मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में एक जनहित याचिका की सुनवाई हुई, इस याचिका में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जारी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) आरक्षण नीति को संविधान के अनुच्छेद 14, 15(6) और 16(6) के प्रावधानों के खिलाफ बताया गया है। यह जनहित याचिका एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस नामक संस्था की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह द्वारा दायर की गई थी।
आरक्षित वर्ग को भी दिया ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट
दरअसल मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा ईडब्ल्यूएस कैंडिडेट्स को जो सर्टिफिकेट जारी किया जा रहे हैं। उसमें ही यह साफ लिखा गया है कि यह कैंडिडेट एसटी,एससी,ओबीसी वर्ग में नहीं आता है। इस तरह इकोनामिक वीकर सेक्शन में कोटे का लाभ आरक्षित जातियों को नहीं दिया जा रहा है। इस याचिका में यह आरोप लगाए गए कि यह आरक्षित वर्ग के गरीब कैंडिडेट के साथ भेदभाव है।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि सरकार द्वारा 2 जुलाई 2019 को जारी की गई EWS नीति के तहत केवल जनरल कैटेगरी के अभ्यर्थियों को ही EWS प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे हैं, जबकि ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के गरीबों को इस लाभ से वंचित रखा जा रहा है। याचिका में यह भी बताया गया कि संविधान के अनुच्छेद 15(6) और 16(6) के तहत EWS का प्रमाण पत्र सभी वर्गों को जारी किया जाना चाहिए, न कि जातीय आधार पर भेदभाव किया जाए।
संविधान के खिलाफ है सरकार की नीति
याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी कि EWS आरक्षण के लिए जारी फार्म में जाति का उल्लेख किया जा रहा है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो समानता के अधिकार की बात करता है। उन्होंने सरकार की नीति को असंवैधानिक बताया और कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की।
कोर्ट को भी मामला समझने में लगी देर
हाईकोर्ट में जस्टिस संजीव सचदेवा ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से सीधा प्रश्न किया कि आप आरक्षित वर्ग की ओर से पैरवी कर रहे हैं या अनारक्षित वर्ग की ओर से क्योंकि यदि आप आरक्षित वर्ग के कोटे से 10% ईडब्ल्यूएस की मांग कर रहे हैं तो इससे आरक्षित कोटा और कम हो जाएगा। जिस पर याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने यह स्पष्ट किया कि वह आरक्षित वर्ग से नहीं बल्कि ईडब्ल्यूएस कैटेगरी से ही आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के सर्टिफिकेट की मांग कर रहे हैं।
सरकार का इस मामले में पक्ष
सरकार की ओर से अदालत को यह जानकारी दी गई कि EWS आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ द्वारा निर्णय पारित किया जा चुका है। हालांकि, याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने बताया कि उक्त निर्णय संविधान के 103वें संशोधन की वैधता से जुड़ा है, लेकिन इस याचिका में उठाए गए मुद्दों पर कोई विचार नहीं किया गया है।
EWS प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया
इसके बाद अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के सात जजों के फैसले पर ध्यान दिलाते हुए सरकार से पूछा कि आरक्षित वर्ग के गरीबों को EWS प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया जा रहा है। सरकार की ओर से अधिवक्ता ने जवाब देने के लिए समय मांगा है जिसके बाद सरकार का पक्ष आने पर यह स्पष्ट होगा कि ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट को लेकर सरकार की एससी एसटी और ओबीसी कैंडिडेट के लिए क्या राय है ।
सुनवाई 4 नवंबर को होगी
इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव कुमार सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ में हुई। जिसमे याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, राम भजन लोधी और पुष्पेंद्र कुमार शाह ने पैरवी की है। इस मामले में कोर्ट ने सरकार को जवाब देने के लिए चार हफ्तों का समय दिया है अब इस मामले की सुनवाई 4 नवंबर को होगी।
याचिकाकर्ता के द्वारा चार अन्य याचिकाओं को भी इसके साथ ही जोड़कर सुनवाई का निवेदन किया गया। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि यह याचिकाएं अलग-अलग भर्तियों से जुड़ी हुई हैं। जिसमें जनरल कैटेगरी से 10% आरक्षण न दिया जाकर कल वैकेंसियों से 10% आरक्षण दिया जा रहा है जो गलत है। हाई कोर्ट ने अन्य याचिकाओं की सुनवाई अलग से करना ही सुनिश्चित किया है। इस महत्वपूर्ण मामले में हाईकोर्ट का आदेश आने पर यह स्पष्ट होगा कि जाति, वंश, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर किसी को भी EWS प्रमाण पत्र देने से इंकार नहीं किया जा सकता है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में भी यह स्पष्ट था कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण सभी वर्गों के लिए होगा । हालांकि इस मामले के सामने आने के बाद अनारक्षित गरीब वर्ग के 10% कोटे में भी आरक्षित अभ्यर्थियों को प्रमाण पत्र दिए जाने की बहस शुरू हो गई है । अब इस मामले में सभी की नजरें मध्य प्रदेश सरकार पर हैं, जो इस मुद्दे पर अपना जवाब पेश करेगी।
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