गया ये भी सामने नहीं आया है। कंपनी अब भी काम कर रही है, और विरोध दर्ज कराने वाले कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं।
ग्वालियर में आउटसोर्स के नाम पर फर्जीवाड़ा
नगरीय निकायों में कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिए सरकार द्वारा आउटसोर्स एजेंसियों से अनुबंध की व्यवस्था बनाई गई थी। लेकिन अब भ्रष्टाचारियों ने इसे भी अपनी कमाई का जरिया बना लिया है। ग्वालियर नगर निगम में दो साल से आउटसोर्स एजेंसी के सहारे निकाय में नौकरी देने का फर्जीवाड़ा सामने आ चुका है। यह मामला भी खूब गरमाया था लेकिन अब तक इसकी जांच चल रही है। दो साल बाद भी यह तय नहीं हो सका है कि फर्जीवाड़े का सरगना कौन था और लाखों रुपए कौन डकार गया।
धोखाधड़ी पर नगरीय प्रशासन विभाग की चुप्पी
आउटसोर्स एजेंसी को अनुबंध के बाद ग्वालियर नगर निगम को 1300 कर्मचारी हर माह उपलब्ध कराने थे। लेकिन निकाय और कंपनी के अधिकारियों ने इसमें भी फर्जीवाड़ा कर डाला। आपसी साठगांठ के चलते सैकड़ों कर्मचारियों को नियुक्ति का भरोसा दिलाया गया और उनसे लाखों रुपए भी ऐंठे गए। इस मामले में आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा ग्वालियर ने शिकायत की जांच प्रारंभ कर दी है। वहीं आउटसोर्स कंपनी द्वारा कर्मचारियों के ईपीएफ अकाउंट में जमा होने वाली राशि में हेराफेरी भी उजागर हुई है लेकिन नगरीय प्रशासन विभाग लाखों रुपए की धोखाधड़ी पर भी चुप्पी साधे बैठा है।
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