MPPGCL की आउटसोर्सिंग नीति पर हाई कोर्ट ने उठाया सवाल

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने MPPGCL की संविदा नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया। भर्ती और परीक्षा प्रणाली पर सवाल उठाते हुए छात्र को पुनर्मूल्यांकन की छूट दे दी।

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Ravi Singh
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MPPGCL contractual appointment illegal
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी ( MPPGCL ) द्वारा जारी उस विज्ञापन नोटिस को निरस्त कर दिया है, जिसमें रिक्त पदों को भरने के लिए सेवानिवृत्त अधिकारियों को संविदा के आधार पर नियुक्त किया जा रहा था। कोर्ट ने इसे अवैध करार देते हुए कहा कि पदोन्नति के जरिए भरे जाने वाले पदों को बाहरी स्रोतों से भरना नियमों के खिलाफ है। यह मामला तब सामने आया, जब जबलपुर के इंजीनियरों ने इस नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती दी और कोर्ट ने इसे अहम फैसला माना। वहीं, एक अन्य मामले में हाई कोर्ट ने एक छात्रा को पुनर्मूल्यांकन के लिए राहत देने का आदेश दिया, जिससे शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठने लगे हैं।

नियमों का उल्लंघन, कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने बिजली उत्पादन कंपनी की संविदा नियुक्ति अधिसूचना को निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति विवेक जैन की एकल पीठ ने कहा कि पदोन्नति के माध्यम से भरे जाने वाले पदों पर बाहरी लोगों को नियुक्त करना अवैध है। यह निर्णय सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है।

आउटसोर्सिंग पर सवाल

जबलपुर के इंजीनियरों ने चुनौती दी कि बिजली उत्पादन कंपनी का यह कदम नियमों के विरुद्ध है। विशेषज्ञ सेवाओं के नाम पर सेवानिवृत्त अधिकारियों की नियुक्ति करके कंपनी ने अपने नियमित कामकाज की उपेक्षा की है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि क्या यह अस्थायी और विशेष आवश्यकता का मामला है या फिर बाहरी स्रोतों से नियमित काम करवाया जा रहा है।

विकल्प की बजाय पदोन्नति

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि कंपनी में कई उच्च पद जैसे एसई (सुपरीटेंडेंट इंजीनियर) और सीई (चीफ इंजीनियर) रिक्त पड़े हैं, जिन्हें पदोन्नति के माध्यम से भरा जाना चाहिए। यह फैसला सरकारी विभागों में रिक्त पदों की स्थिति और उनकी पदोन्नति प्रक्रियाओं पर महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है।

छात्रों को राहत देने वाला आदेश

एक अन्य मामले में, जबलपुर की छात्रा सान्वी दीक्षित ने 12वीं कक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन के लिए हाई कोर्ट का रुख किया। छात्रा के अंक मात्र 0.4 प्रतिशत कम थे, जिससे वह बीआईटीएस प्रवेश परीक्षा के लिए योग्य नहीं हो पाई। कोर्ट ने शिक्षा बोर्ड से जवाब तलब किया, जिससे पुनर्मूल्यांकन के मामलों में पारदर्शिता की आवश्यकता और परीक्षा प्रणाली पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।

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