मप्र लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग ने इंदौर में बिड में रास्ते की जमीन ही बेच दी, सुप्रीम कोर्ट ने दिए नोटिस

मप्र लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग ने इंदौर में सरकारी रास्ते की जमीन को एक बिल्डर को बेच दिया। क्या है पूरा मामला... चलिए आपको विस्तार से बताते हैं।

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Sanjay Gupta
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मप्र सरकार अपने राजस्व को बचाने के लिए सरकारी जमीनों को बेचने का काम कर रही है। इसके लिए मप्र लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (मप्र स्टेट पब्लिक एसेट मैनेजमेंट लिमिटेड (MPSAMC)) बना हुआ है। लेकिन इंदौर में एक अजीब स्थिति सामने आई है। इसमें मप्र शासन ने जिस सर्वे नंबर पर रास्ता/रोड लिखा हुआ है। उसे ही बोली लगाकर एक बिल्डर को बेच दिया। इससे उन्होंने 2.86 करोड़ की कमाई की है। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है।

यह है जमीन, और इस तरह इन बिल्डर ने ली

लोक परिसंपत्ति विभाग ने 5 दिसंबर 2022 को बिचौली हप्सी तहसील इंदौर के बिचौली मर्दाना गांव के सर्वे नंबर 186 की 0.133 हेक्टेयर जमीन के लिए टेंडर जारी किया। इस जमीन को सबसे अधिक बोली लगाकर इंदौर के सतनाम बिल्डर्स एंड डेवलपर्स ने खरीदा और उन्हें 2.86 करोड़ रुपए में यह जमीन मिल गई। इसके लिए सरकार ने 1 मार्च 2023 को एग्रीमेंट भी कर लिया और संबंधित ने राशि भी भर दी।

लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग का टेंडर डॉक्युमेंट जिसमें खुद ही जमीन का मद रास्ता लिखा हुआ है

इसके बाद अन्य बिल्डर ने लगाई आपत्ति

इस टेंडर के होने के बाद बिल्डर संजय वाधवानी ने इसे लेकर शासन, प्रशासन के पास आपत्ति लगाई और कहा कि यह सर्वे नंबर 186 तो मीसल बंदोबस्त (1925-26) में ही रोड, रास्ते के लिए तय है। उन्होंने अलग-अलग समय के भी सर्वे की नकल दी। खासकर इसमें टेंडर डाक्यूमेंट जो 37 पन्नों में था, इसमें ही एक पन्ने में जो राजस्व रिकॉर्ड लगा वह दिया, जिसमें लिखा है 0.133 हेक्टेयर, रास्ता।

मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो यह बहस हुई

इस मामले में संजय वाधवानी ने राहत नहीं मिलने पर हाईकोर्ट इंदौर में अपील की और कहा कि उन्होंने इसके पास की जमीन 187/3/1 की 4500 वर्गफीट का सौदा 45 लाख में किया है और 23 लाख दे संबंधित बिल्डर को दे चुके हैं। इस सर्वे नंबर 186 जो रास्ता मद में है, इसी से होकर मेरी जमीन पर जाने का मार्ग है। यह गलत बेचा गया है। इसमें मप्र शासन, लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग, कलेक्टर इंदौर, एडिशनल कलेक्टर इंदौर, एसडीओ इंदौर बिचौली, सतनाम बिल्डर्स को पक्षकार बनाया गया। इसमें शासन, प्रशासन की ओर से बताया गया कि यह इंदौर मास्टर प्लान 2021 के तहत सरकारी जमीन होकर आवासीय उपयोग की है। इसके लिए टीएंडसीपी का भी पत्र है। साथ ही शासन ने साल 2006-07 से 2022-23 तक के सर्वे नंबर पेश कर कहा कि इसमें कहीं रास्ता नहीं लिखा, केवल सरकारी जमीन का जिक्र है, जो आवासीय लैंडयूज की है। इसलिए बेची गई। वैसे भी याचिकाकर्ता वाधवानी ने अभी जमीन खरीदी ही नहीं, उन्होंने केवल दूसरी जमीन का एग्रीमेंट किया है, तो वह याचिका ही नहीं लगा सकते हैं।

हाईकोर्ट ने यह दिया फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने दिया नोटिस

हाईकोर्ट ने सभी पक्षकारों को सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी और कहा कि याचिकाकर्ता ने अभी जमीन खरीदी ही नहीं। सर्वे नंबर जो शासन ने बताए इसमें सरकारी जमीन बताई है। इसलिए इसमें याचिकाकर्ता पर 50 हजार की कास्ट लगाई जाती है, जिसमें 20-20 हजार लोक परिसंपत्ति विभाग और सतनाम बिल्डर्स को और दस हजार लीगल सहायक संस्थान को दिया जाएगा। इस आदेश के खिलाफ वाधवानी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई 50 हजार कास्ट पर स्टे कर सभी संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में इस पर विस्तृत जवाब मांगा है।

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