जांच अधिकारी से लेकर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर तक सब खा रहे हैं मलाई : हाइकोर्ट

बलात्कार  के आरोपी की रिवीजन अपील की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने लापरवाही पर सख्त होते हुए जांच अधिकारी सहित दो पब्लिक प्रॉसिक्यूटर पर भी जांच करने के आदेश दिए हैं।

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Neel Tiwari
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लचर जांच और पैरवी पर हाई कोर्ट सख्त
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट जबलपुर में जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की युगल पीठ में एक बलात्कार मामले के आरोपी की अपील पर सुनवाई हुई। इस मामले में की गई जांच में इतनी खामियां नजर आई की हाई कोर्ट को यह कहना पड़ा कि मामले के जांच में अधिकारी से लेकर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर तक सभी या तो असक्षम हैं या भ्रष्टाचारी। इसके बाद कोर्ट ने तीन कर्मियों के खिलाफ जांच के आदेश दिये हैं।

यह था पूरा मामला

साल 2021 के मार्च महीने में रायसेन जिले के थाना सुल्तानपुर अंतर्गत एक किशोरी घर से लापता हो गई थी परिजनों के द्वारा आसपास तलाश करने के बाद जब किशोरी नहीं मिली तो उसकी मां ने सुल्तानपुर थाने में जाकर इसकी रिपोर्ट दर्ज कराई। लापता किशोरी की मां का यह आरोप था कि रायसेन शहर  में रहने वाले शिवम उर्फ शुभम कुशवाहा पर उसे शक है। किशोरी जिसकी उम्र 17 वर्ष 1 माह बताई गई थी उसके दस्तयाब होने के बाद किशोरी ने बयान दिया कि वह शुभम के साथ भोपाल चली गई थी । इसके आधार पर शुभम पर पॉस्को एक्ट सहित बलात्कार एवं अन्य धाराओं पर केस दर्ज किया गया था। इस मामले में शुभम को रायसेन जिला अदालत से अलग-अलग धाराओं में क्रमशः 3 साल, 5 साल और पास्को एक्ट में 10 साल की सजा हुई थी। शुभम के अधिवक्ता ने इस आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। जिस पर जबलपुर बेंच में जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की युगल पीठ में सुनवाई हुई। जिस दौरान मामले में की गई जांच की कमियां सामने आई।

पास्को एक्ट के लिए नहीं इकट्ठे किया पुख्ता सबूत

घटना के समय पीड़िता की उम्र 17 साल एक महीने और 8 दिन बताई गई थी। लेकिन इस मामले में सरकारी अभियोजक की ओर से पीड़िता की उम्र को साबित करने के लिए स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट लगाया गया था ।  पीड़िता के उम्र का पुख्ता सबूत देने के लिए स्कूल के दाखिल खारिज रजिस्टर की प्रमाणित प्रति ली जानी थी। जो जांच अधिकारी ने नहीं ली और शासकीय अभियोजक ने इस तथ्य को क्रॉस एग्जामिन नहीं किया।  इसके साथ ही पीड़िता की कक्षा 9वीं की मार्कशीट दस्तावेजों में थी, पर उसे अदालत के एक्जीबिट में पेश नहीं किया गया। जिसके कारण पीड़िता की बताई गई उम्र संदेहास्पद हो गई। जिसका सीधा फायदा ऐसे मामलों में आरोपी को मिलता है।

जांच अधिकारी और दो पब्लिक प्रॉसिक्यूटर पर बैठी जांच

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह पाया की जांच अधिकारी के द्वारा स्कूल से दाखिल खारिज रजिस्टर ना जब्त करते हुए लापरवाही बरती गई वहीं पीड़िता की नौवीं क्लास की ओरिजिनल मार्कशीट जांच अधिकारी दीपक वर्मा के द्वारा जब्त तो की गई थी लेकिन उसे रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया। पब्लिक प्रॉसिक्यूटर अनिल मिश्रा और स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर किरण नंदकिशोर ने भी इस दस्तावेज के फाइल पर होने के बाद भी रिकॉर्ड में से प्रदर्शित नहीं किया । जिससे यह साबित होता है की जांच अधिकारी सहित पब्लिक प्रॉसिक्यूटर भी अपने काम के प्रति लापरवाह थे।

बलात्कार जैसे संवेदनशील मामले में की गई लचर जांच और लापरवाही पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए यह टिप्पणी करते हुए कहा कि जांच अधिकारी से लेकर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर तक सभी मिले हुए हैं और या तो वह असक्षम है या भ्रष्टाचारी। कोर्ट ने यह भी कहा कि कमजोर जांच कर यह सभी मलाई खा रहे हैं । इसके साथ ही अदालत ने राज्य को आदेश दिया कि इस मामले में जांच अधिकारी दीपक वर्मा सहित दोनों पब्लिक प्रॉसिक्यूटर अनिल मिश्रा और किरण नंदकिशोर पर डायरेक्टर पब्लिक प्रॉसीक्यूशन या डीआईजी स्तर के अधिकारी के द्वारा जांच की जाए और उसकी रिपोर्ट 30 दिनों के भीतर अदालत में दी जाए। इसके साथ ही पीड़िता की उम्र संदेहास्पद होने के कारण कोर्ट ने आरोपी की बाकी सजा को खारिज करते हुए उसे जमानत का लाभ दिया है।

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