News Strike :सागर ही नहीं सीधी में भी बीजेपी के दिग्गज आमने सामने इन जिलों में भी बढ़ी गुटबाजी !

मध्यप्रदेश बीजेपी में अब कांग्रेस की तरह गुटबाजी और आपसी टकराव बढ़ रहे हैं। बड़े नेता एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं, जिससे पार्टी की एकता पर सवाल उठ रहे हैं।

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Harish Divekar
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News Strike : मध्यप्रदेश में कांग्रेस पर अक्सर ये इल्जाम लगते रहे हैं कि पार्टी में गुटबाजी हावी है। नेताओं में आपसी कलह जारी है। लेकिन अब बीजेपी भी इसी ट्रेक पर चल पड़ी लगती है। बड़े नेताओं के आपसी टकराव के किस्से अब बीजेपी में आम हो चुके हैं। डिप्टी सीएम हों या फिर पूर्व विधानसभा स्पीकर या फिर कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे कद्दावर नेता, कलह का शिकार हर कोई है। जिलाध्यक्ष की नियुक्ति के समय पर तो ये तकरार कई बार सामने नजर आई। लेकिन उसके अलावा भी कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर बीजेपी के ही नेता अपने नेता को निशाना बना रहे हैं। 

कलह और गुटबाजी आ रही नजर

मध्यप्रदेश में बीजेपी की सत्ता को बीस साल से ज्यादा कम समय हो चुका है। विपक्ष यानी कि कांग्रेस अब तकरीबन ना के बराबर बची है और जितनी है उतने में भी आपसी कलह और गुटबाजी फूट फूट कर भरी नजर आती है। लेकिन अब सत्ता में बैठी बीजेपी क्या करे। विपक्ष के साथ वार पलटवार जैसे हालात तो कम ही बन पाते हैं। लेकिन पार्टी में अब आपसी कलह और तल्खियों का दौर बढ़ रहा है। अब हालात ये हैं कि पार्टी के दिग्गज ही दूसरों से टकरा रहे हैं। इतने सालों से सत्ता पर काबिज पार्टी में दिग्गजों गिनती भी खूब हो चुकी है। और, जब इन दिग्गजों की साख दांव पर लगती है तो एकदूसरे पर छिंटाकशी और बयानबाजी खूब होती है। मध्यप्रदेश के मालवा में बड़े नेताओं के बीच यही जंग है। बुंदेलखंड भी इससे अछूता नहीं है। ग्वालियर चंबल में भी हाल जुदा नहीं हैं और अब विंध्य भी इस फेहरिस्त में शामिल हो गया है। जहां दिग्गजों का आपसी टकराव सुर्खियां बटोर रहा है। कहीं असंतोष इसलिए है क्योंकि वरिष्ठ होने के बाद भी किसी नेता कोई पद नहीं मिला है। कहीं असंतोष, नाराजगी और कलह इसलिए है कि दिग्गज होने के बावजूद अपने फैसले नहीं मनवा पा रहे। जिसका असर समर्थकों पर भी पड़ रहा है। हाल ही में हुई जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में भी ये मनमुटाव और गुटबाजी साफ नजर आई। 

बीजेपी वर्सेज बीजेपी की राजनीति जारी

वैसे ऐसा कोई राजनीतिक दल शायद ही होगा जहां गुटबाजी न हो। लेकिन बीजेपी की खासियत अब तक ये थी कि इस पार्टी के आपसी मतभेद कभी खुलकर सामने नहीं आते थे। पर अब हालात अलग हैं। अब तो एक नेता दूसरे नेता पर खुलकर निशाना साध रहा है। बड़े नेताओं की आपसी खींचतान भी नजर आने लगी है। और, कभी किसी को मौका लगता है तो वो मच पर, माइक पर ही अपना गुस्सा जाहिर कर देता है। इस मामले में मालवा में क्या हुआ, ग्वालियर चंबल कैसे गुटबाजी की आग में जल रहे हैं। बुंदेलखंड में किस तरह अपने वर्चस्व की लड़ाई जारी है। विंध्य में भी ऐसे हालात बनने लगे हैं कि कई बार लगता है कि बीजेपी वर्सेज बीजेपी की राजनीति जारी है।

