मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने रेप मामले में दर्ज एक FIR में अहम फैसला है। कोर्ट के जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने अपने अहम फैसले में कहा है कि दस साल के रिश्ते में स्थापित यौन संबंध को ऐसा नहीं माना जा सकता है कि बिना सहमति से याचिकाकर्ता उसका यौन शोषण कर रहा था। कोर्ट ने बलात्कार और अपहरण के मामले में डॉक्टर को राहत देते हुए दायर अंतिम चार्जशीट को निरस्त करने के आदेश जारी किए।
हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि कोई महिला महज इस लिए शादी के प्रलोभन के बहाने दुष्कर्म का आरोप नहीं लगा सकती कि उससे किया गया वादा झूठा था। ऐसा इसलिए क्योंकि व्यवहारिक दृष्टि से किसी रिश्ते को समझने और वादा झूठा है या सच्चा यह समझने में 10 साल नहीं लगते।
डॉक्टर नागेश्वर ने दाखिल की थी याचिका
कटनी निवासी डॉक्टर नागेश्वर प्रसाद जैसल की तरफ से दायर की गई याचिका में बलात्कार और अपहरण के तहत दर्ज आपराधिक प्रकरण में पेश की गई अंतिम चार्जशीट को निरस्त करने के मांग की थी। याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया था कि दोनों के बीच प्रेम संबंध थे और आपसी सहमति से यौन संबंध स्थापित हुए थे। यह संबंध दस साल से अधिक समय तक थे। एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ साल 2021 में एफआईआर दर्ज की गई थी।
दस साल के रिश्ते में स्थापित यौन संबंध रेप नहीं
एकलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय और हाईकोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि दस साल के रिश्ते में स्थापित यौन संबंध को ऐसा नहीं माना जा सकता है कि बिना सहमति से याचिकाकर्ता ने यह सब किया। इसके बाद एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ अंतिम चार्जशीट को निरस्त करने के आदेश जारी कर दिए।
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