MP में पेयजल प्रोजेक्ट पर सवाल, पहली बार सात कॉलेजों को सौंपा ऑडिट का जिम्मा

मध्यप्रदेश सरकार को शहरी क्षेत्रों में चल रहे या पूरे हो चुके प्रोजेक्ट का तकनीकी परीक्षण कराने की क्या जरूरत पड़ गई। सरकार ने अपने ही तकनीकी विभागों की जगह इसके लिए इंजीनियरिंग कॉलेजों को यह जिम्मेदारी क्यों सौंपी...

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Sanjay Sharma
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विधानसभा के मानसून सत्र में शहरी पेयजल प्रोजेक्ट पर उठे सवालों के बाद अब सरकार ने तकनीकी संस्थाओं से इनका ऑडिट कराने की तैयारी कर ली है। यानी अब सरकार योजनाओं में हुई देरी से लेकर दूसरी गड़बड़ियों का ब्यौरा जुटाएगी। टेक्नीकल ऑडिट इन बड़े और महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में अफसरों की लापरवाही भी उजागर कर देगा। यानी इन योजनाओं की वास्तविक हकीकत भी सामने आ जाएगी। टेक्नीकल ऑडिट के लिए नगरीय प्रशासन संचालनालय ने मैनिट भोपाल सहित प्रदेश के सात प्रमुख सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों को गाइडलाइन भेज दी है। वहीं इंजीनियरिंग कॉलेज भी जल परियोजनाओं के ऑडिट के लिए तैयारी में जुट गए हैं।

अर्चना चिटनीस ने खड़े किए थे प्रोजेक्ट पर सवाल

पहले जान लीजिए आखिर सरकार को प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में चल रहे या पूरे हो चुके प्रोजेक्ट का तकनीकी परीक्षण कराने की क्या जरूरत पड़ गई। सरकार ने अपने ही तकनीकी विभागों की जगह इसके लिए इंजीनियरिंग कॉलेजों को यह जिम्मेदारी क्यों सौंपी। इसके लिए आपको कुछ दिन पहले यानी विधानसभा के मानसून सत्र में चलना होगा। विधानसभा में बजट पेश करने के दौरान बुरहानपुर से बीजेपी विधायक अर्चना चिटनीस ने वाटर सप्लाई प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े करते हुए अपनी ही सरकार को जमकर घेरा था। विधायक अर्चना चिटनीस परियोजना में हुई देरी और इस वजह से स्थानीय लोगों को हो रही परेशानियों से खासी नाराज थीं। उनके अलावा प्रदेश के अन्य शहरों से भी विधायकों ने पेयजल प्रोजेक्ट को लेकर नाराजगी जताई थी। विधायक चिटनीस की नाराजगी के बाद नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बुरहानपुर वॉटर प्रोजेक्ट कर जांच आईआईटी इंदौर से कराने का आश्वासन दिया था। 

विधायकों ने लगाए सवाल

विधानसभा में प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में जल परियोजनाओं पर विधायकों के सवालों के बाद अब नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने गंभीरता दिखाई है। बुरहानपुर के बाद अब विभाग ने प्रदेश में जल जीवन मिशन के अमृत-1 के अंतर्गत 31 शहरों में चल रहे या पूरे हो चुके वॉटर प्रोजेक्ट का ऑडिट कराने की तैयारी कर ली है। जल परियोजनाओं का टेक्नीकल ऑडिट कराने के लिए सरकार के तकनीकी दक्षता वाले विभाग और अधिकारियों को इससे दूर रखा गया है। 

इन संस्थानों को सौंपी जिम्मेदारी 

विभाग यह काम भोपाल मैनिट सहित प्रदेश के 7 इंजीनियरिंग कॉलेजों से कराने जा रहा है। मैनिट को भोपाल के अलावा सीहोर, नर्मदापुरम और बैतूल, एसजीएसआईटीएस इंदौर को इंदौर शहर के साथ ही देवास, खंडवा और पीथमपुर शहरों के वॉटर प्रोजेक्ट सौंपे गए हैं। वहीं रीवा इंजीनियरिंग कॉलेज के विशेषज्ञ रीवा, सतना और सिंगरौली, उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज नागदा, नीमच, मंदसौर में जबकि जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज छिंदवाड़ा, जबलपुर, कटनी शहरों में तकनीकी सर्वेक्षण करेंगे। सागर स्थित इंदिरा गांधी इंजीनियरिंग कॉलेज को छतरपुर के वॉटर प्रोजेक्ट का टेक्नीकल ऑडिट दिया गया है। 

