नील तिवारी, जबलपुर. सरकारी कृषि फॉर्म पर काम करने वाले मजदूर ने शासन के खिलाफ 19 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। सरकार ने मजदूर को हराने के लिए तमाम दांव-पैंच लगाए, लेकिन उनकी हिम्मत नहीं तोड़ सके। आखिरकार, मजदूर की जीत हुई। कोर्ट ने कृषि विभाग को आदेश दिया कि उन्हें वापस नौकरी पर रखा जाए।
रीवा जिले के छत्तरगढ़ कालान गांव मे रहने वाले छोटेलाल पटेल रीवा जिले के फरहदी कृषि फार्म में बतौर मजदूर काम करते थे। साल 2001-2002 में छोटेलाल को बिना किसी वैध कारण के काम से निकाल दिया गया। इसके बाद छोटेलाल ने लेबर कोर्ट रीवा की शरण ली। छोटेलाल को नौकरी से हटाए जाने के शासन के निर्णय को गलत ठहराते हुए लेबर कोर्ट ने 2005 में उन्हें वापस नौकरी पर रखने का निर्णय दिया। इस पर साल 2005 में छोटेलाल को वापस काम में रखने की जगह शासन ने लेबर कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर दी।
मजदूर के खिलाफ 19 साल लड़ा शासन
2005 से लगातार चलती रही इस मामले की सुनवाई में शासन ने अलग-अलग तथ्य रखे। दायर याचिका में लेबर कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए यह बताया गया कि छोटेलाल ने कैलेंडर वर्ष के अनुसार 240 दिनों तक काम नहीं किया है। वह एक सीजनल लेबर है, इसलिए उसे दोबारा नियुक्ति देना इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट 1947 के क्षेत्र 25F की अवहेलना होगी। इन तथ्यों से जुड़े सबूत कोर्ट के सामने पेश करने में शासन और कृषि विभाग विफल हो गया। आखिरकार 19 सालों की कानूनी लड़ाई के बाद मजदूर की ही जीत हुई।
क्या कहता है इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट
इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट 1947 के भाग 25 एफ ( Industrial Dispute Act ) के अनुसार यदि किसी उपक्रम को उसके मालिक या प्रबंधन के द्वारा किसी और को हस्तांतरित किया जाता है तो मुआवजे या नौकरी के हकदार सिर्फ वही कर्मी होंगे, जिन्होंने कम से कम एक वर्ष तक उस उपक्रम में काम किया हो। शासन ने इसी एक्ट को आधार बनाकर छोटे लाल को अपात्र ( Non eligible ) बताया था। शासन की ओर से न्यायालय को यह भी बताया गया था कि छोटेलाल से संबंधित अटेंडेंस रिकॉर्ड भी उनके पास मौजूद है। वहीं मौखिक बहस में शासन की तरफ से यह पक्ष रखा गया था कि छोटेलाल एक सीजनल लेबर है पर लिखित एफिडेविट में उसे वर्कमैन ( workman ) बताया गया । शासन छोटेलाल के 240 दिनों तक काम करने के दावे को सिद्ध करने के लिए उसका अटेंडेंस रिकॉर्ड या मस्टर रोल जैसे कोई भी साक्ष्य न्यायालय के सामने पेश नहीं कर सका। इन तथ्यों के आधार पर जस्टिस विवेक अग्रवाल ( Justice Vivek Aggarwal Jabalpur High Court ) ने शासन की याचिका को खारिज कर दिया।