आपसी टकराव अब छुप नहीं रहा

देवतालाब से विधायक और पूर्व स्पीकर गिरीश गौतम और मऊगंज के विधायक प्रदीप पटेल का आपसी टकराव अब छुप नहीं रहा है। एक नाबालिग के अपहरण की शिकायत के बाद दोनों का मन मुटाव सतह पर आ चुका है। किडनैपिंग की इस घटना के बाद प्रदीप पटेल के दबाव में टीआई और एएसआई को सस्पेंड कर दिया। ये घटना देवतालाब विधानसभा सीट की थी। इसके बाद गिरीश गौतम ने ये तंज भी कसा कि लगता है कि अब पटेल के क्षेत्र में कोई समस्या नहीं रह गई है। इसलिए वो दूसरों के क्षेत्र में दखलंदाजी कर रहे है। इसके बाद से तनातनी बढ़ रही है। मामला आलाकमान के दरबार में पहुंच चुका है। जिसके बाद प्रदेश प्रभारी महेंद्र सिंह, राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री शिवप्रकाश और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल को सक्रिय भूमिका निभाने के निर्देश दिए गए हैं। 

सीधे डिप्टी सीएम पर निशाना

इससे पहले साल 2023 में हुए विधानसभा में पहली बार विंध्य की राजनीति बुरी तरह गर्माई। जब बीजेपी ने सीधी सीट से केदारनाथ शुक्ल की जगह रीति पाठक को टिकट दे दिया। अपने क्षेत्र में ये दखलंदाजी केदारनाथ शुक्ल को पसंद नहीं आई। पार्टी के सीनियर लीडर होने के बावजूद केदारनाथ शुक्ल बागी हुए और चुनाव लड़ा। उन्हें हार मिली और रीति पाठक सांसद से विधायक बन गई। रीति पाठक की जीत का रिकॉर्ड भी ठीक ठाक रहा है। जिस वजह से उन्हें कॉन्फिडेंट तो होना ही था। रीति पाठक आत्मविश्वास से लबरेज हैं। और, सीधे डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल पर निशाना साध रही हैं। विंध्य में राजेंद्र शुक्ल का जबरदस्त दबदबा है। सीधी से विधायक बनी रीती पाठक ने एक कार्यक्रम में मंच से ही डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल का नाम लेकर कहा कि वो रीवा के साथ-साथ सीधी का भी विकास करें। रीति पाठक ने अस्पताल के लिए आई सात करोड़ की राशि के गायब होने का आरोप भी लगाया। साथ ही ये शिकायत भी दर्ज करवाई कि अधिकारी उनके क्षेत्र की समस्याओं की अनदेखी कर रहे हैं। इस बारे में वो कई बार पत्र भी लिख चुकी हैं। ये शिकायत सिर्फ रीति पाठक की नहीं है। बीजेपी के और भी नेता ऐसे हैं जो ये शिकायत कर चुके हैं कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं है। असल में अब हालात ये हैं कि हर जिले या संभाग में बीजेपी के एक नहीं दो दो या तीन तीन दिग्गज नेता काबिज हैं। सब चाहते हैं कि उनके क्षेत्र में उनकी ज्यादा चले। जिसका नतीजा ये होता है कि दूसरा नेता शिकायत करने पर मजबूर हो जाता है। 