ऐसे होगा जल परियोजनाओं का तकनीकी ऑडिट

नगरीय प्रशासन विभाग के अपर आयुक्त डॉ. परीक्षित संजयराव झाड़े के अनुसार तकनीकी ऑडिट विभाग के इंजीनियर इन चीफ की निगरानी में कराया जा रहा है। इसके लिए इंजीनियरिंग कॉलजों को गाइडलाइन भी दी गई है। वहीं मैनिट के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. विष्णु प्रसाद ने बताया कि अभी जल परियोजनाओं का काम शुरू नहीं हुआ है। ऐसे सर्वेक्षण के लिए विभाग द्वारा दिए गए बिंदुओं पर जानकारी जुटाई जाती है। वहीं इंदिरा गांधी इंजीनियरिंग कॉलेज के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रो. बीएस किरार के अनुसार तकनीकी ऑडिट के दौरान पहले मैदानी जानकारी एकत्रित की जाती है। इसके साथ ही स्ट्रक्चर, पानी के फ्लो का पता लगाते हैं कि सप्लाई आखिरी घर तक पहुंच रही है या नहीं, पेयजल के लिए बिछाई गई पाइप लाइन की गुणवत्ता, उसे बिछाने के लिए जरूरी गहराई का ध्यान रखा गया या नहीं यह भी अहम होता है। इन सभी बिंदुओं पर जानकारी एकत्रित कर एक्सपर्ट पैनल रिपोर्ट तैयार करेगा। 

तकनीकी ऑडिट से क्या होगा फायदा

जल परियोजनाओं पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि जल आपूर्ति हर कनेक्शनधारी तक पहुंचे। इसके लिए पाइपलाइन बिछाने के साथ पर्याप्त दबाव के साथ पानी छोड़ने की आवश्यकता होती है। अभी प्रदेश भर में जल परियोजनाओं को लेकर शिकायतें सामने आ रही हैं। पहाड़ी संरचना वाले शहरों में किसी हिस्से में पानी कम दबाव से सप्लाई होने से लोगों को पर्याप्त नहीं मिल पा रहा है तो कहीं कॉमन लाइन से लगातार पानी बहकर बर्बाद होता है। बैतूल में परियोजना से जोड़ गए स्त्रोत में ही पानी की कमी है। ग्रामीण फीडर से जुड़ा होने से दतिया वॉटर प्रोजेक्ट से जलापूर्ति पर्याप्त नहीं हो पा रही। इंदौर में कई काम अधूरे हैं। सीहोर और ग्वालियर में अपर्याप्त पानी की उपलब्धता कब है। डबरा में गर्मी के दिनों में जल स्रोत पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। यह बात भी सामने आई कि प्रदेश के 26 शहरों में जलापूर्ति कम दबाव से हो रहा है। इस वजह से पम्पिंग स्टेशन से दूर स्थित वार्डों में लोगों को मुश्किल हो रही है। तकनीकी ऑडिट से यह सब विसंगतियां सामने आने से उनमें सुधार कराया जा सकेगा। वहीं प्रोजेक्ट तैयार करने वाली कंपनी की गड़बड़ी, तकनीकी खामियां और उपयोग की गई सामग्री, उपकरणों की गुणवत्ता का भी पता चल पाएगा। इससे भविष्य में योजना अपने लक्ष्य के अनुरूप लोगों को लाभ पहुंचा सकेगी। 

इंजीनियरिंग कॉलेजों को इसलिए दिया जिम्मा

अब तक ऐसे बड़े प्रोजेक्ट की तकनीकी जांच के लिए विभागीय स्तर पर कमेटी बनाई जाती रही है। इससे अकसर जांच रिपोर्ट पर सवाल उठते रहे हैं। इससे बचने और जरूरत के मुताबिक सुधार कराने नगरीय विकास विभाग ने अब जल परियोजनाओं के तकनीकी ऑडिट की जवाबदारी इंजीनियरिंग कॉलेजों को सौंप दी है। इससे सरकारी विभागों से दूर विशेषज्ञ जांच कर रिपोर्ट विभाग को उपलब्ध करा पाएंगे। इससे अफसरों पर भी सवाल नहीं उठेंगे और जरूरी सुधार भी हो पाएंगे।

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