BHOPAL : प्रदेश में सरकारी खजाने को चूना लगाने और लोगों की सेहत से खिलवाड़ का मामला सामने आया है। इस खेल को दवा सप्लायर और अफसरों के गठजोड़ ने केंद्रीय अमृत फार्मेसी की आड़ में अंजाम दिया। इस खेल में दवा खरीदी पर करोड़ों रुपए ज्यादा खर्च हुए और प्रतिबंधित दवाएं लोगों की सेहत के लिए खतरा बनी रहीं। मध्यप्रदेश में वैसे तो भंडार-क्रय नियमों की अनदेखी नई बात नहीं है, लेकिन ये मामला लोगों को खतरे में डालने का है। दवा खरीदी के लिए केंद्रीय गाइडलाइन की अनदेखी कर अफसर ऊंची कीमत पर दवाओं की खरीदी करते रहे। सरकार को चूना लगाने के लिए अधिकारी और सप्लायरों द्वारा अमृत फार्मेसी के नाम का सहारा लिया गया।
कैग की पड़ताल में सरकार को नुकसान की पुष्टि
प्रदेश में 2017 से 2022 के बीच 564 प्रकार की दवाओं की खरीदी की गई। दवाओं की खरीदी और प्रतिबंधित दवाओं को नियंत्रित करने वाली केंद्रीय अथॉरिटी की गाइडलाइन को भी अनदेखा किया गया। जिसके चलते 28 करोड़ से ज्यादा राशि ज्यादा खर्च हुई और करीब साढ़े 8 करोड़ रुपए का नुकसार सरकार को पहुंचा है। ज्यादा दर दर्शाने वाली कंपनियों को छह माह तक विभागीय टेंडरों में शामिल होने से रोकने के प्रावधान को भी नजरअंदाज किया गया। जिस वजह से इन सप्लायरों से वसूली नहीं हो सकी। मध्यप्रदेश के ई-टेंडर पोर्टल के माध्यम से भी जिलों में 2 करोड़ 46 लाख की दवाएं खरीदी गईं जबकि इसमें से 50 लाख बचाए जा सकते थे। CAG यानी कैग की पड़ताल में ऊंची कीमत पर दवाओं की खरीदी से प्रदेश सरकार को हुए करोड़ों के नुकसान की पुष्टि हुई है। जिसके बाद अब स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा कमिश्नर द्वारा इस खेल की जांच कराई जा रही है।
बाजार से भी ऊंची कीमत पर की दवा खरीदी
दरअसल मध्यप्रदेश ने दवा खरीदी के लिए केंद्र सरकार की एजेंसी अमृत फार्मेसी से अनुबंध किया था। इसके चलते साल 2017 से 2022 के बीच पांच साल में अमृत फार्मेसी से अनुबंधित सप्लायर स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल कॉलेजों को उपलब्ध कराते रहे। खरीदी के दौरान मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉर्पोरेशन ने भी सप्लाई की दरों को अनदेखा किया। अनुबंध खत्म होने के बाद भी बाजार से ऊंची कीमतों पर प्रदेश में दवाएं उपलब्ध कराई जाती रहीं। इसके पीछे अमृत फार्मेसी और दवा सप्लायरों के साथ प्रदेश के अफसरों की मिलीभगत रही। इस वजह से मध्यप्रदेश के भंडार एवं क्रय नियमों के उल्लंघन के बावजूद पांच साल तक सब चुप्पी साधे रहे। प्रदेश में दवा खरीदी का सेंट्रलाइज्ड सिस्टम होने के बाद भी जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज दवाएं खरीदते रहे।
स्टोर में बर्बाद कर दीं 1.50 करोड़ की दवाएं