ग्वालियर चंबल में दो गुटों में बंटी बीजेपी

विंध्य से पहले से ही बुंदेलखंड, मालवा और ग्वालियर चंबल इस परेशानी से जूझ रहे हैं। बुंदेलखंड के सागर जिले में एक नहीं बीजेपी के तीन-तीन दिग्गज आमने सामने हैं। पहले सागर में गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह का सिक्का चलता था। साल 2020 में इसी जिले से गोविंद सिंह राजपूत की भी दमदार आमद हुई। राजपूत ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक तो भूपेंद्र सिंह शिवराज सिंह चौहान के खास थे। तब राजपूत और भार्गव कुछ मौकों पर भूपेंद्र सिंह के खिलाफ नजर आए। शिवराज की प्रदेश से विदाई के बाद भूपेंद्र सिंह का सिक्का भी कमजोर पड़ गया। अब सागर में सबसे पावरफुल गोविंद सिंह राजपूत हैं। हालांकि तीनों के बीच खींचतान और तल्खी अक्सर नजर आती है। ग्वालियर चंबल में तो बीजेपी दो गुटों में बंटी हुई दिखने लगी है। एक गुट नरेंद्र सिंह तोमर का गुट और दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया का गुट है। कभी तोमर सिंधिया पर भारी पड़ते हैं तो कभी सिंधिया जता देते हैं कि टाइगर अभी जिंदा है। हाल ही में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में तोमर ने सिंधिया से बुरी तरह मात खाई है। यहां अक्सर तोमर और सिंधिया समर्थकों की भिड़ंत भी नजर आती रही है।

बड़े नेताओं के नाम पर कलह हावी 

यही हाल मालवा का भी है। कैलाश विजयवर्गीय बीजेपी के पुराने और तजुर्बेकार नेता हैं। इंदौर सहित पूरे मालवा में उनके नाम के आगे कोई नहीं टिकता। हालांकि पहले इस क्षेत्र में वो ताई भाई की राजनीति में घिरे रहे। और, अब सिंधिया समर्थक तुलसी राम सिलावट कभी-कभी उनके आड़े आ जाते हैं। मालवा में भी दिग्गजों की ये कलह अब छुप नहीं पा रही है। बड़े नेताओं के नाम पर तो कलह हावी है। ऐसे छोटी मोटी राजनीतिक बहसबाजी भी तेजी से बढ़ रही हैं। टीकमगढ़ से सांसद केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक पर मानवेंद्र सिंह और ललिता यादव गंभीर आरोप लगा चुके हैं। उन पर आरोप लगे कि वो अपने कामों के लिए ऐसे लोगों की मदद ले रहे हैं जो पार्टी विरोधी हैं। इस मामले पर खटीक के बोल भी नर्म नहीं पड़े। उन्होंने साफ कहा कि वो अपने लोगों के साथ खड़े हैं। उन्हें ऐसे लोग सलाह न दे जो खुद आयातित हैं और नए नए पार्टी में शामिल हुए हैं। 

सांसद और राज्य मंत्री आमने सामने 

रायसेन जिले में एक स्कूल के कार्यक्रम के इनविटेशन को लेकर सांसद और राज्य मंत्री आमने सामने आ गए। इस कार्यक्रम में नर्मदापुरम सांसद दर्शन सिंह चौधरी का नाम ऊपर था। नीचे मंत्री का नाम लिखा था।  जिसके बाद अटकलें लगीं कि स्कूल की मान्यता पर संकट आ चुका है। हालांकि इस मुद्दे को वहीं का वहीं खत्म कर दिया गया। रीवा सांसद जनार्दन मिश्रा और त्योंथर से बीजेपी विधायक सिद्धार्थ तिवारी के बीच की अनबन भी किसी से छिपी नहीं है। मिश्रा ने तिवारी के दादा और कांग्रेस नेता श्रीनिवास तिवारी को खुलेआम भ्रष्टाचारी और गुंडागर्दी करने वाला बताया। सिद्धार्थ तिवारी भी चुप नहीं रहे। और अपने दादा के बचाव में कहा कि उन्हें किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। बीजेपी में नेताओं के बीच की जुबानी जंग और आपसी कलह इस तरह लगातार बढ़ रही है। दिग्गजों का टकराव तो अपनी जगह है। हर स्तर पर सांसद विधायक और आम नेता एक दूसरे से शिकायतें कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी ने इस सिचुएशन से समय रहते निपटने की कोशिश नहीं की तो पार्टी विद डिफरेंस का नारा बहुत जल्द फीका पड़ता हुआ नजर आएगा।

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