MP में 5 हजार से ज्यादा पर्यावरण मंजूरी के मामले अटके, फिर से जांच की मांग, सिया की आपत्ति

मध्य प्रदेश में 2016 से 2018 के बीच दी गई पर्यावरण मंजूरियों की वैधता पर सवाल उठे हैं। खनिज विभाग ने इन पुराने मामलों की दोबारा जांच के लिए पर्यावरण विभाग को पत्र लिखा है।

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Rohit Sahu
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मध्य प्रदेश में साल 2016 से 2018 के बीच हजारों खनन परियोजनाओं को पर्यावरण की मंजूरी (EC) दी गई थी। अब इन पुरानी मंजूरियों पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि ये पुराने नियमों के तहत दी गई थीं। खनिज विभाग के प्रमुख सचिव (PS) ने इस बारे में पर्यावरण विभाग को पत्र लिखा है। उन्होंने कहा है कि पुराने EC मामलों की दोबारा जांच की जाए।

स्टोन क्रेशर एसोसिएशन ने उठाई थी री-अप्रैजल की मांग

स्टोन क्रेशर ओनर्स एसोसिएशन का कहना है कि छोटी-छोटी खदानों को क्लस्टर (समूह) मानना ठीक नहीं है। अगर 5 हेक्टेयर से कम क्षेत्र में खनन हो रहा है, तो उसमें जनसुनवाई की जरूरत नहीं होनी चाहिए। इसलिए उन्होंने मांग की है कि इन्हें फिर से B2 कैटेगरी में रखकर बिना जनसुनवाई के मंजूरी का पुनर्मूल्यांकन किया जाए।

राजस्थान-गुजरात में 100 फीसदी हो चुका है मूल्यांकन

जनवरी 2024 में केंद्र सरकार ने एक गाइडलाइन (SOP) जारी की थी। इसमें कहा गया था कि पुराने मामलों में बिना क्लस्टर बनाए मंजूरी को फिर से देखा जा सकता है। इसी SOP के आधार पर राजस्थान और गुजरात ने अपने राज्यों में 100% पुराने मामलों का पुनर्मूल्यांकन पूरा कर लिया है। मध्य प्रदेश में अब भी सभी मामलों को B1 कैटेगरी में भेजा जा रहा है, जहां जनसुनवाई जरूरी होती है।

NGT ने 2018 में जिला स्तर की ईसी पर लगाई थी रोक

साल 2018 में एनजीटी (NGT) ने पाया था कि कुछ राज्यों ने 2016 से 2018 के बीच पर्यावरण मंजूरी देते समय नियमों का पालन नहीं किया। इसलिए उसने सभी जिला स्तरीय मंजूरियों (DEIAA EC) को रद्द कर दिया और कहा कि अब इन मामलों की दोबारा जांच राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) से की जाए।

एमपी में 5 हजार से अधिक केस अब भी लटके 

स्टोन क्रेशर ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डीएस चावला का कहना है कि मध्य प्रदेश में लगभग 5,000 ऐसे मामले अब भी अटके हुए हैं, जिनका अभी तक कोई पुनर्मूल्यांकन नहीं हुआ है। इन मामलों के लटकने की वजह से खनन कार्य रुका पड़ा है, जिससे कारोबारियों को नुकसान हो रहा है।

सिया चेयरमैन- राज्य को नहीं है क्लस्टर निर्धारण का अधिकार

मध्य प्रदेश के SEIAA चेयरमैन एसएनएस चौहान ने बताया कि अगर खनन क्षेत्र 5 हेक्टेयर से कम है, तो वो B2 श्रेणी में आता है, जिसमें जनसुनवाई जरूरी नहीं है। लेकिन अगर एक ही जगह पर कई खदानें हों, तो उसे क्लस्टर (समूह) माना जाएगा और वो B1 श्रेणी में जाएगा, जिसमें जनसुनवाई जरूरी है। उन्होंने कहा कि किसी क्षेत्र को क्लस्टर माना जाए या नहीं, इसका फैसला राज्य सरकार नहीं कर सकती, ये काम केंद्र सरकार के नियमों के मुताबिक होता है।

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