मध्यप्रदेश के अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों में लाखों रुपए की दवाएं हर साल खराब हो जाती हैं। इनमें ज्यादातर जीवनरक्षक दवाएं तो एक बार स्टोर रूम पहुंचने के बाद खराब होने तक बाहर ही नहीं आतीं। जबकि मरीजों को उपलब्ध न होने का हवाला देकर बाजार से खरीदने मजबूर किया जाता है। केंद्रीय नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार बीते पांच साल में प्रदेश के दस जिलों में 55 लाख रुपए से ज्यादा कीमत की दवाएं एक्सपायर हुई हैं। वहीं जीएमसी भोपाल, गजरा राजा मेडिकल कॉलेज ग्वालियर और छिंदवाड़ा मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में 1 करोड़ की दवाएं एक्सपायर हुई हैं। जबकि औषधि उपार्जक मार्गदर्शिका की गाइडलाइन ऐसा होने से रोकती है। इसी वजह से इन दवाओं को गुपचुप तरीके से अस्पताल प्रबंधन गायब कर नष्ट रते हैं। कैग ने इस मामले में प्रदेश के स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संस्थानों को लापरवाह माना है।
प्रतिबंधित दवा देकर मरीजों की सेहत से खिलवाड़
केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएससीओ द्वारा मानव शरीर पर दुष्परिणामों के चलते कई दवाओं को देशभर में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रतिबंधित किया है। इसकी सूची भी सभी प्रदेशों को भेजी गई है। इसके बावजूद प्रदेश में साल 2017 से 2022 के बीच ऐसी दवाओं की खरीदी की गई। इसके लिए 1 करोड़ 53 लाख रुपए की दर पर टेंडर भी जारी किया गया। इसके माध्यम से प्रतिबंधित मेट्रोनिडाजॉल नॉरफ्लॉक्सासिन ड्रग वाली एजिथ्रोमाइसिन सेफीक्सीम टेबलेट खरीदी गई। जबकि इन दवाओं का उपयोग करने पर मरीज के स्वास्थ्य पर विपरीत असर देखने में आया है। इसके बावजूद लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर प्रदेश के स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संस्थानों द्वारा नियम विरुद्ध ऐसी दवाओं की खरीदी कर उन्हें मरीजों को दिया गया है।
इन अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों में खराब हुई दवाएं
भोपाल, रीवा, गोविंदगढ़, त्योंथर, ग्वालियर, छतरपुर,बड़वानी, उज्जैन, हरदा, जबलपुर के मझौली एवं बघराजी, मंडला और धार जिलों में पांच सालों में 55 लाख 35 हजार रुपए की जीवनरक्षक दवाएं स्टोर रूम में ही खराब हो गईं। वहीं भोपाल, ग्वालियर और छिंदवाड़ा जिलों में 1 करोड़ से ज्यादा कीमत की दवाएं एक्सपायर हुई हैं।
फैक्ट
ज्यादा कीमत पर खरीदी गई दवाएं
कैल्शियम ग्लूकोनेट इंजेक्शन खरीदने पर 26.95 लाख रुपए
सिल्वर सल्फाडियाजिन क्रीम खरीदने पर 67 हजार रुपए
प्रतिबंधित दवाओं की खरीदी
मेट्रोनिडाजोल नॉरफ्लॉक्सासिन खरीदने पर 32 लाख किए खर्च
एजिथ्रोमाइसिन सेफीक्सीम खरीदने पर खर्च किए 154 लाख रुपए
ग्लिकालाजाइड और मेटफॉर्मिन खरीदने पर 11 लाख खर्च किए
एक वित्त वर्ष में संस्थाओं द्वारा अलग-अलग कीमत पर खरीदी गईं दवाएं
- एल्कलाइन फॉस्फेट और एमिकासिन इंजेक्शन : सागर, जबलपुर, बैतूल और श्योपुर सीएमएचओ-सिविल सर्जन द्वारा अलग-अलग कीमत पर खरीदे गए।
- एडेनोसिन इंजेक्शन और सेफैलेक्शिन कैप्सूल : शिवपुरी, रीवा, शाजापुर और श्योपुर में अलग-अलग कीमत पर खरीदे गए।
- कैटगट क्रोमिक और आयरन सुक्रोज यूएसपी इंजेक्शन : भोपाल, भिंड, रायसेन और श्योपुर जिलों में अलग दरों पर खरीदे गए।
- एल ऑर्निथिन और एल-एस्पार्टेट इंजेक्शन : शहडोल अस्पताल और ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में अलग कीमत पर खरीदे।
- डेक्सट्रोज इंजेक्शन और डॉल्सिलमाइन सक्सिनेट टेबलेट : मेडिकल कॉलेज जीएमसी भोपाल, जबलपुर, रतलाम,शहडोल में अलग कीमत पर खरीदे।
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